ब्लॉगिंग और टिप्पणी प्रणाली की स्केलेबिलिटी (बनाम अमर्त्यता)

ब्लॉगिन्ग और कमेण्टोलॉजी की स्केलेबिलिटी - मानसिक हलचल की पोस्ट

यह मेरी इस ब्लॉग पर 997वीं पोस्ट है। हजार के समीप होने पर विचार मन में आता है कि इस ब्लॉग के लिये किस प्रकार के यत्न मैने किये और किस प्रकार का नफा/आनन्द/किक मुझे मिला।

यह ट्रांजियेण्ट फेज भी हो सकता है। इस समय कोहासे कि खिचिर खिचिर में मालगाड़ियां खचर खचर चल रही हैं। सो किसी भी प्रकार का विश्लेषण बहुत ब्वायेण्ट (buoyant) नहीं हो सकता। पर जितनी समझ है, उसके अनुसार बहुत ऑफ-द-मार्क भी नहीं होगा।

ब्लॉगिंग, एक तरह से उपमा दी जाये तो प्रॉस्टीट्यूशन और रोमाण्टिक लव अफेयर के बीच की चीज है (अगर आप इस उपमा को वल्गर मानें तो इसे जर्राह और फीजियोथेरेपी की किताब के बीच की चीज मान सकते हैं)। प्रॉस्टीट्यूशन में एक व्यक्ति जितना समय व्यतीत करता है, उसके अनुपात में उसे मेहनताना मिलता है। अगर वह काम बन्द कर दे तो लाभ मिलना बन्द हो जायेगा। नॉन-स्केलेबल है वह काम। लव अफेयर में आपके प्रयत्न की स्केलेबिलिटी (scalability – सिस्टम का वह गुण जिससे काम के बढ़े स्तर पर भी कार्यकुशलता व्यक्तिगत क्षमता से कहीं अधिक बढ़ती जाती है)  है। एक बार के यत्न का भविष्य में लाभ मिलता रहता है।

ब्लॉगिंग में आपके प्रयत्न की स्केलेबिलिटी है तो, पर बहुत कम है। हिन्दी ब्लॉगिंग में तो आपके पाठक बहुधा आपके कमेण्ट करने की क्षमता पर निर्भर करते हैं।

आप सिरखुजाऊ लिखें और सिरखुजाऊ टिप्पणी करें, पर आपके पाठक आपकी (भले ही आपकी टिप्पणी कितनी छिछली हो) कमेण्टोलॉजिकल प्रॉवेस (comment-o-logical prowess) पर निर्भर करते हैं। यह जुड़वां गतिविधियां आप कम कर दें तो आप कालजयी ब्लॉगर की सीट से दन्न से नीचे टपक जाते हैं। अत: जो महाशय ब्लॉगिंग के बूते पर अपने आप को फन्नेखां मानने का गुरूर रखते हैं, वे हाईली मिस्टेकन (highly mistaken) हैं! :lol:

ब्लॉगिंग की तुलना में पुस्तक लेखन बहुत पुरानी विधा है। लोग पुस्तक लेखन में अपना हाथ आजमाते रहे हैं, दो भिन्न कारणों से। एक तो वह लोग होते हैं जो सौ-डेढ़ सौ पन्ने की दो तीन किताबें छपा कर अपने लेखक होने का ऑरा (aura) या झांकी रचने का यत्न करते हैं। दूसरे वे हैं जो सयास पुस्तक नहीं लिखते। पुस्तक उनके माध्यम से अपने को लिखवाती है। ये दूसरे प्रकार के लोग धन्य हैं और ये लोग बहुधा अपने जीवन के पार जीते हैं। दूसरे प्रकार की पुस्तक (और पुस्तक लेखक) की स्केलेबिलिटी जबरदस्त है।

इसी तरह, क्या ब्लॉगिंग में दूसरे प्रकार के लोग हैं, जिनके माध्यम से ब्लॉग अपने को प्रकटित करना चाहता है? नॉट मैनी! दूसरे, ब्लॉग अपने रूप में, आपके जीवन के पार नहीं जीता। अमूमन ब्लॉग तब तक जीता है, जब तक उसकी फीड अपडेट होती है। उसके बाद वह ब्लॉग नहीं रहता, आर्काइव हो जाता है।  जितना बढ़िया ब्लॉग आप बनायेंगे, उतना बढ़िया आर्काइव बनेगा। पर वह आपको जीवन के पार नहीं ले जायेगा।

