ढूंढ़ी यादव की चुनाव चर्चा

ढूंढ़ी यादव से मेरी पहली मुलाकात गांव में गुड़ की तलाश में हुई थी। तब ढूंढ़ी हाईवे के किनारे कड़ाहा में गुड़ बना रहे थे। आज से तीन साल पहले की बात है। उनसे मैने थोड़ा सा गुड़ मांगा तो उन्होने कहा कि बन जाने पर शाम को दे जायेंगे। लगा, कि जानपहचान न होने पर वे मुझे यह कह कर टरका रहे हैं। पर शाम को वे (पर्याप्त) गुड़ के साथ मेरे घर पर उपस्थित थे। ढूंढ़ी का इस प्रकार आना और बिना परिचय के गुड़ देना मुझे गांव की अच्छी इमेज मन में बनाने में सहायक बना।

उसके बाद आते जाते ढूंढ़ी से प्रणाम-नमस्कार होने लगा। मेरी उम्र के होंगे ढूंढ़ी। इसलिये यह गांव मेरा ससुराल होने के कारण मुझे जीजा कह कर बुलाते हैं वे।

आज ढूंढ़ी शिवाला के पास यूनियन बैंक के सामने विनोद की चाय की चट्टी पर दिख गये। अखबार पढ़ रहे थे। मुझे बोले कि सवेरे सवेरे यहीं चले आते हैं चाय पीने। इसके अलावा लगन बरात का मौसम है, चुनाव का भी मौसम है; इसलिये चाय की चट्टी पर आना बन ही जाता है।

अखबार खतम कर ढूंढ़ी ने मानो अपना पठन समापन का सम्पुट कहा – अब सरवन के मोंहें पर देखातबा कि हारत हयें (अब सालों के मुंह पर दिख रहा है कि हार रहे हैं)।

मुझे अखबार का पन्ना दिखा कर बोले – देख लो जीजा, इनके (मोदी और साथियों के) चेहरे से नहीं लगता कि खिसियाये हुये हैं?! और दूसरी तरफ गठबन्धन वाले सभी के चेहरे पर हंसी खुशी है। वैसे भी पांच साल बहुत होते हैं। अब सरकार बदलनी चाहिये।


मुझे अखबार का पन्ना दिखा कर बोले – देख लो जीजा, इनके (मोदी और साथियों के) चेहरे से नहीं लगता कि खिसियाये हुये हैं।

पास खड़े सेमारू यादव ने भी बिना अखबार निहारे हां में हां मिलाई। और क्या ढेर घमण्ड में आ गये थे ये सब। अब जायेंगे।

वे तीन दिन बाद अखिलेश-मायावती की रैली की बात करने लगे। उसके बाद तो हवा बिल्कुल पलट जायेगी। गठबन्धन का जीतना (जो तय है) और भी पक्का हो जायेगा।

यहां भदोही में गठबन्धन में बसपा का कैण्डीडेट है। कोई मिश्र। ब्राह्मण-सवर्ण जाति आधार पर। वह मन्त्री रह चुका है प्रदेश सरकार में। पर्याप्त भ्रष्ट बताया जाता है। भ्रष्ट है पर गुण्डा-माफ़िया नहीं है दूसरे मिश्र की तरह। दूसरा मिश्र विभिन्न दल कूदता फलांगता इसबार भाजपा का टिकट पाने के जुगाड़ में था। मिला नहीं। पर जिसे भाजपा ने टिकट दिया भी है, वह जातिगत समीकरण के आधार पर गणित बिठाने के लिये है। अन्यथा वह सांसद लायक गुण नहीं रखता। सवर्ण मत तो उसकी पर्सनालिटी के आधार पर नहीं पड़ सकते। उनके बीच वह प्रचार करता भी नजर नहीं आता। अगर मोदी-फैक्टर न हो तो उसका हारना तय है। पर मोदी का व्यक्तित्व बरास्ते “नोटा” बाभन ठाकुर बनिया को ईवीएम पर उंगलियां नचाते हुये अन्तत: कमल के फूल का बटन दबाने को बाध्य कर देगा। कई अन्य सीटों पर ऐसा हुआ है।

ढूंढ़ी और सेमारू का आज का चाय की चट्टी पर कथन मुझे और कमिट करवा गया – मरने दो उम्मीदवार को। भाजपा की संसदीय सेना में 25-50 असुर छाप सांसद भी आ जायें तो कोई बात नहीं। चुनाव तो प्रेसिडेंशियल ही है। मोदी पर रेफ़रेण्डम। वोट तो मोदी को ही जाना चाहिये।

ढूंढ़ी से मिल कर घर वापस लौटते समय मैं भाजपा के उस व्यक्ति को कोस रहा था, जिसने यह उम्मीदवार तय किया। पर गठबन्धन की आसन्न थ्रेट के प्रति मैं अधिकाधिक सजग बन गया था। एक मध्यवर्गीय व्यक्ति होने के नाते मुझे लगने लगा था कि अगर चुनाव परिणाम मोदी के पक्ष में नहीं गया तो देश का बड़ा नुक्सान होगा।

ढूंढ़ी का कथन मुझे अपनी वोट की च्वाइस तय करने में बड़ा सहायक हुआ। इसके अलावा यह भी मन ही मन में सोचा कि करीब 20-30 वोटरों को प्रेरित करने के लिये अपनी ओर से प्रयास भी करूंगा – भले ही किसी दल के प्रति मेरी कोई प्रतिबद्धता न हो।

धन्यवाद, ढूंढ़ी।


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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