आज सवेरे फंस गये रेत की आन्धी के बीच। घर से जब निकले तो हवा शांत थी। घाट की सीढ़ियां उतर गंगा की रेती में हिलते ही तेज हो गयी और सौ कदम चलते ही तेज आंधी में बदल गयी। दृष्यता पांच दस मीटर भर की रह गयी। रेत में आंख खोलना भारी पड़ गया।
पत्नी जी का हाथ पकड़ कर वापस आये किनारे। आंखों में रेत घुस चली थी और बड़ी मुश्किल से आगे देख पा रहे थे हम। यह भी लग रहा था कि कहीं पैर न उखड़ जायें हवा की तेजी में। दस मिनट में हवा रुकी तो सैर पुन:प्रारम्भ की। पर आंधी2.0 से पाला पड़ा। इस बार भी उतनी तेज थी। दिशा कुछ बदली हुई। पत्नीजी का विचार था कि ये करुणानिधि की तरफ से आ रही है, दिल्ली की ओर। मुझे नहीं लगता करुणानिधि में आंधी लाने की ताकत बची है। दिल्ली तो दक्खिन की आन्धी में नहीं अपने ही बवण्डर में फंसेगी।
हम असमंजस में थे कि पुन: वापस लौट जायें क्या? आद्याप्रसाद जी आगे चल रहे थे। उन्होने हाथ का इशारा किया कि गंगाजी के पानी की तरफ चलें। लिहाजा आगे बढ़ते गये। गंगा तट पर पंहुच कर आद्याजी की बात समझ में आई। वहां तेज हवा के कारण गंगा में लहरें तो तेज थीं, पर रेत तनिक भी नहीं। रेत गंगा के पानी को पार कर आ ही नहीं सकती थी। हम तब तक गंगा के पानी की लहरें देखते रहे जब तक आंधी पटा नहीं गयी।
शिवकुटी की घाट की सीढ़ियों पर जब लौटे तो जवाहिर लाल एक क्लासिक पोज में बैठा था। कुकुर के साथ। कुत्ते को बोला – तूंहुं हैंचाइले आपन फोटो! (तू भी खिंचा ले अपनी फोटो!)

‘ पत्नीजी का विचार था कि ये करुणानिधि की तरफ से आ रही है, ….’
यदि आप भी करुणानिधि की तरह काले चश्में से आँखों को घेर लेते तो रेती से बच ही जाते…
आंधी हो या तूफ़ान
अपनाओ करुणानिधि प्लान :)
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हां तब शायद बैंक बैलेंस भी रिस्पेक्टेबल होता! :)
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photu wakai achhi henchi hai………..
pranam.
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हैंचना मानक हिन्दी बन जायेगी लगता है! :)
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इस आँधी पानी में इंसान को आँखें खुली रखने, नथुने की छेंक छकार में भले ही दिक्कत होती हो, लेकिन वो जो कल वाला ऊँट था संभवत: उसे इस आँधी से उसे कोई फर्क न पड़ा हो…. वहीं कहीं बैठ कर मजे से भोजन ओजन कर रहा होगा :)
रेत के ये जहाज संभवत: ऐसे ही वातावरण के अभ्यस्त होते हैं।
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कल वाला ऊंट आज भी वहीं था। वैसे भी वह गंगाजी की धारा के पास था, जहां रेत नहीं आ रही थी। पर वह निस्पृह भाव से चर रहा था।
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अपना काला चश्मा पहन कर इतनी आँधियाँ चलाईं कि दिल्ली के पसीने छूट गये, पर हमें तो यहाँ गंगा किनारे की हवा सुखद लग रही है ।
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दिल्ली में चली आंधी गर्म हवा की होती है! वैसे भी वह मीडिया की भट्टी से हो कर गुजरती है। :)
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कैमरा (मोबाइल का ही सही) हो तो, क्या-क्या न मचलने लगे.
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आंधी तो होती ही मचलने के लिये है! :)
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आँधियाँ चलाने का दम भरने वाले, समय की गिरफ्त में हैं।
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आँधियाँ चलाने का दम भरने वालों को समय की आंधी उखाड़ रही है! :)
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भाभीजी का हाथ पकड़कर आप आंधी में उड़ने से बचे। एक बार फिर सिद्ध हुआ कि भाभीजी अधिक स्थिर हैं… :)
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अब आप जो कयास लगायें! मैं तो समझता था कि मैं उन्हे आंधी से बचा कर लाया! :)
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पहले बाबा नागार्जुन ने जवाहिर लाल पर कवितायें लिखीं, अब आपके चित्र तो इन्हें (शिवकुटी के) इतिहास में अमर कर देंगे।
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कहां बाबा नागर्जुन, कहां मैं, अनुराग जी!
जवाहिर लाल वाकई कुछ खास जीव है!
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गंगा तट पर पंहुच कर आद्याजी की बात समझ में आई- सब अनुभव की बात है..किताबों से नहीं न मिलेगा यह ज्ञान….
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वास्तव में। बहुत लॉजिकल सी बात थी, पर हमारे दिमाग में ही न आ रही थी!
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सुंदर!
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जी हां! जवाहिर लाल और नेपुरा का पोज़ बहुत सुन्दर है!
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