झूला

यह बेंत का बना झूला करीब डेढ़ दशक पुराना है। बरेली से खरीदा हुआ। उस समय मैं इज़्ज़त नगर गया था रेलवे की ड्यूटी पर और वहीं से खरीद कर साथ लेता आया था। इसकी कड़ी गोरखपुर के रेलवे स्टाफ ने कहीं से अरेंज कर दी। उसके बाद यह हमारे ड्राइंग रूम या बरामदे का अभिन्न अंग बन गया। रिटायरमेंट के बाद यह गांव के इस घर का अंग बन गया है।

झूला

सोचने की प्रक्रिया को यह उत्प्रेरित करता है। इसपर बैठ कर धीरे धीरे हिलते हुए मन में विचार बहुत गहरे से उठते हैं। देर तक ठहरते हैं। मन चंचल नहीं रहता। मानसिक हलचल मंद बयार में हिलती लहरों की तरह होती है।

गुड़िया (नाम चितवन) आई थी मुंबई से। वह वहां डाक्टर है। सफल। मुझसे बीस साल छोटी होगी। मुंबई के किसी प्राइम लोकेशन पर उसका अच्छा फ्लैट है। पर वह शहरी स्नॉब नहीं है। बहुत प्रिय व्यक्तित्व है उसका।

मेरा मकान देख कर गुड़िया बहुत प्रभावित और प्रसन्न थी। अपने भाई से बोली – बगल के (उसके पिता के खेत में) एक ऐसा ही बंगला बनना चाहिए। और उसमें “ऐसा झूला इज़ ए मस्ट”।

पोर्टीको, जिसमें झूला लगा है।

झूले की मरम्मत पर हम ध्यान देते हैं। उसकी पॉलिश नियमित की जाती है। उसकी सुतली कसी जाती है। डस्टिंग पर नियमित रहा जाता है।

गांव की जिन्दगी में कुछ ही चीजें हैं, जिनमें सेंस ऑफ प्राइड है मेरा। मेरी साइकिल और मेरा झूला उसमें से प्रमुख हैं।

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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