इन लगभग हजार पोस्टों की यात्रा में सब तरह के अनुभव मैने किये हैं। ड्रजरी (drudgery) से लेकर ब्लिस (bliss) तक के अनुभव। पोस्ट लेखन में कहीं कहीं अपने को व्यक्त करने में पसीना छूटा। कई बार पोस्ट दर पोस्ट डिलीट भी हुईं। कई बार परिमार्जन के चक्कर में पोस्ट का कचरा हो गया। वह कचरामय पोस्टें आर्काइव की बदसूरती बढ़ाती उपस्थित हैं। कभी कभी मन होता है कि उन्हे डिलीट कर दूं – पर वे विद्यमान हैं अक्षमता और मिडियॉक्रोटी के प्रमाण के रूप में।

टिप्पणियों में जबरी प्रशंसा करने का छद्म (?) मैने नहीं रचा। एक फेज था, जब मैं अन्य ब्लॉगर्स का उत्साहवर्धन के लिये टिप्पणियां किया करता था। बहुत कुछ उस तरह जैसे समीरलाल और प्रवीण पाण्डेय किया करते हैं। पर समीरलाल रद्दी पोस्टों में भी साधुवादी अच्छाई ढूंढते हैं और प्रवीण एक आध फिलॉसॉफिकल वाक्य में टिप्पणी-धर्म निर्वहन करते हैं – जिसका पढ़ने वाला सुविधा/स्वादानुसार अर्थ लगा मगन रह सकता है। मैं वैसा नहीं कर पाया। अत: बहुत टिप्पणियों पर गुस्सा और वेदनायें बहीं। उनका मलाल नहीं है। लेकिन वह सब जारी रखने का अब मन भी नहीं होता। ब्लॉगिंग और कमेण्टोलॉजी की स्केलेबिलिटी की सीमायें जान चुका हूं। ज्यादा ब्लॉगिंग, ज्यादा कमेण्ट, ज्यादा फेसबुक/ट्विटर पर आदान-प्रदान मेरा क्लॉउट स्कोर बढ़ायेगा, पर क्लॉउट स्कोर की क्या अमर्त्यता?!

यह जो ब्लॉग है, इसी पेस से बहेगा! आशा है, बहेगा जरूर! स्केलेबिलिटी बहुत कम थी, है और वैसी ही रहेगी! लोग मिलेंगे, जो कहेंगे कि आपका ब्लॉग वे नियमित पढ़ते हैं। आपको अच्छा लगेगा। उनका रुका काम आप गदगद भाव से कर देंगे। पर आप उनकी प्रशंसा के आधार पर, अपने को फन्नेखां लेखक मानने की गलती करेंगे तो अपने रिस्क पर ही करेंगे! :lol:

हिन्दी ब्लॉगिंग में फन्नेखां है ही नहीं। और काफी समय तक होने की सम्भावना भी नहीं है।

यह छोटे आकार का पेड़ है हमारे दफ्तर के लॉन में। मेरा ब्लॉग भी बहुत कुछ ऐसा है। छोटे आकार का। जीवंत, पर पत्तियां चटक हरी नहीं हैं; पीलापन लिये हैं। और पेड़ लगता सुन्दर है। तभी तो लॉन में जगह पाये है!

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

51 thoughts on “ब्लॉगिंग और टिप्पणी प्रणाली की स्केलेबिलिटी (बनाम अमर्त्यता)

  1. लेखनी जब तक स्वांतःसुखाय के आवरण को धारण किये रहती है , उसका स्वरुप देखते ही बनता है | जिस क्षण रचनाकार प्रदर्शन की मानसिकता से सम्मोहित होने लगता है , उसकी मौलिकता , अस्मिता , जीवंतता, टिप्पणीकार और समालोचकों की मुहताज होने लगती है |
    हरेक रचनाकार आत्माभिव्यक्ति के प्रत्येक क्षण को जीना चाहता है | उसकी रचनाधर्मिता के प्रति समर्पण का मूल्यांकन करना शायद न्यायोचित नहीं जान पड़ता | उसकी कृति को किसी भी कसौटी पर कसने से पहले ,रचना के उदगम की प्रकृति का अन्वेषण आवश्यक प्रतीत होता है |
    आपकी लेखनी निर्बाध गति से बहती रहे ,इसी मंगलकामना के संग

    दिव्यांश

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    1. पता नहीं, हैरी पॉटर वाली जोआन केथेलीन रॉलिंग स्वांत: सुखाय लिखती हैं या नहीं। पर वो हैं फन्ने खाँ!

