1 दिसम्बर 21, रात्रि –
सरवा के रामदेवबाबा पीर मंदिर में गोण्डल जाने वाले पदयात्री जत्थे ने प्रेमसागार के पांव से कांटा निकालने में बहुत मदद की। उनमें से सुरेश जी ने तो कांटा निकाल कर रात में तीन बार उठ कर पैर की गरम तेल से सिंकाई भी की। सवेरे तक प्रेमसागर ठीक हो गये थे। पैर में दर्द भी नहीं था। उस जत्थे के साथ निकलना हुआ तो कुछ देर हो गयी। उसके अलावा देर से निकलने का एक और भी कारण था कि सवेरे बारिश हो रही थी। उसके रुकने के बाद ही निकलना हुआ।
उन गोण्डल जाने वाले लोगों ने सवेरे चाय पिलाई, फिर रवाना हुये। उन्होने ऑफर दिया कि उनके साथ जसदाण तक चलें और साथ वहां रात्रि विश्राम करें। पर जसदाण 40 किमी दूर था और प्रेमसागर को उतना चलने पर थकने की पूरी सम्भावना थी। उन्होने उनसे विदा ले कर अपने पेस पर बीस किलोमीटर का मुकाम बेहतर समझा। वर्ना, एक दिन सहयात्री होने पर मोह तो हो ही जाता है। वह भी सहयात्रा के सुखद अनुभव के बाद।

निकलने के कुछ ही देर बाद एक चाय वाले सज्जन ने उन्हें खुद बुला कर चाय पिलाई। यह छोटे छोटे सत्कार भाव के नमूने सौराष्ट्र के आतिथ्य सत्कार की आदिकालीन परम्परा पर विश्वास पुष्ट करते हैं। प्रेमसागर ने उन सज्जन का चित्र भी लिया। साधारण से आदमी। सवेरे सर्दी से बचने के लिये स्वेटर, जैकेट, टोपी पहने हुये थे। बाद में शाम के प्रेमसागर के अनुभव से मुझे पता चला कि प्रेमसागार से खुद अपने लिये सर्दी से बचाव का मुकम्मल इंतजाम नहीं किया है।




एक और जगह राजा भाई की चाय की दुकान पर चाय पी। राजा भाई पक्षी प्रेमी लगे। पूरी द्वादश ज्योतिर्लिंग यात्रा में अनूठे व्यक्ति। उन्होने अपने चाय के दुकान की टीन की छत पर दर्जन भर गौरय्या के घोंसले बना कर टांग रखे हैं। वे खुद ही ये चिड़ियागृह बनाते हैं। बीच में उन्होने गौरय्या को दाना देने के लिये एक दाना पात्र भी टांग रखा है। “बहुत अनूठा लगा भईया यह मुझे। तुरंत आपको यह जानकारी देना जरूरी समझा।” – प्रेमसागर ने दुकान पर बैठे बैठे मुझे फोन किया।

रास्ते में सौराष्ट्र की पथरीली बबूल से भरी जमीन दिखी। कहीं कहीं खेती। अरहर की खेती भी नजर आयी। बाजरा भी दिखा जो कटने के लिये तैयार था। एक जगह पानी भी दिखा। शायद किसी बरसाती नदी के बचे पानी का अवशेष हो।
आगे उन्हें ठहरने के लिये मुकम्मल जगह नहीं मिली और फिर प्रारम्भ हो गया हिंगोळगढ़ प्राकृतिक अभयारण्य। उसको देख कर प्रेमसागर ने कहा – भईया लगता है फिर से मध्यप्रदेश में घुस गये हैं हम। दूर एक किला दिखता है। उसका फोटो जूम से लेने पर बढ़िया नहीं आ रहा है। सड़क घुमाव दार है और पथरीली घाटी है। पेड़ में ज्यादा बबूल हैं। खैर भी है और नीम भी। कहीं कहीं तार वाली बाड़ के साथ मेंहदी भी है। कंटीली तार की बाड़ है तो जंगली जानवर भी होंगे।”

रवि भाई से बात चीत हुई तो वे हिंगोळगढ़ के बारे में तो नहीं बता सके पर यह जरूर बताया कि पूरे इलाके में कहीं कहीं पहाड़ियांं हैं। आगे गिरनार में तो ज्यादा ही दिखेंगी। वहां वन्य जीव भी बहुत होंगे। शेर कभी कभी दिख जाते हैं। भारत में जितनी रियासतें थीं जिनका सरदार पटेल ने भारत में विलय किया, उनमें से अधिकांश तो सौराष्ट्र में ही थीं। छोटी छोटी पंद्रह बीस गांवों की रियासतें। हर रियासत ने अपने महल या किले बना रखे थे; जो अब खण्डहर बन रहे होंगे। हिण्डोळगढ़ भी वैसी ही रियासत रहा होगा।

गुजरात टूरिज्म की साइट से पता चला कि हिंगोळगढ़ प्राकृतिक शिक्षण अभयारण्य वर्षा से सिंचित शुष्क भूमि से घिरा है। इस अभयारण्य में चिंकारा, नीलगाय, भेड़िया, लकड़बग्घा और लोमड़ी जैसे वन्य जीव हैं। यह राजकोट जिले में आता है और कुल इलाका 6.5 वर्ग किलोमीटर का ही है।

हिंगोळगढ़ की घाटी से गुजरते हुये रास्ते में एक नौजवान दम्पति ने अपनी कार रोक कर प्रेमसागार से बात की। उनका नाम है ऋषि और मोना। इटावा जिले के जसवंतनगर के रहने वाले हैं। अहमदाबाद में ऋषि नौकरी में हैं। वे लोग सोमनाथ जा रहे थे। उन्होने प्रेमसागर को मिठाई खिलाई और पानी पिलाया। “वो तो मुझे पूरा मिठाई का डिब्बा ही दे रहे थे, पर भईया हम कहे कि इतना मिठाई का हम क्या करेंगे?”

