यह शहर का अंत है। शहर का उत्तरी-पूर्वी किनारा। लाइन शाह बाबा की मजार इलाहाबाद के मध्य में है – इलाहाबाद स्टेशन पर। शिवकुटी वहां से लगभग 15-18 किलोमीटर दूर है। वैसे भी यह स्थान शैव मन्दिरों और गंगा के तट के कारण है। किसी इस्लामी या सूफी सम्प्रदाय के स्थान के कारण नहीं। पर लाइन शाह बाबा का यह फकीर यहां यदा कदा चला आता है। उसी ने बताया कि पन्द्रह बीस साल से आ रहा है और हमारे घर से उसे कुछ न कुछ मिलता रहा है।

वह बात जिस जुबान में करता है, उसमें उर्दू का बाहुल्य है। कुछ कुछ कम समझ में आती है। पर मैं उसका पहनावा और मैनरिज्म देख रहा था। कुरता-पायजामा पहन रखा था उसने। सिर पर स्कल कैप से कुछ अलग टोपी। गले में लटकाया लाल दुपट्टा। बगल में एक भरा-पूरा झोला और पांव में कपड़े के जूते। एक कद्दू की सुखाई आधी तुमड़ी थी, जिसे एक पेटी से सामने पेट पर फकीर ने लटका रखा था और जिसमें भिक्षा में मिला आटा था। बोलने में और हाथ हिलाने में नाटकीय अन्दाज था उस बन्दे का।
घर के अन्दर चला आया वह। एक कप चाय की मांग करने लगा। उसमें कोई खास परेशानी न थी – मैने अपने लोगों से एक कप चाय बना कर देने को कह दिया। तुलसी के चौरे पर टेक ले कर बैठ गया वह। उसके बाद अपना वाग्जाल बिछाना प्रारम्भ किया उसने।

आपके लड़के की सारी तकलीफें खत्म हो जायेंगी। बस एक काले घोड़े की नाल लगवा लें घर के द्वार पर। और फिर अपने पिटारे से एक नाल निकाल कर दे भी दी उसने। मेरी पत्नीजी ने पूछना प्रारम्भ किया – उनका भाई भदोही से विधान सभा चुनाव लड़ रहा है, उसका भला होगा न? फकीर को शायद ऐसी ही तलब की दरकार थी। अपनी प्रांजल उर्दू में शैलेन्द्र (मेरे साले जी) के चुनाव में विजयी होने और सभी विरोध के परास्त होने की भविष्यवाणी दे डाली उस दरवेश ने। उसने लगे हाथ अजमेर शरीफ के ख्वाजा गरीब नेवाज से भी अपना लिंक जोड़ा और पुख्ता किया कि जीत जरूर जरूर से होगी।
यह जीत की भविष्यवाणी और बेटे के भविष्य के प्रति आशावादी बातचीत अंतत: मेरी पत्नीजी को 250 रुपये का पड़ा।

हज़रत लाइन शाह बाबा के फकीर नें फकीरी चोले और लहजे को कैसे भुनाया जाता है – यह मुझे सिखा दिया। आज, रविवार, की यह रही उपलब्धि!
फिलहाल क्या हुआ आपके साले की विधायिकी का??
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समाजवादी पार्टी के केण्डीडेट से वह हार गया!
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मतलब साले साहब हारे तो हारे, ढाई सौ रुपैये का चूना अलग से लग गया…
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🙂
वैसे 250.- में अनुभव बुरा नहीं! वह घोड़े की नाल अभी भी दीवार पर लगी है! 🙂
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ढाई सौ रुपये में सौदा बुरा तो नहीं!!
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जय हो! सोच रहा हूँ कि ऐसे एक बाबाजी कृपालु हो जाएँ तो हम भी दो-चार इलेक्शन लड़ लूं.
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lovely photos!
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सौदा बुरा नहीं है ढाई सौ रुपये में। 🙂
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🙂
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