टाटा स्टील का एक विज्ञापन यदा कदा देखता हूं – उनके एथिक्स कोआर्डिनेटर (क्या है जी?) के बारे में।

मुझे नहीं मालुम कि ज्योति पाण्डेय कौन है। विज्ञापन से लगता है कि टाटा स्टील की मध्यम स्तर की कोई अधिकारी है, जिसकी अपने विभाग में ठीकठाक इज्जत होगी और जिसे विज्ञापन में अपना आइकॉन बनाने में सहज महसूस करती होगी।
पर एथिक्स ऐसा विषय है जिसमें अपने व्यक्तित्व/चरित्र को समग्रता से न रखा जाये तो मामला गड्ड-मड्ड हो जाता है। एथिक्स कम्पार्टमेण्टमेण्ट्स में नहीं हो सकता। उदाहरण के लिये अगर आप अपने बच्चों के लिये आदर्श माता पिता नहीं हैं, अगर आप अपनी पुरानी पीढ़ी की फिक्र नहीं करते, अगर आप अपने पड़ोसियों के काम नहीं आते तो मात्र विभागीय एथिक्स को बहुत दूर तक नहीं ले जा सकते!
सो, ज्योति पाण्डेय (जो भी हों) यह समग्रता कितनी और किस प्रकार लाती हैं, जानने की उत्सुकता है।
[वैसे जब एथिक्स की बात चलती है तो चेन्ने की मकान बनाने वाली कम्पनी अलाक्रिटि [Alacrity] याद आती है। उसे कोई अमोल कारनाड़ जी ईमानदारी और नैतिकता के नियमों के आधार पर चलाते थे। नब्बे के दशक की बात है। मैने उनसे उनका कुछ लिटरेचर भी मंगाया था सन 1997 में। कालांतर में वह कम्पनी बन्द हो गयी। चोरकटई के जमाने में एथिक्स बड़ी विषम चीज है! ]
फिलहाल मैं रेलवे अस्पताल में भर्ती हूं। अगले एक दो दिन के लिये। मुझे तेज बुखार और रक्त में संक्रमण था। जिन डाक्टर साहब की छत्र छाया में हूं – डा. विनीत अग्रवाल; वे अत्यंत दक्ष और व्यवहार कुशल डाक्टर हैं। उनके हाथ में अपने को सौंप कर पूर्णत निश्चिंत हुआ जा सकता है – और वही मैं हूं। मुझे विश्वास है कि उनकी चिकित्सा के बाद मैं अस्पताल से निकलूंगा तो अपने प्रति पूर्णत आश्वस्त रहूंगा।
पचपन-छप्पन की उम्र में मधुमेह की पहचान हुई है! मैं भारत के सलेक्ट 5.1 करोड़ नागरिकों में स्थान पा चुका हूं। करेला, आंवला, येलोवेरा आदि भांति भांति के द्रव्यों/उत्पादों के विषय में देखने आने वाले सलाह ठेलने लगे हैं। अम्मा टेप बजाने लगी हैं – सब गरह हमहीं के घरे आवथ ( सब ग्रह हमारे ही घर आता है!)। अस्पताल में पोस्ट लिखना – पब्लिश करना अच्छा लग रहा है!
sheeghr swasthya labh karen
shubh kamnayen !
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क्या ये सच है? कृपया पता करके इस पर पोस्ट लिखिए
आज भी शकुन्तला एक्सप्रेस के लिए भारत सरकार ब्रिटिश सरकार को 1.20 करोड़ की रोयल्टी देती है |
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लिंक सम्भवत: सही नहीं है। दिखाता है –
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स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ.
एक ब्राह्मण ने कहा कि ये साल अच्छा है ….
जुल्म की रात बहुत जल्द ढलेगी अब तो,
आग चूल्हों में हर एक रोज जलेगी अब तो,
भूख के मारे कोई बच्चों नही रोएगा,
चैन की नींद हर एक शख्स यहाँ सोएगा,
आंधी नफरत की चलेगी न कहीं अब के बरस,
प्यार की फ़स्ल उगाएगी ज़मीं अब के बरस,
है यकीं अब न कोई शोर शराबा होगा,
जुल्म होगा न कही खून खराबा होगा,
ओस और धुप के सदमे न सहेगा कोई,
अब मेरे देस में बेघर न रहेगा कोई,
नए वादों का जो डाला है वो जाल अच्छा है,
रहनुमाओं ने कहा है कि ये साल अच्छा है !
दिल के खुश रखने को ग़ालिब ये ख्याल अच्छा है.
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नो सलाह- बस आपके शीघ्र स्वास्थ लाभ की कामना करता हूँ. ठीक हो जाईये, इन्तजार करते हैं फिर सलाह भी देंगे. 🙂
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यह दुनियाँ सलाह पर ही कायम है! 🙂
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