ट्रकों की रफ्तार थामने वालों को थामा जाये

अपने नौकरी के दौरान मैंने अपना अधिकांश समय ट्रेन यातायात प्रबंधन के पदों पर व्यतीत किया है। ट्रेन यातायात में सवारी गाड़ियां तो टाइम टेबल के अनुसार चल जाती हैं। उनके संचालन में (अगर समय सामान्य है और बाढ़-कोहरा जैसी दशा नहीं है) बहुत मशक्कत नहीं करनी पड़ती। उनके उलट मालगाड़ी का परिचालन बहुत श्रमसाध्य काम है। उसके तनाव ने सेहत पर बहुत (दु:)प्रभाव डाला और उसकी भरपाई अब मैं साइकिल ले कर गांव की पगडण्डियों या हाईवे की सर्विस लेन पर घूम कर कर रहा हूं।

मालगाड़ी के परिचालन में जो तनाव का प्रमुख घटक होता था, वह मालगाड़ी का इंजन के साथ या इंजन काट कर किसी स्टेशन पर लूप लाइन भरते हुये खड़े हो जाना होता था। ट्रेन स्टेबल हो जाना परिचालन भाषा में अस्वास्थ्य सरीखा है। बहुत कुछ वैसे कि कोलेस्ट्रॉल बढ़े शरीर के रक्त संचार में रुकावट जो अन्तत: हृदय या ब्रेन को बीमार करती है।

जहाँ देखो, वहीं खड़े दिखते हैं ये लदे हुये ट्रक

जब मैंने रेलवे ज्वाइन की थी तो लदान की इकाई वैगन (मालगाड़ी का एक डिब्बा) हुआ करती थी। तब यार्ड में एक ही दिशा में जाने वाले वैगनों की शंटिंग कर ट्रेन बनती थी। उस समय यार्ड में पड़े सबसे पुराने डिब्बे से यार्ड की कार्यकुशलता मापी जाती थी। यार्ड मास्टर का मुख्य कार्य था कि यार्ड में आने वाली मालगाड़ियों को निर्बाध तरीके से स्वीकार करना और उनसे नयी मालगाडी शंटिंग कर जल्दी से जल्दी रवाना करना।

कालांतर में लगभग सारा लदान वैगन लोड से हट कर ट्रेन लोड का होने लगा और स्टेशनों/यार्डों में ट्रेनों की स्टेबलिंग मॉनीटर करना काम का एक मुख्य घटक होने लगा।

अब रिटायरमेण्ट के बाद मैं ट्रेनों के इर्दगिर्द कम ही जाता हूं। पर हाईवे की सर्विस लेन पर आते जाते मुझे बेशुमार ट्रक; अधिकांशत: लदे हुये ट्रक; यूं ही खड़े दिखते हैं। उन्हे देख कर मुझे अहसास होता है कि राष्ट्र का ग्रॉस डोमेस्टिक प्रॉडक्ट (जीडीपी) तीन चार प्वाइण्ट तो सड़कों पर ही सड़ रहा है।

बाबूसराय और कटका पड़ाव के बीच यह ट्रक जाने कब से खड़ा है। यह लदा हुआ ट्रक प्रतीत होता है। इसपर बेलें भी चढ़ गयी हैं।

सड़क यातायात का नियमन करने के जो भी विभाग हैं, उनका काम आपनी और राज्य सरकारों के अफसरों, नेताओं की जिंदगी “खुशहाल” बनाना है। उनकी परफार्मेंस में ट्रकों को तेज चला कर लोड/अनलोड के टर्मिनल पर पंहुचाना है ही नहीं। किसी इंस्पेक्टर, किसी हवलदार, किसी सिविल सर्वेण्ट को इस लिये जवाबदेह नहीं बनाया जाता कि सड़कों का निर्माण होते ही उनपर ट्रक स्टेबल होना क्यूं प्रारम्भ कर देते हैं?

सड़कों के निर्माण की प्रक्रिया में भी कुछ कमियां हैं। एक घटक निर्माण कर, सड़क की केपेसिटी बढ़ा कर दुरुस्त किया जाता है तो उसके आगे किसी नये स्थान पर जाम लगना शुरू हो जाता है। सौ किलोमीटर की सड़क दुरुस्त होती है तो कहीं कोई पुलिया चरमरा उठती है। बॉटलनेक्स दूर नहीं होते, वे मात्र शिफ्ट हो जाते हैं। :sad:

मैं सवेरे सात-आठ किलोमीटर नेशनल हाईवे 19 के सर्विस लेन से गुजरता हूं और इस आठ किलोमीटर की यात्रा में 70 से 150 तक ट्रक इधर उधर खड़े दिख जाते हैं। उनमें से खाली ट्रक इक्का दुक्का ही होते हैं। अर्थात, कोरोना संक्रमण से चौपट अर्थव्यवस्था में और भी योगदान ये लटकते पटकते चलते रुकते ट्रक कर रहे हैं। अगर ये न रुकें तो अर्थव्यवस्था की ग्रोथ कितनी बढ़ जायेगी, उसका अनुमान ही लगाया जा सकता है। ट्रांसपोर्टेशन में एक इकाई की बढ़त अर्थव्यवस्था को 2-3 इकाई की बढ़त आसानी से दे देती है।

सो, सरकारों को चाहिये कि इस बात पर ध्यान दें। ट्रकों का चक्का रोकने वाले सभी घटकों – चाहे वे भ्रष्ट सरकारी अमला हो या सड़क की जर्जर दशा से रुकने वाले ट्रकों की जाम की अवस्था हो; सम्बद्ध कर्मचारी/अधिकारी की ऐसी तैसी की जानी चाहिये।

सड़कें यातायात चलाने के लिये हैं। उन्हें रोक कर वसूली के लिये नहीं। जो वसूली करनी हो, वह लोडिंग/अनलोडिंग प्वाइण्ट पर होनी चाहिये। बीच में ट्रकों की रफ्तार थामने वालों को थामा जाना चाहिये।


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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