हिन्दी ब्लॉगिंग शुरू की थी तो स्टैटकाउण्टर से पाला पड़ा था। पोस्टों पर आई टिप्पणियों का निरखन भी होता था। वह काफी समय चला। अब उसका क्रेज़ मिट गया है। पल पल पर उसके आंकड़े देखना जरूरी नहीं लगता। पर शायद किसी मुद्दे के बदलते आंकड़े रुचि जगाते हैं।
ट्विटर और फेसबुक के अकाउण्ट मैने काफी समय से बना रखे हैं। आप वे http://twitter.com/gyandutt और https://www.facebook.com/gyandutt पर देख सकते हैं। इन पर बनने वाले आंकड़े – फॉलोअर या मित्र संख्या से बहुत मोह नहीं उपजता। आप जानते हैं कि लगभग 150 से अधिक लोगों से आदान-प्रदान वाली मैत्री नहीं निभा सकते। उससे अधिक की मित्र संख्या औपचारिकता है। अत: इन अकाउण्ट्स के साथ बहुत समय व्यतीत नहीं हुआ।
कुछ समय पहले (लगभग 15 दिन हुये) क्लाउट.कॉम का पता चला। यह साइट आपके ट्विटर और फेसबुक अकाउण्ट का विश्लेषण कर आंकड़े बनाती है – नित्य अपडेट होने वाले आंकड़े। इन आंकड़ों में उपयोक्ता की प्रवृत्ति, नेट पर उसके प्रभाव में विस्तार, उसके कहे का प्रसारण का स्तर और सम्भावनाओं का आकलन होता है। इन आंकड़ों को काफी सीमा तक उपयोगी माना जा सकता है।
और इस साइट के आंकड़ों ने मुझे ट्विटर पर गौर से देखने का एक निमित्त प्रदान किया। जब यह पहली बार देखा था तो मेरा क्लाउट स्कोर 36 के आस-पास था। उसके पश्चात ट्विटर साइट पर जाने की आवृति, ट्वीट्स की संख्या और ट्विटर पर इण्टरेक्शन बढ़ा। फलत: आज यह क्लाउट का आंकड़ा 48-49 के आस-पास है।
यह अवश्य है कि ट्विटर पर मेरा अन्य व्यक्तियों पर प्रभाव न्यून है और अधिकांश ट्वीट्स हिन्दी में होने के कारण उनका लोगों तक पंहुच/लोगों की प्रतिक्रिया भी न्यून है। हिन्दी का प्रयोग करने वाले (मुख्यत: हिन्दी के ब्लॉगर) वहां नगण्य़ हैं और हैं भी तो सुप्तावस्था में। लिहाजा, मुझे यह ट्वीट करने का अवसर मिला –
चार साल पहले ब्लॉगिंग के लिये हिन्दी सीखनी पड़ी। अब यह आलम है कि ट्विटर के चक्कर में अंग्रेजी री-लर्न करनी पड़ेगी! 🙂
ट्विटर पर भी पर्याप्त कचरा है, पर मुझे कुछ लोग वहां बहुत सार्थक करते दीख पड़े। शिवकुमार मिश्र वहां अपनी दुकान जम के जमाये हुये हैं। वहां पर वे अधिकतर अंग्रेजी में ठेलते दीखते हैं। हिन्दी में उनकी ट्वीट्स 20-25 परसेण्ट होती होंगी। वे भी मुख्यत: रोमनागरी में। शायद वहां उनकी जमात में अंग्रेजी वाले ज्यादा हैं। अमित गुप्ता भी वहां अंग्रेजी वाले हैं। संजय बेंगानी जरूर हिन्दी में ट्वीट्स करते दीखते हैं। जीतेन्द्र चौधरी और जगदीश भाटिया कस के जमे हैं वहां पर। बाकी कई लोग केवल अपने ब्लॉग की फीड भर सेट किये हैं, जिसे पोस्ट पब्लिश होने पर ट्विटर पर सूचनार्थ देखा जा सकता है।

कुछ दिन पहले मुझे ट्विटर पर तीन सज्जन मिले – 1. गिरीश सिंह, 2. शैलेश पाण्डेय और 3. शिव सिंह।
शिव सिंह तो उदग्र हिन्दुत्व वादी लगते हैं। अखण्ड भारत का नक्शा उनका प्रोफाइल चित्र है। लिखते हैं कि नकली सेकुलर वालों से उन्हे नफरत है, पक्का आरएसएस वाले हैं और जवान विचार हैं। उनका चित्र आदि पता नहीं, पर रुपया में चार आना उनके विचारों से तालमेल है। यह हो सकता है कि उदग्र हिन्दुत्व को ले कर भविष्य में कुछ टिर्र-पिर्र हो! शायद न भी हो, आखिर उदात्त हिन्दुत्व तो हमारी भी यू.एस.पी. है! 🙂
गिरीश सिंह की प्रोफाइल में है कि वे एक निर्यात फर्म के सी.ई.ओ. हैं। उनका स्वप्न सभी गांवो को इण्टरनेट से जोड़ने, सभी की साक्षरता और भारत को भ्रष्टाचार मुक्त करना है। नैसर्गिक रूप से स्वप्न देखने वाले मुझे प्रिय हैं। देखें उनके साथ कैसी जमती है। जमेगी ही।
शैलेश पाण्डेय सम्भवत: गाजीपुर-बनारस के जीव हैं। जैसा शिवकुमार मिश्र ने बताया, वे अपनी मोटरसाइकल पर देश भ्रमण कर चुके हैं। उनके ब्लॉग – अलख 2011 पर यात्रा विवरण, आदर्शवाद और उनका व्यक्तित्व ठिला पड़ा है। मैं वह बहुत पढ़ नहीं पाया हूं, पर बहुत प्रभावित अवश्य हूं। लगता है शैलेश एक ठोस चरित्र होंगे! हो सका तो भविष्य में उनकी मोटरसाइकल के पीछे बैठ कुछ यात्रायें करूंगा।
कुल मिला कर यह है कि ट्विटर पर सार्थक तरीके से (? 😆 ) समय नष्ट किया है मैने। इस 140 अक्षर की सीमा वाली विधा को कुछ समझा है और एक शुरुआत बनाई है। यह तो नहीं लगता कि अंतत: मैं अपनी कोई जबरदस्त पहचान बनाऊंगा ट्विटर पर; पर यह जरूर होगा कि अपने परिवेश और अपनी टुकड़े टुकड़े सोच को जरूर ठेल दूंगा वहां पर, भले ही उसके लिये मुझे अंग्रेजी री-लर्न करनी पड़े! 😆
हिन्दी ब्लॉगरी के बन्धुगण, आप वहां पंहुचेंगे सक्रियता के साथ या नहीं?
अपने को तो ब्लॉग ही भाता है
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कचरा और फूल सब जगह हैं…हाँ,कठिन है ठीक ठीक उसे चुनना…कुछ तो भाग्य की भी बात है…भाग्य प्रखर हो तो कचड़े में से भी जगह बना सकुशल फूल तक पहुंचा देता है…
ट्विटर पर कुछ ही दिन पहले कदम रखा है,पर सक्रियता न के बराबर है…लेकिन केवल अपने पोस्टों के सूचना के लिए इस मंच का प्रयोग मुझे बिलकुल भी सही नहीं लगता…
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जी हां। वह सही भी नहीं है और प्रभावी भी नहीं1
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