कल की पोस्ट के बाद रीता पाण्डेय ने यह लिखा –
मेरी एक परिचित ने फोन पर पूछा कि अगर (गांव में) पित्जा खाने का मन हो तो मैं क्या करती हूं? उन्होने कहा कि वे लोग तो पित्जा और कोल्डड्रिंक के बिना रह ही नहीं सकते। वो तो गांव के इन चीजों के बिना जीवन की सोच भी नहीं सकतीं। मुझे उनपर हंसी आयी।
एक दूसरे परिचित ने कहा कि क्या ग्लैमरस लाइफ है आपकी। इतना बड़ा घर और इतनी हरियाली! बड़े शहर में तो इसका ख्वाब ही देख सकते हैं।

इन लोगों को अपने और गांव के बारे में यह सब याद आ रहा है कोरोनावायरस के चक्कर में।
गांव में कुछ दिन पहले कुछ यादव और कुछ दलित बस्ती के लोग किराये पर टेक्सी कर मुम्बई से भाग कर आये। दिहाड़ी कमाने वाले लोग हैं वे। जब वहां सब बंद हो गया तो रहने और जीविका के लाले पड़ गये। उनके आने पर गांव वालों ने नाराजगी जताई। बताते हैं कि अभी वे अपने घर में ही हैं और चुपचाप रह रहे हैं।
कुछ सवर्ण भी, जो बाहर नौकरी करते थे, अपने वाहन से परिवार समेत गांव आये। प्रश्न उठा, मन में, कि ये सब लादफांद कर गांव क्यों आ रहे हैं? पहले, हमारे बचपन में, स्कूल कॉलेज बंद होने पर हम लोग भाग कर गांव आते थे और गर्मियों में मजे में यहां रहते थे। अब मेट्रो शहरों में लॉकडाउन है। स्कूल कॉलेज, ऑफिस, बाजार, मनोरंजन के साधन और निकलने-घूमने की जगहें, सब बंद हैं। और दहशत और है, ऊपर से। इससे, जिसके पास विकल्प है, जिसके पास गांव में ठिकाना है; वह वापस दौड़ लगा रहा है (अगर चांस लग रहा है, तब)।
यह दहशत शहर वालों का ही रचा हुआ है! वहां है प्रदूषण, भागमभाग, अकेलापन और असुरक्षा। गंदगी शहर से गांवों की ओर बहती है। वह गंदगी चाहे वस्तुओं की हो या विचारों की। गांव में अभी भी किसी भी चीज का इस्तेमाल जर्जर होने तक किया जाता है। कचरा बनता ही कम है।
गांव की अपनी समस्यायें हैं – शिक्षा की या चिकित्सा की। पर ये भी प्रशासनिक फेल्योर का नतीजा हैं। मनरेगा में पैसा झोंक कर ग्रामीणों को विधिवत अकर्मण्य बनाया गया। और अब खेती जैसे मेहनत के काम में मन न लगना उसी के कारण है।
इन सब के बावजूद; अभी भी गांव सहज है, सामान्य है और जागरूक है। दहशत टेलीवीजन फैला रहा है। वैसे यह भी है कि कोरोनावायरस के प्रति जागरूकता भी टेलीविजन से ही आयी है। दूसरे, शहर से भाग कर गांव में आने वाले गांव को कहीं ज्यादा भयभीत कर रहे हैं। वर्ना, गांव की आंतरिक रचना में किराना, दूध, सब्जी जैसी रोजमर्रा की चीजों की कोई समस्या नहीं।

हां, पित्जा और कोल्डड्रिंक नहीं मिल रहा है! पर वह इस माहौल में तो शहरियों को भी नसीब नहीं है! 😆