उन लोगों ने प्रेमसागर की यात्रा का प्रयोजन पूछा। यह भी पूछा कि बारह ज्योतिर्लिंग कौन कौन से हैं। जान कर उन्हें आश्चर्य हुआ यात्रा की विशालता और विकटता पर। उन लोगों ने “Gyandutt Pandey” सर्च कर ट्विटर और ब्लॉग अकाउण्ट भी देखा। फोटो खींचा अपने सोशल मीडिया पर डालने के लिये। प्रेमसागर का फोन नम्बर भी लिया। जाने क्या समझ रहे होंगे वे नौजवान इस यात्रा के बारे में। अच्छा ही समझ रहे होंगे! उन्होने चलते चलते दो-तीन सौ रुपये प्रेमसागर की जेब में डाल दिये।
हिंगोळगढ़ अभयारण्य के बाद तीन किलोमीटर आगे प्रेमसागर को रात गुजारने के लिये जगह मिली – श्री मंगल आश्रम में। वहां हॉल में तख्त है। पर कोई गद्दा या कम्बल नहीं मिल पाया। प्रेमसागर के पास भी सर्दी के हिसाब से अपना इंतजाम नहीं है। उन्होने सर्दी का समय किसी “पीपल के नीचे या मंदिर में” बिना सुविधा के गुजारने का ड्राई रन नहीं किया है – ऐसा लगता है। अब वे तय कर रहे हैं कि एक भेड़ियहवा कम्बल और इनर-लोअर खरीदेंगे। बारिश हो गयी है। सर्दी बढ़ेगी ही। किसी तरह यह रात उन्हे अपनी चादर आदि के साथ गुजारनी है।
इसके बाद प्रेमसागर अपने जुगाड़ में लग गये। शाम सात बजे के बाद उनसे बातचीत नहीं हुई। गुजर ही गयी होगी रात। यहां भदोही की बजाय वहां सर्दी तो कम ही होती होगी। काम चल ही गया होगा। पर आकस्मिक समस्या के लिये तैयारी में कमी तो उजागर हो गयी प्रेमसागर की। वे न केवल भौगोलिक जानकारी की घोर कमी के साथ यात्रा कर रहे हैं, वरन अकेले यात्रा करने के दौरान की प्लानिंग में भी गैप नजर आ गये। खैर, कल परसों तक वे इंतजाम कर ही लेंगे। यह सम्भव है कि इंतजाम की जरूरत आगे न पड़े और सुविधा मिलती जाये। पर यात्रा के दौरान स्वावलम्बी बनने का जो ड्रिल होना चाहिये, वह तो पूरा होना ही चाहिये।
आज 25 किलोमीटर से ज्यादा ही चले होंगे प्रेम सागर।
हर हर महादेव। जय सोमनाथ!
*** द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची *** प्रेमसागर की पदयात्रा के प्रथम चरण में प्रयाग से अमरकण्टक; द्वितीय चरण में अमरकण्टक से उज्जैन और तृतीय चरण में उज्जैन से सोमनाथ/नागेश्वर की यात्रा है। नागेश्वर तीर्थ की यात्रा के बाद यात्रा विवरण को विराम मिल गया था। पर वह पूर्ण विराम नहीं हुआ। हिमालय/उत्तराखण्ड में गंगोत्री में पुन: जुड़ना हुआ। और, अंत में प्रेमसागर की सुल्तानगंज से बैजनाथ धाम की कांवर यात्रा है। पोस्टों की क्रम बद्ध सूची इस पेज पर दी गयी है। |
प्रेमसागर पाण्डेय द्वारा द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर यात्रा में तय की गयी दूरी (गूगल मैप से निकली दूरी में अनुमानत: 7% जोडा गया है, जो उन्होने यात्रा मार्ग से इतर चला होगा) – |
प्रयाग-वाराणसी-औराई-रीवा-शहडोल-अमरकण्टक-जबलपुर-गाडरवारा-उदयपुरा-बरेली-भोजपुर-भोपाल-आष्टा-देवास-उज्जैन-इंदौर-चोरल-ॐकारेश्वर-बड़वाह-माहेश्वर-अलीराजपुर-छोटा उदयपुर-वडोदरा-बोरसद-धंधुका-वागड़-राणपुर-जसदाण-गोण्डल-जूनागढ़-सोमनाथ-लोयेज-माधवपुर-पोरबंदर-नागेश्वर |
2654 किलोमीटर और यहीं यह ब्लॉग-काउण्टर विराम लेता है। |
प्रेमसागर की कांवरयात्रा का यह भाग – प्रारम्भ से नागेश्वर तक इस ब्लॉग पर है। आगे की यात्रा वे अपने तरीके से कर रहे होंगे। |
Bhole baba kahi n kahi alag alag rup m mil hi jate Prem Sagar Ji ki sahayta k liye Jai Bhole
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आप सही कह रहे हैं. संयोग और चमत्कार इस तरह से हुए हैं इस यात्रा में कि महादेव की सतत उपस्थित का भान होता ही है, प्रेम सागर के साथ.
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