दिघवट का टीला – 2600 साल पहले का अतीत और वर्तमान

मेरे घर (गांव विक्रमपुर कलां, तहसील औराई, जिला भदोही, उत्तरप्रदेश) से दिघवट लगभग 6-7 किलोमीटर दूर है। पहले सड़क मार्ग बहुत खटारा था,अब अच्छा हो गया है। नयी सरकार ने सडकें फिर से बनवाई भी हैं और जहां रिपेयर से काम चलता था, वहां बहुत हद तक कराया भी है। अत: वहां तक जाने-आने में कोई खास दिक्कत नहीं हुई मुझे।

मेरे घुटने के दर्द के बावजूद, वहां तक साइकिल चलाने और टीले पर चढ़ने में कोई परेशानी नहीं हुई।

इस टीले के बारे में डा. रविशंकर ने भदोही जिले के आर्कियॉलॉजिकल साइट्स के अपने शोध प्रबन्ध में जिक्र किया है। वहां जा कर देखा तो ईंटें और मृद्भाण्ड-खण्ड वैसे ही मिले जैसे अगियाबीर के टीले पर दिखाई देते थे। बाद में रविशंकर जी से फोन पर बातचीत भी हुई तो उन्होने बताया कि टीले पर 600BCE से मानव बसावट के चिन्ह हैं।DSC_1103[दिघवट के टीले की एक कटान में मृद्भाण्ड और ईंटों के अंश देखे जा सकते हैं]

टीले के पश्चिम में विस्तृत भूमि – राजन भाई के अनुसार 500 बीघा – निचली (low lying) है। रविशंकर जी के अनुसार यह झील रही होगी। बड़ी झील। ईंटवां – भीटी के बीच नाला गंगा में जा कर मिलता है। यह झील उस नाले के माध्यम से गंगा नदी से जुड़ी हुई थी। सम्भवत: ढाई हजार साल पहले यह नाला और चौड़ा रहा हो। एक विस्तृत वाटर-वे रहा हो। दिघवट के कोट की प्राचीन ऐतिहासिक बस्ती का यह आवागमन का साधन रहा होगा। यहां से गंगा और गंगा नदी से पूरे उत्तरापथ से जुड़ा रहा होगा दिघवट।DSC_1124[टीले के पश्चिम में निचली जमीन (झील) का विस्तार। यहां वनस्पति है पर कोई निर्माण नहीं]

डा. रविशंकर जी ने बताया कि उनके शोध कार्य के दौरान ही टीले पर निर्माण का काम हो रहा था और टीले की बहुत सी मिट्टी काट दी गयी थी।

निर्माण और पुरातत्व में छत्तीस का आंकड़ा है। बहुत सी आर्कियालॉजिकल साइट्स निर्माण/विकास और मिट्टी बेचने वाले माफ़िया की बलि चढ़ गयी हैं। मैने दिघवट के टीले पर भ्रमण के दौरान पाया कि यहां से भी बहुत कुछ पुरातन नष्ट हो गया है। टीले पर या तो इमारती निर्माण हुआ है या जमीन समतल करने के लिये बहुत सी मिट्टी गहरे में छील दी है।

DSC_1101 [यह जमीन समतल खेत बनाने के लिये करीब 8 फ़ुट गहरी काट दी गयी है दिघवट के टीले पर।]

टीले पर पता चला कि अस्सी के दशक में यहां एक साधू आये थे – स्वामी प्रवीणानन्द। दक्षिण भारतीय मूल के थे पर हिन्दी बहुत अच्छी बोलते थे। रामकृष्ण मिशन से जुड़े थे। मिशन के अस्पताल चलाने का गहन अनुभव था उन्हें। वे जवान थे, ऊर्जा से भरे हुये। कई देसी-विदेशी भाषाओं के जानकार और वाणी के द्वारा लोगों को प्रभावित करने की जबरदस्त क्षमता थी उनमें। किसी कारण से रामकृष्ण मिशन से उनके मतभेद हो गये थे। वे वहां से अलग हो कर इस क्षेत्र में घूम रहे थे। उनके मन में दृढ़ इच्छा थी कि एक निस्वार्थ सेवा का अस्पताल खड़ा करेंगे।DSC_1138
[टीले पर स्वामी प्रवीणानन्द का चित्र]