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      1. जब रचनाकार अपनी रचनाओं को बाजारीकरण की संस्कृति से प्रभावित हो कर उदघाटित करने लगता है तो उसे विशेषणों की परवाह कम और थैली के वजन की चाह ज्यादा हो जाती है |

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  2. जादुई आंकड़े तक पहुँचने की ढेर सी बधाई ….हिन्दी ब्लागिंग दरअसल निट्ठल्ले लोगों का आत्मालाप है ..समाज के दोयम दर्जा प्राप्त लोगों का प्रलाप -कम काज के लोग कब का ब्लागिंग छोड़ चुके -कुछ तो काल के बियाबान में खो गए कुछ बेहया यहाँ दिख कर भी अब लिखते नहीं …एक अपरिपक्व पाठक वर्ग के लिए क्यों बहुमूल्य समय जाया किया जा जाय …यह हिन्दी ब्लागिंग पर एक आलोचनात्मक टिप्पणी है –
    दूसरी बात यह है कि बहुत से उन लोगों के लिए जिनका जीवन में नौकरी करना ,बच्चों को पालने और भ्रष्टाचार करने के अलावा कोई मकसद नहीं था उन्हें एक और मकसद मिल गया जीवन को एक बड़ा आयाम देने का …..
    कुछ न करने से ,निठल्ला बने रहने से ,भ्रष्टाचार करते रहने से ,आत्मकेंद्रित जीवन जीते रहने के साथ या दीगर ब्लागिंग लाख गुना बेहतर है …..यह और बात है कि कई लोग प्रछन्न तरीके से इन्ही नकारात्मक बातों को यहाँ फैलाते रहते हैं …
    आश्चर्य है इस बार आप अनूप शुक्ल को छोड़ दिए ….,.

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    1. मैं तो सोचता था कि अनूप शुक्ल (या आप) यह कह सकते हैं कि अरे, फलाने हैं, ढ़िकाने हैं, ठिकाने हैं और हम हैं। तब आप इस तरह का स्टेटमेण्ट कैसे दे रहे हैं – “हिन्दी ब्लॉगिंग में फन्नेखां है ही नहीं। और काफी समय तक होने की सम्भावना भी नहीं है”।

      चैलेंज टेका जाये! :lol:

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  3. पायलागी गुरुदेव! एक हजारी बनने की अग्रिम शुभकामनाऐं और हार्दिक बधाईयाँ तथा ब्लॉगिंग जीवन के अनुभव साझा करने के लिए धन्यवाद! भले ही इस समय ब्लॉगिंग जगत में कोई फन्नेखाँ न हो, पर फन्ने खाँ तो एक न एक दिन कोई बनेगा ही! आप भी इस प्रतियोगिता में एक योग्य उम्मीदवार ठहरते हैं। सीट मिलने में कोई शक???

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    1. शक है। हिन्दी ब्लॉगरी में विलक्षणता के लिये हिन्दी की संस्थापित लिमिट्स के पार जा कर ही वह आयेगी। कम से कम मेरा ऐसा मानना है। वैसी प्रयोगधर्मिता नहीं दीखती। फेसबुक ने मामला और चौपटिया दिया है। :-)

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  4. ‘ब्लॉगिंग, एक तरह से उपमा दी जाये तो प्रॉस्टीट्यूशन और रोमाण्टिक लव अफेयर के बीच की चीज है ’…
    तो गोया किन्नर जाति के हैं!!!!!!!! हज़ारिका बनने की अग्रिम शुभकामनाएं॥

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  5. हिन्दी ब्लॉगिंग में फन्नेखां है ही नहीं। और काफी समय तक होने की सम्भावना भी नहीं है।

    वाह…वाह…लाख टके की बात कह दी है आपने…तभी हम अपने ब्लॉग को और खुद को फन्ने खां नहीं मानते…

    नीरज

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  6. आदरणीय पान्डेय जी, नमस्कार, इस पोस्ट पर आपने जाने या अनजाने में जिस प्रकार का व्यावहारिक ब्लाग्गिन्ग ग्यान वेब ब्लाग के क्रियेटरों के लिये उपलब्ध कराया है, उसके लिये अभिनन्दन /

    मुझे ब्लाग्गिन्ग करने का कोई अनुभव नहीं था, जब मैने ब्लाग्गिन्ग करने के लिये शुरुआती मन बनाया / चिकित्सा विग्यान से जीवकोपार्जन और इसी विषय से सम्बन्धित होने के नाते एक यही रास्ता ऐसा मिला, जहां ब्लागिन्ग के लिये हाथ आजमा सकता था / विषय भी बड़ा नीरस और बेजान / फिर भी मैने विचार किया कि लोग मेरा ब्लाग पढें या न पढें, कम से कम अपनी बात कहने या लिखने में क्या नुकसान है ? अगर पाठकों को लेख सामग्री ठीक लगेगी तो ब्लाग को इम्प्रूव करने मे मदद मिलेगी, वरना सबके काम की सामग्री कहीं न कहीं मिल ही जायेगी /

    सिल्सिला धीरे धीरे चला / आयुर्वेद , होम्योपैथी, एलोपैथी, प्राकृतिक चिकित्सा, मैग्नेट थेरपी, फिजियोथेरपी, आदि आदि के चिकित्सकों से मुलाकात होती रही और जब जब भी मुझे मौका मिला मै लिखता रहा /

