ममफोर्डगंज में पीपल का पेड़ और हाथी

यहाँ ममफोर्डगंज में पीपल के पेड़ के नीचे एक हाथी रहता था। चुनाव की घोषणा होने के बाद उसे नहीं देखा मैने। सोचा, शायद बहुजन समाज पार्टी के प्रचार में लग गया होगा।

ममफोर्डगंज, इलाहाबाद में वह स्थान जहां हाथी रहता था, पीपल के पेड़ तले। बहुत दिनों से वह नहीं था यहां।

अन्यथा दफ्तर जाते हुये उसे पीपल के पेड़ के नीचे देखा करता था। एक पैर लोहे के जंजीर से बंधा रहता था। कभी कभी उसका मेक अप किया मिलता था और कभी सादी अवस्था में। एक दो बार उसे सड़क पर चलते देखा था।

पेड़ के नीचे वह पीपल या किसी अन्य पेड़ के पत्ते खाया करता था।

बहुत दिनों से मैं उस हाथी को मिस कर रहा था।

अचानक आज सवेरे मुझे दूर से ही दिखा कि हाथी अपने स्थान पर वापस आ गया है। मोबाइल बड़े मौके पर निकल आया और चलते वाहन से एक तस्वीर ले पाया मैं उसकी। एक दिन पहले ही उस स्थान का चित्र चलते वाहन से लिया था, जब वह नहीं था!

आज सवेरे उस हाथी को कई सप्ताह बाद मैने फिर नियत जगह पर देखा। उसके रखवाले-महावत भी वहां थे। प्रसन्नता की बात है न?!

बहुत अच्छा लगा ममफोर्डगंज में उस हाथी को अपने स्थान पर वापस देख कर। उसके रखवाले-महावत भी पास में बैठे दिखे। हाथी अपने कान फड़फड़ा रहा था –

हथिया रे हथिया तोर बड़े बड़े कान। (ओनसे) तोर माई पछोरई नौ मन धान। (हाथी रे हाथी, तेरे बड़े बड़े कान हैं। उन्हे सूप की तरह प्रयोग करते हुये तेरी मां उससे नौ मन धान साफ करती है!) 

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

26 thoughts on “ममफोर्डगंज में पीपल का पेड़ और हाथी

  1. हाथी की बड़ी सोच है हमे , आपका हाथी जिंदा वापस आ गया , नही तो क्या पता कल बुत के ही दर्शन कर पाते , फिर भी बुत तो बन कर ही रहेगा , क्यों की उनकी दिलचस्पी जिंदा चीज़ों की बूतों मे है ,और एक महाशय तो कह रहे थे , यह मुआ नोटों की गडीयाँ भी खा जाता है , अब उनको क्या पता ,भई साहकारी प्राणी है किसी का खून थोड़े ही न पिएगा, और भाई ऐसी हवा चली की हाथियों का भी धर्म परिवर्तन करवा दिया गया , सबको मुस्लिम बना कर बुर्क़ा पहना दिया गया , बड़े अफ़सोस की बात है सारी दुनिया के हाथ एक हाथी के पीछे ही क्यों पड़े हैं ? इस शान की सवारी को कुत्ता बना दिया , जो मर्ज़ी बोलता है , ज़रा भोंक के तो दिखाओ, मुझे तो लगता है आपका हाथी राजनीति की दल दल मे बुरी तरह फँस चुका है , सुंड समेत ज़मीन मे धँस चुका है , बस कुच्छ बुलबुले से उठते नज़र आ रहे हैं , ताजुब नही है कल यहाँ टाटा का छोटा हाथी (टेंपो) खड़ा होगा , और आपको चिढ़ा रहा होगा की अब खेँचो फोटो , संसकृति बदल रही है , प्रकर्ती बदल रही है , जानवरो की जगह तेज़ी से मशीन ले रही हैं , क्यों की इंसान मशीन बन गया है
    स धन्यवाद
    आपका सुभेर्थि

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  2. चलो, चैन मिला…हाथी वापस आ गया…..बाँध दिजिये अब..वरना फिर लखनऊ पहुँचा तो बहुते उत्पात मचायेगा.

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    1. हाथी न पंहुचे तो साइकल पंहुचेगी। वह घण्टी बजा बजा कर कान खा जायेगी! :-)

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  3. ममफोर्डगंज के हाथी को लेकर अपने इलाहबादी जमानें में बड़े कानूनी फसाद हुए थे….मगर अब हाते में भी हाथी यूपी में तो कम से कम क़ानून से परे हैं ….जब तक सूप का सूपड़ा साफ़ न हो जाए!

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  4. पिछले चुनाव तक तो हाथी नहीं गणेश था, देखिये इस चुनाव के बाद क्या होता है।

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  5. सबसे पहले तो दाद देता हूँ आपके हुनर की, जो आप चलते वाहन से भी साफ-सुथरी फोटो खींच लेते हैं और वह भी सही कोण से। यह आसान काम तो नहीं है!

    मुझे लगा कि आपने कोई हाथी मोल लिया है, किन्तु पोस्ट पढ़ी तो कुछ और ही निकलकर सामने आया। फिर भी बङा खुशकिस्मत रहा कि चुनाव आयोग की नज़र पङने से पहले ही मैं यहाँ पहुँच गया, वरना इतनी सुन्दर पोस्ट को पढ़ने से महरूम रह जाता।

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  6. फोटो तो बेहतरीन है जब की मोबाईल से खींची गयी है. मैं चिंतित हूँ उस गवु को लेकर जो पीछे चर रही है. शायद उसे आदत पड़ गयी होगी.

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    1. इस जगह पर कई बार मैं कुछ भैंसों को बंधा पाता हूं। मेरे ख्याल में उनमें कोई क्लैश ऑफ इण्टरेस्ट नहीं है!

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  7. गुलाबी रंग की साडी से इसको भी लपेटा क्यों नहीं गया…. :) आपकी इस पोस्ट के लिंक को चुनाव आयोग को प्रेषित करना चाहिए ..:)

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