प्रवीणानन्द मेरे स्वर्गीय स्वसुर जी के सम्पर्क में आये। उन्होने मेरे स्वसुर जी से कहा कि इलाके के लोगों से उनका सम्पर्क करा दें। उसके बाद उन्हें प्रभावित करना, धन संग्रह करना, जमीन का इन्तजाम करना और अस्पताल खड़ा करना वे कर लेंगे। मेरे स्वसुर जी इलाके के प्रभावशाली व्यक्ति थे। उन्होने इलाके में लोगों से उनका परिचय कराया। बम्बई में भी कई रुसूख वाले लोगों से उन्हें मिलवाया। और बहुत कम समय में दिघवट के टीले की 16 बीघा ग्रामसभा की जमीन का पट्टा उन्होने हासिल कर लिया। अस्पताल भी खड़ा कर लिया। चलने भी लगा।

जुनूनी व्यक्ति थे प्रवीणानन्द जी। लोगों ने बताया कि अस्पताल बनाने के लिये धन एकत्र करने के उपक्रम में उन्होने मुर्गी और सूअर पालन भी किया था। किसी भी कार्य को निषिद्ध नहीं माना उन्होने। 

पर स्वामी जी स्वयम् मधुमेह और हृदय रोग से ग्रस्त हो गये। अपने प्रॉजेक्ट को पूरी तरह पल्लवित नहीं कर पाये। हार्ट अटैक से उनकी मृत्यु हो गयी। उनके बाद उनके साथी न उतने सक्षम थे, न उनमें लक्ष्य के प्रति ईमानदारी थी। जितनी तेजी अस्पताल और आश्रम खड़ा हुआ, उतनी तेजी से डिसयूज में आ गया।DSC_1099[विवेकानन्द मिशन की इमारत, जिसका साइनबोर्ड भी बदरंग हो गया है।]

लगभग एक घण्टा वहां गुजारने में मुझे बहुत जानकारी नहीं मिल सकी। मोटा मोटा अनुमान हो गया प्रवीणानन्द और अस्पताल के बारे में।

दिघवट के टीले पर अस्पताल है, जिसके साइनबोर्ड की लिखावट धूमिल हो गयी है। एक केयर टेकर दिखे दक्षिण भारतीय। उन्होने बताया कि महराजगंज के कोई डाक्टर (डा. चौरसिया) वहां आते और बैठते हैं। थोड़ा बहुत उपचार ग्रामीणों का होता है। स्वामी प्रवीणानन्द ने डाक्टरों और पैरामेडिकल स्टाफ़ के रहने के लिये एक बड़ी इमारत बनाई थी, उसमें अभी एक स्वयम् सेवी संस्था – एम फॉर सेवा – ने एक हॉस्टल खोला है जिसमें 54 गरीब बच्चे रखे हैं। उनके रहने-खाने और शिक्षा का खर्च और प्रबन्धन यह संस्था करती है। संस्था अपना एक बिल्डिंग वहीं बना रही है। जब बन कर तैयार होगी इमारत, तब वे यह अस्पताल की इमारत खाली कर देंगे।DSC_1114[एम फॉर सेवा – aimforseva.org – के द्वारा चलाये जा रहे हॉस्टल के बच्चों के साथ राजन भाई और मैं]

