अनुराग जी ने मेरी पिछली पोस्ट के मद्देनजर मुझे गांधी टोपी पहना दी, ई-मेल से! भला मैं पहनने से इंकार कैसे कर सकता हूं – भले ही यह टोपी थोड़ी तिरछी लग रही है। 😆
Monthly Archives: Aug 2011
गांधी टोपी
बहुत अर्से से यह मुझे बहुत लिज़लिजी और भद्दी चीज लगती थी। व्यक्तित्व के दुमुंहेपन का प्रतीक! मुझे याद है कि एक बार मुझे अपने संस्थान में झण्डावन्दन और परेड का निरीक्षण करना था। एक सज्जन गांधी टोपी मुझे पहनाने लगे। मैने पूरी शालीनता से मना कर दिया और अपनी एक पुरानी गोल्फ टोपी पहनी।Continue reading “गांधी टोपी”
टाटा स्टील का विज्ञापन
टाटा स्टील का एक विज्ञापन यदा कदा देखता हूं – उनके एथिक्स कोआर्डिनेटर (क्या है जी?) के बारे में। मुझे नहीं मालुम कि ज्योति पाण्डेय कौन है। विज्ञापन से लगता है कि टाटा स्टील की मध्यम स्तर की कोई अधिकारी है, जिसकी अपने विभाग में ठीकठाक इज्जत होगी और जिसे विज्ञापन में अपना आइकॉन बनानेContinue reading “टाटा स्टील का विज्ञापन”
किताबी कीड़ा (किकी) – फॉर्ब्स इण्डिया रीडरशिप सर्वे
मैं किताबी कीड़ा (किकी) विषय को कण्टीन्यू कर रहा हूं। निशांत और कुछ अन्य पाठकों ने पिछले पोस्ट की टिप्पणियों में पुस्तकें खरीदने/पढ़ने की बात की है। हिन्दी में और हिन्दी के इतर भारत में बड़ा पाठक वर्ग है। पाठकों की रुचि/व्यवहार पर फॉर्ब्स इडिया ने पाठक सर्वे किया था/चल रहा है। फॉर्ब्स इण्डिया लाइफ ने Continue reading “किताबी कीड़ा (किकी) – फॉर्ब्स इण्डिया रीडरशिप सर्वे”
किकी का कथन
सतीश पंचम ने मुझे किकी कहा है – किताबी कीड़ा। किताबें बचपन से चमत्कृत करती रही हैं मुझे। उनकी गन्ध, उनकी बाइण्डिंग, छपाई, फॉण्ट, भाषा, प्रीफेस, फुटनोट, इण्डेक्स, एपेण्डिक्स, पब्लिकेशन का सन, कॉपीराइट का प्रकार/ और अधिकार — सब कुछ। काफी समय तक पढ़ने के लिये किताब की बाइण्डिंग क्रैक करना मुझे खराब लगता था।Continue reading “किकी का कथन”
सिकन्दराबाद-हैदराबाद से प्रस्थान
दिनांक 30 जुलाई रात्रि। अपने सैलून में – जहाज का पंछी, जहाज में वापस। दो दिन के सिकन्दराबाद प्रवास के बाद मैं अपनी रेल गाड़ी की प्रतीक्षा कर रहा हूं। मुझे आम यात्री की तरह प्लेटफार्म पर अनवरत चलने वाले अनाउंसमेण्ट के बीच एक आंख अपने सामान पर और दूसरी आने जाने वाले लोगों परContinue reading “सिकन्दराबाद-हैदराबाद से प्रस्थान”