
पण्डाजी हैं स्वराज कुमार पाण्डेय। उनके स्वसुर जी की गद्दी थी शिवकुटी के पण्डा की। स्वसुर जी के लड़का नहीं था, अत: स्वराज कुमार जी को गद्दी मिली दहेज में!
पहले पण्डाजी लाइटिंग-साउण्ड आदि का काम कराते थे। शादी व्याह, फंक्शन आदि में ठेकेदारी। उनको मशीनें ठीक करना आता है। मेरा भृत्य ऋषि कुमार बताता है कि बहुधा घर में पण्डाजी प्रेस-पंखा आदि ठीक करते पाये जाते हैं। पहले उनके एक दो विक्रम-टेम्पो आदि चलते थे। हो सकता है अभी भी चलते हों।
कुलमिला कर हरफनमौला जीव हैं स्वराज कुमार पांड़े।
आज रविवार को अपना मालगाड़ी परिचालन का काम खत्म कर दस बजे घाट की तरफ गया तो पाया कि पण्डाजी अभी भी घाट पर थे। कोई पुस्तक पढ़ते पाये गये। सर्दी से बचने के लिये स्वेटर-शॉल-टोपी-मफलर डाटे हुये थे।
उनसे मैने पूछा कि किसी नाव वाले को जानते हैं क्या?
काहे नाव की बात कर रहा हूं, उनके यह पूछने पर मैने बताया कि इस पार बहुत घूम देख लिया। अब गंगाजी में नाव के जरीये हिल कर देखने का मन है। रविवार के दिन यह काम हो सकता है। लगभग दस सवा दस बजे निकल कर दो घण्टा गंगाजी के पानी में नाव पर मटरगश्ती की जा सकती है। अगला रविवार 1 जनवरी का है, तब यह किया जा सकता है।
पण्डाजी ने कहा कि आस पास शराब लाने ले जाने वालों की नावें खड़ी रहती हैं। वे पूछ कर रखेंगे। दो घण्टे वे ही घुमा लायेंगे उनकी नाव में!
आपको नाव खेना आता है?! मेरे कहने में कुछ आश्चर्य था।
हां, सब आता है। ये तो घाट पर अब बैठकी हो गयी है, वर्ना सब कर रखा है। लाइट साउण्ड का आपका कोई काम हो तो वह भी बताइयेगा। माने, कोई पूजा पाठ, कीर्तन भजन में लाउड स्पीकर वगैरह लगाना हो! … नाव भी खे लेता हूं!
मैं पण्डाजी से इम्प्रेस हो गया। अगले रविवार के लिये उनसे इंतजाम करने का अनुरोध कर वापस लौटा। पण्डाजी भी अपनी गठरी बांधने लग रहे थे। बोले – खिचड़ी (मकर संक्रांति) के पहले तो समय ही समय है। माघ में (9 जनवरी के बाद) नहान और संकल्प की व्यस्तता हो जायेगी।


बढ़िया है …अब नौका विहार का आनन्द का वृतांत पढ़ा जायेगा.
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अब इस जमाने में केवल पण्डागिरी से तो काम चलने से रहा? सो, जहॉं भी गुंजाइश हो, हाथ मारने में क्या हर्ज है?
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बस यही तो अंतर है पंडा जी और पांडेय जी में… वो नाव खेते है और ये मालगाडी :)
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हमें भी एक घाट की गद्दी मिल जाये तो हम तर जायें! :D
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मल्टी-टास्किंग के एक्सपर्ट लग रहे हैं पंडा जी….
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शायद पण्डा जी को लगे इसमें क्या खास बात है, क्योंकि भला हो स्वीमिग पूल का वरना नदी किनारे वालों को तैरता देख कर भी बाकियों को आश्चर्य होता…
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पाण्डे जी ये पंडागिरी बहुत चोखा काम है। इस के साथ दस-पाँच बिजनेस चलाए जा सकते हैं। बैठे बैठे। वैसे हम भी जब बचपन में दद्दा जी के साथ मंदिर में रहा करते थे। ऐसे ही दस-पाँच काम सीख-साख गए थे। पर बिजनेस की अक्कल थी नहीं। सो सब काम मुफत में समाजसेवा में किए। ऊ काम खतरनाक है साबासी बहुत मिलती है लेकिन पैसा गाँठ का भी चला जाता है।
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अपने पारितन्त्र के महारथी हैं पण्डा जी, सब कुछ ग्रहण करते रहना चाहिये परिवेश से।
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Kitaab Kaun si padh rahe the Panda ji? Jaankaari ho to zaroor ‘share’ karein!
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ध्यान नहीं दिया। छपाई से गीताप्रेस की लगती थी।
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वाह! पंडा जी के बारे में नयी जानकारी रोचक है ..अब इंतजार है
अगली पोस्ट का ..उम्मीद है ..नाव भ्रमण पड़ने को मिलेगा |
प्रणाम गुरुदेव
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स्वराजकुमार जी को देख कर लगता है कि हर एक आदमी अपने में कितने गुण, कितनी सम्भावनायें लिये रहता है! उनके नाव चलाने का गुण देखने की लालसा तो मन में है!
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चकाचक हैं पण्डाजी! हम अभी-अभी बिठूर टहल कर आये हैं। फोटो सटाते हैं देखिये।
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