    इसके साथ ही मैने अपने ई०टी०जी० आयुर्वेदस्कैन से सम्बन्धित शोध कार्य से प्राप्त आन्कड़ॊं को ब्लाग पर देना शुरू किया / आयुर्वेद की यह पहली और अकेली स्कैन्निन्ग विधि scanning system है , जो पिछले २४ साल से कानपुर शहर में मरीजों के लिये उपलब्ध है / ताज्जुब की बात यह है कि ऐसी तकनीक के बारे मे देश के मूर्धन्य वैद्यों और आयुर्वेद के धाकड़ से धाकड़ चिकित्सकों तक को इस तकनीक के बारे में पता नहीं है / मैने इस तकनीक से सम्बन्धित किये गये शोध कार्यों को लेख के रूप में प्रकाशन हेतु आयुर्वेद की प्रमुख पत्रिकाओं को प्रकाशन के लिये भेजा , लेकिन पत्र पत्रिकाओं में कुछ ने ही सामग्री प्रकाशित की / जब मैने ETG AyurvedaScan से सम्बन्धित सभी किये गये शोध कार्यों के परिणाम और लेख अपने ब्लाग पर देना शुरू किया, तब देश और विदेश के चिकित्सा वैग्यानिकों, चिकित्सकों, शोध करताओं का ध्यान इस तरफ गया और अब हाल यह है कि भारत में तो मेरे किये गये कार्य की आलोचना तो हुयी ही और साथ साथ भर्त्सना भी, लेकिन कृपणता के साथ appreciate करने वाले बहुत कम मिले / मैने सबको रास्ता दिखाया कि electrical Mapping of Human Body कैसे की जा सकती है, जिससे एक सस्ता और उपयोगी शारीरिक व्याधि निदान ग्यान के लिये उपकरण विकसित किया जा सके, इस कार्य के लिये विश्व के कई चिकित्सा शोध सन्सथानों में वैग्यानिक मानव शरीर का विद्युतीय नक्शा Body electrical mapping मापने का कार्य करने में जुटे है, कुछ के मै सम्पर्क में हूं /
    ब्लागिन्ग से यह एक फायदा हुआ जो पूरे विश्व के लोगों के हित से जुड़ा है / इसका दूसरा impact लोगों तक यह पहुन्चा कि आम जन यही समझते हैं कि आयुर्विग्यान में ही सारी बीमारियों का इलाज है / यह धारणा लोगों की बदली है / ब्लागिन्ग का तीसरा impact यह हुआ कि जिन बीमारियों को लोग ला-इलाज समझते थे , अधिकान्श लोग जानने लगे है कि ऐसी बीमारियों का इलाज सम्भव है / देश के विभिन्न राज्यों और विदेश से आने वाले रोगियों की बढती सन्ख्या यही बताती है /

    मुझे लगता है जैसे जैसे इन्टर्नेट का दायरा बढ़ता जा रहा है, लोग आने वाले समय मे ब्लाग पढेन्गे / हां, एक बात जरूर कहून्गा कि अगर आपके अन्दर व्यावसायिक प्रवृति है तो आप अपने ब्लाग को माध्यम बनाकर धनोपार्जन का जरिया भी बना सकते है /

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    1. रोचक! मानव शरीर की इलेक्ट्रिकल मैपिंग अनजाना विषय है। देखने का यत्न करूंगा आपके ब्लॉग पर सामग्री।
      धन्यवाद।

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  7. पालागी गुरुवर .. जल्द ही आप हज़ार की संख्या को पार कर आगे
    बड़े ..हम लोगो की शुभकामना आप के साथ है | अपने चिर परिचित
    पात्रो (जवाहिर , मुरारी वगेरा ) को न पाने से टिपण्णी संछिप्त है |

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  8. देखते हैं सचिन तेंदूलकर अपनी “Hundredth Century” पहले पूरी करते हैं या आप अपनी हज़ारवीं पोस्ट!

    शुभकामनाएं
    जी विश्वनाथ

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  9. ऑफ़ीशियल (क्योंकि आपने ही कहा है कि कई ड्रॉफ्ट पोस्टें आपने मिटा दिए, नहीं तो आंकड़ा कब का पार हो चुका होता..) 1000 वीं पोस्ट करीब ही है. तो अब आप बकौल प्रो-ब्लॉगर – आप सही में ब्लॉगर बन गए.
    बधाई!
    और, ब्लॉगिंग की बड़ी विचित्र, नायाब किस्म की उपमा आपने दी है, तो शायद वो कई मामलों में सही भी प्रतीत होती है.

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