नर्सरी से पौधे खरीदना आपके मायूस मन को भी प्रसन्न कर देता है। और जब वहां एक ऐसे व्यक्ति से आदान प्रदान (इण्टरेक्शन) हो, जिसे पौधों की जानकारी हो, और जो उनको अपने काम में गहराई से लगा हो, तो प्रसन्नता दुगनी-तिगुनी हो जाती है।
भारतीय रेल का पूर्व विभागाध्यक्ष, अब साइकिल से चलता गाँव का निवासी। गंगा किनारे रहते हुए जीवन को नये नज़रिये से देखता हूँ। सत्तर की उम्र में भी सीखने और साझा करने की यात्रा जारी है।
नर्सरी से पौधे खरीदना आपके मायूस मन को भी प्रसन्न कर देता है। और जब वहां एक ऐसे व्यक्ति से आदान प्रदान (इण्टरेक्शन) हो, जिसे पौधों की जानकारी हो, और जो उनको अपने काम में गहराई से लगा हो, तो प्रसन्नता दुगनी-तिगुनी हो जाती है।