लोकोपकार और विकास

redtape
रेड टेप निराकरण जरूरी है!

लोकोपकार – फिलेंथ्रॉपी एक ग्लैमरस मुद्दा है। जब मैने पिछली पोस्ट लिखी थी, तब इस कोण पर नहीं सोचा था।  लोकोपकार में निहित है कि अभावों के अंतिम छोर पर लोग हों और हम – मध्यमवर्गीय लोग अपने अर्जन का एक हिस्सा – एक या दो प्रतिशत – दान या जकात के रूप में दें। वह दान किस तरह से सही तरीके से निवेशित हो, उसकी सोचें।

इस दान से कोई सिने स्टार, कोई राजनेता, कोई धर्माचार्य सहज जुड़ सकता है। इस मुद्दे की बहुत इमोशनल वैल्यू है। कोई भी अपनी छपास दूर कर सकता है किसी बड़े दिन कम्बल-कटोरी दान कर। अगर आप नेकी कर दरिया में डालने वाले हैं तो फिर कोई कहने की बात ही नहीं!

पर क्यों हो दान की एक्यूट आवश्यकता? क्यों न हो समाज का उत्थान? क्यों रहें मुसहर, मुसहर? क्यों न हो विकास? इंफ्रास्ट्रक्चरल डेवलेपमेण्ट की योजनायें क्यों शिलिर शिलिर चलें और शोशेबाजी वाली स्कीमों के बल पर सरकारें बन जायें – स्कैम करने के लिये?

बड़े सवाल हैं जो लोकोपकार जैसी आत्मतुष्टि की भावना से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण हैं! (वैसे भी आप बबन पाण्डेय की बात मानें तो फिलेंथ्रॉपी करते आप बिहार में कम्बल बांटते बांटते थक जायेंगे!) 

SRJमेरे परिवेश में, इलाहाबाद के समीप, तीन मेगा थर्मल पावर स्टेशन आने वाले हैं – करछना, मेजा और शंकरगढ़ (बारां) में। प्रत्येक की क्षमता दो हजार मेगावाट की होगी। इनके आने से इस क्षेत्र का विकास जरूर होगा। पर्यावरणीय पांय-पांय होगी; पर गरीबी रहे तो पर्यावरण ले कर क्या करें? चाटें?

इसी तरह गंगा/यमुना एक्प्रेस हाईवे की योजनायें हैं। देखें कब पूरी होती हैं। उनके आने से बहुत कुछ बदलेगा परिदृश्य। जमीन अधिग्रहण जरूर एक कठिन मुद्दा है; पर सरकार-कॉर्पोरेट सेक्टर और किसान की ईमानदारी से वह भी सलट सकता है। ईमानदारी? थोड़ी रेयर कमॉडिटी है जरूर!

इनके अलावा शिक्षा, स्वास्थ्य, सार्वजनिक सुविधायें और श्रम आदि के क्षेत्र की दशा देख तो मन बुझ जाता है। बहुत कुछ करना है वहां।  

लोकोपकार से कहीं ज्यादा इन योजनाओं की बाधायें दूर करना, उनके लाल-फीते हटाना जरूरी है। उसके लिये कहीं ज्यादा सामाजिक जागरूकता और व्यक्तिगत-सामाजिक-सरकारी एक्टिविज्म की दरकार है।

आज के शापित-स्कैमित1 वर्तमान से उस भविष्य की ओर चलना है। उसके लिये हम अपना योगदान करें; लोकोपकार के दान के साथ साथ!


1. स्कैमित – embroiled in scam.


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

11 thoughts on “लोकोपकार और विकास

  1. मुझे तो ऐसे समाज की उम्मीद है …जहाँ हम सब एक निश्चिर टैक्स देकर सारा लोकोपकार जनता द्वारा चुनी हुई सरकार पर छोड दें और …..सरकार उसका सही सदुपयोग करे | बाकी ….तो कम्बल और कटोरी तो लोग खूब दान कर रहे हैं ……और पेपर में चाप रहे हैं ….मुझे लगता है यह व्यक्तिगत दान की परिपाटी की ना तो जरुरत होनी चाहिए ….और नाही वाहवाही !
    ….बशर्ते सारे सामाजिक ऐब दूर हों या ना हों ….पर कार्यपालिका भ्रष्टाचार से परे रहे |

    सरकार ने कुछ ऐसे रास्ते खुले छोड रखें हैं कि ………… भ्रष्टाचार की गुंजाइश बनी रहे !

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    1. हां, प्रवीण, रामराज्य की कल्पना बहुत सुख देती है! बाकी, जो है सो है! :)

      शायद जितने जागरूक लोग, उतनी बेहतर सरकार।

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  2. लोकोपकार के कुछ उदाहरण गुजरात में दीदी के यहाँ रहने पर देखने को मिले थे. वहाँ लोग गरीबों की मदद खुले दिल से करते हैं.
    आपकी बाकी बातों से सहमत हूँ. पर निराश मत होइए.

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    1. लोकोपकार भी नियमबद्ध होना चाहिये। साथ ही यह भी हो कि हमारे कृत्य दान ही नही, समग्र विकास को प्वॉइण्ट करें!

      (My these two posts are as haphazard as my thoughts!)

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  3. अहमदाबाद में एक मार्ग चकाचक टाइप ऐसा है जो किसानों की जमीन पर बना है, जमीन किसानों ने मुफ्त में दी की बनाओ सड़क. सड़क बन गई, टोल टेक्स डाला गया. किसानों ने कहा जमीन पैसा वसूलने को नहीं दी थी. सड़क बिना टेक्स की हो गई. क्या इसे जनभागीदारी कह सकते है? बिना पूण्य की कामना के लिए विकास के लिए किया गया काम.

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    1. सही उदाहरण। सरकार भी सेंसिटिव/ईमानदार चाहिये और जनता भी!

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