मुझे यह स्पष्ट नहीं हुआ कि जमीन का प्रबन्धन कैसे हो रहा है। अगर 16 बीघा जमीन प्रवीणानन्द जी के विवेकानन्द मिशन अस्पताल के नाम है तो यह एनजीओ उस जमीन का किस प्रकार उपयोग कर रहा है? पर जो मुझे अच्छा लगा, वह था 54 बच्चों के वहां साफ़-सुथरे वातावरण में रहने और शिक्षा की व्यवस्था हो गयी थी।DSC_1119[एम फॉर सेवा नामक संस्था का बन रहा हॉस्टल]

मैने प्रवीणानन्द जी का रिहायशी स्थान भी देखा। वहां गांव के कोई व्यक्ति इन्तजाम देखते हैं। कोई स्वामी जी हैं जो बनारस में रहते हैं और आते जाते हैं। ट्रस्ट के कर्ताधर्ता वे हैं।

राजन भाई ने टीले के नीचे बसे दिघवट गांव में एक सज्जन श्री सीताराम तिवारी से मिलाया। श्री तिवारी मेरे स्वसुर जी के मित्र थे। इस समय लगभग सेमी-रिटायर्ड जिन्दगी है उनकी कलकत्ता में अपने व्यवसाय से। उनका ह्वाइट-गुड्स का कारोबार है। अब काम लड़के देखते हैं। जैसा बातों से लगा – व्यवसाय पर उनकी पक्की पकड़ है। बड़े ही विनम्र स्वभाव के हैं सीताराम तिवारी जी। जब मुझे पता चला कि मेरे स्वर्गीय स्वसुर जी के भाई सरीखे थे वे; मैने उनका चरण स्पर्श किया।

DSC_1140[श्री सीताराम तिवारी]

सवेरे आज भ्रमण में लगभग ढाई घण्टा लगा। सामान्य से एक घण्टा अधिक। इस भ्रमण में बहुत सी जानकारी मिली और बहुत से प्रश्न भी उठे। आगे कई चक्कर लगेंगे दिघवट के।

दिघवट का अतीत – 2600 साल पहले का मानव जीवन; और आज का इतिहास – प्रवीणानन्द स्वामी का धूमकेतु कि तरह आना और जाना; दोनो ही रोचक हैं। हां, टीले पर वनस्पति भी आकर्षित करती है। कभी डा. रविशंकर के साथ बैठना हुआ तो उसपर भी चर्चा होगी। डा. रविशंकर पुरातत्व के साथ साथ इस विषय में भी गहरे जिज्ञासु हैं और ज्ञानी भी।DSC_1131[दिघवट टीले पर यह वनस्पति, जाने क्या है।]


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

4 thoughts on “दिघवट का टीला – 2600 साल पहले का अतीत और वर्तमान

  1. अंतिम चित्र में दिघवट टीले पर वनस्पति रतनजोत की एक प्रजाति है। वानस्पतिक नाम है Jatropha gossypiifolia. अंग्रेज़ी में इसे Bellyache bush कहा जाता है। इसके बीज अरण्ड या रेंड़ी जैसे होते हैं और भूलवश इन्हें खा लेने पर पेट मे तेज़ दर्द और उल्टी हो सकती है। कई घटनाओं में जहरीला फल खाकर बच्चों की मृत्यु के पीछे यही कारण होता है। इसकी एक अन्य प्रजाति Jatropha curcas को बायोडीजल प्लांट के नाम से भी जाना जाता है।

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  2. जब अस्पताल का भवन उपलब्ध है तो यहां मरीजों का इलाज भी होना चाहिए। यदि सरकार से कोई सहायता न मिले तो क्षेत्रीय लोगों को मिल कर अस्पताल चलाना चाहिए। कोई अच्छा मंदिर पास में हो उसके मैनेजमेंट को अस्पताल चलाना चाहिए। स्वामी प्रविनानंद जी द्वारा किये गए अच्छे काम को यूं ही बर्बाद नहीं होने देना चाहिए।

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    1. कुछ लोग, जैसा मैने देखा, वैसा प्रयास कर रहे हैं।
      आपकी भावना समझ सकता हूं मैं।

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