यहाँ ममफोर्डगंज में पीपल के पेड़ के नीचे एक हाथी रहता था। चुनाव की घोषणा होने के बाद उसे नहीं देखा मैने। सोचा, शायद बहुजन समाज पार्टी के प्रचार में लग गया होगा।

अन्यथा दफ्तर जाते हुये उसे पीपल के पेड़ के नीचे देखा करता था। एक पैर लोहे के जंजीर से बंधा रहता था। कभी कभी उसका मेक अप किया मिलता था और कभी सादी अवस्था में। एक दो बार उसे सड़क पर चलते देखा था।
पेड़ के नीचे वह पीपल या किसी अन्य पेड़ के पत्ते खाया करता था।
बहुत दिनों से मैं उस हाथी को मिस कर रहा था।
अचानक आज सवेरे मुझे दूर से ही दिखा कि हाथी अपने स्थान पर वापस आ गया है। मोबाइल बड़े मौके पर निकल आया और चलते वाहन से एक तस्वीर ले पाया मैं उसकी। एक दिन पहले ही उस स्थान का चित्र चलते वाहन से लिया था, जब वह नहीं था!

बहुत अच्छा लगा ममफोर्डगंज में उस हाथी को अपने स्थान पर वापस देख कर। उसके रखवाले-महावत भी पास में बैठे दिखे। हाथी अपने कान फड़फड़ा रहा था –
हथिया रे हथिया तोर बड़े बड़े कान। (ओनसे) तोर माई पछोरई नौ मन धान। (हाथी रे हाथी, तेरे बड़े बड़े कान हैं। उन्हे सूप की तरह प्रयोग करते हुये तेरी मां उससे नौ मन धान साफ करती है!)
सधा हुआ फोटो! सधी हुई पोस्ट!
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हाथी तो आज की पोस्ट का हीरो हो गया 🙂
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जब से बहन जी की पार्टी ने उसे अपना चुनाव चिन्ह बनाया है पूरा हाथी समाज दुखी है दरअसल वो अपने आप को स्वर्ण समझ रहे थे और बन गए दलित…हाथी सोचते हैं हमारी छवि बिगड़ी गयी है…हम इंसान का बोझा ढोने या सूंड उठा कर सलाम करने वाले नहीं हैं हम तो अलमस्त प्राणी हैं जिसके रास्ते में जो आता है उसे कुचल डालते हैं…बहुत नाइंसाफी की है बहन जी ने हाथियों के साथ… वो अपना निशान बकरी क्यूँ नहीं बना लेती…अब हाथियों के इस प्रश्न का जवाब कौन देगा? 🙂
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🙂
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आपकी इस पोस्ट को कपड़ा उढ़ाने का फरमान आने पर क्या उपाय कीजियेगा…
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अगर चुनाव आयोग ढंकने को कहे तो मैं गौरव महसूस करूंगा! 🙂
अन्यथा मैं अपनी पोस्ट को इतना बड़ा नहीं मानता कि वह लेवल प्लेइंग फील्ड को डैमेज कर सके।
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“हथिया रे हथिया तोर बड़े बड़े कान। (ओनसे) तोर माई पछोरई नौ मन धान। ”
ये छत्तीसगढी़ मे ही है या किसी और बोली मे ? बचपन मे ननीहाल मे कुछ ऐसा ही सुना हुआ याद आ रहा है! 😀
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यह तो अवधी है। मेरे स्थान की भाषा। निश्चय ही छत्तीसगढ़ी में भी ऐसा कुछ होगा जरूर। हाथी के कान देख ऐसा ही बोलने का मन करता है सबका!
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चुनाव आयोग की नजर नहीं पड़ी अब तक!
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हाथी की फोटू खींच पाने के लिए आपको बधाई।
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आपको बधाई देने के लिये धन्यवाद।
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हाथी लौट आया हमारी भी चिंता दूर हुई. …यूपी में चुनाव का टाइम है, ऐसे में हाथी जैसे जीव के साथ राजनैतिक/ संवैधानिक/ दुर्घटना का अंदेशा बना रहता है. 🙂
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हां, मुझे भी व्यग्रता थी! 🙂
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यह तो शायद ममफोर्डगंज चौराहे से जगराम चौराहे के बीच वाला चौराहा है …क्या ?
क्योंकि यहाँ हमने सन ९३-९७ के बीच हाथी देखे थे !
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हां यह वही जगह है। मैं भी दशकों से वहां हाथी देखता आया हूं।
गंगाजी के अलावा बाकी जगह के फोटो मेरे द्वारा सामान्यत चलते वाहन से लिये जाते हैं, सो आदत पड़ गयी है मोबाइल साधने की!
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