मोबाइल गर्ल्स कूट्टम की तर्ज पर गोली, गिन्नी और गुन्जा

पिछले सप्ताह मैने एक पुस्तक का रिव्यू पढ़ा – “मोबाइल गर्ल्स कूट्टम – वर्किन्ग वीमेन स्पीक। पुस्तक की लेखिका हैं मधुमिता दत्ता। इसमे‍ कान्चीपुरम की नोकिया फ़ेक्टरी में काम करने वाली पांच महिलाओं की आपसी बातचीत है। वे महिलायें एक दो कमरे के फ़्लैट में रह रही हैं। सन 2013 की कथा है यह। सभी महिलायें अलग अलग पृष्ठभूमि से हैं। ग्रामीण महिलायें। हर एक के अपने अभाव हैं, अपनी आकांक्षायें। इस दो कमरे के फ़्लैट में रहते हुये और नोकिया की नौकरी मिलने के साथ वे अपने को अधिक आजाद, अधिक वर्जना से मुक्त और अधिक एम्पॉवर्ड पाती हैं जो उनकी आपस की बातचीत से झलकती है।

मधुमिता दत्ता कि पुस्तक का कवर
मधुमिता दत्ता कि पुस्तक का कवर

मधुमिता दत्ता से उनकी बातचीत का पॉडकास्ट, रेडियो पोट्टी के नाम से 2013 में स्पॉटीफ़ाई पर प्रस्तुत किया था। इसमें उन महिलाओं की बातचीत तमिळ में है जिसका भाषाई रूपान्तर वाला यह पॉडकास्ट उस समय बहुत लोकप्रिय हुआ था।

यह पुस्तक उसी पॉडकास्ट का पुस्तकाकार रूप है।


मैं फ़ेमिनिस्ट नहीं हूं। महिलाओं से बातचीत करना मेरे बस की बात नहीं। उनके प्रति मन में सम्वेदना भले हो, उनसे तादात्म्य स्थापित करना कठिन है।

बात यहीं खत्म हो जाती, या ज्यादा से ज्यादा मधुमिता दत्ता की किताब किण्डल पर खरीद कर पढ़ भर लेता। पर उससे अलग एक बात हुई। मैने अपने मित्र नागेश्वर से इस पॉडकास्ट/पुस्तक के बारे में बात की। छूटते ही नागेश्वर ने कहा – “अरे, ये कान्चीपुरम की लड़कियां तो मिस वाईपी की किचन की तीन लड़कियों की तरह हैं!”

श्रीमती वाईयी की किचन मे‍ गोली, गिन्नी और गुंजा
मिस वाईपी की किचन मे‍ गोली, गिन्नी और गुंजा

नागेश्वर मेरी उम्र का है। अभी इसी साल जुलाई में 67 का हुआ है। खब्ती और जुनूनी जीव है। उसके बारे में फ़िर कभी। वह बासठ-चौंसठ साल की मिस वाईपी (यशोधरा पुरन्दर) से कैसे मिला, उसके बारे में भी फ़िर कभी। वैसे मिस पुरन्दर बहुत अनूठी (पढ़ें दरियादिल) महिला हैं।

खैर न यह ब्लॉग कहीं गया है, न नागेश्वर नाथ और न यशोधरा पुरन्दर। आज तो मुझे उनके बारे में नहीं, मिस वाईपी के किचन की तीन लड़की नुमा महिलाओं – गोली, गिन्नी और गुन्जा की बात करनी है।

नागेश्वर ने बताया कि गोली, गिन्नी और गुन्जा उन लड़कियों के वास्तविक नाम नहीं हैं। मिस वाईपी को ग अक्षर पसन्द है। सो उनके अपने घरेलू नाम करण उन्होने ही किये है। उनकी किचन में वे नाम इतने प्रचलित हैं कि लड़कियां भी अपने को उसी नाम से आईडेण्टीफ़ाई करती हैं। उनके अपने घरों के नाम अलहदा हों, उससे कोई घालमेल नहीं होता।

तीनो लड़कियों की जिन्दगी, उनका परिवेश ब्ल्यू कॉलर क्लास का है। उनकी अपेक्षायें अपने और अपने परिवार को आगे बढ़ाने की हैं। जल्दी से जल्दी वे मध्य वर्ग में आ जाना चाहती हैं। उनके बच्चे हैं। सुख दुख हैं। टीवी है, फ़ोन और स्मार्टफ़ोन है। और भी छोटी मोटी सुविधायें और ढेरों अभाव हैं। पर वे यहां मिस वाईपी के किचन में आने के बाद चहकती रहती हैं। आपस में सहयोग भी करती है, लड़ती भी हैं और एक दूसरे की चुगली भी करती हैं। पर उनमें और मिस वाईपी में एक प्रगाढ़ बॉण्ड बन गया है।

नागेश्वर नाथ मेरी तरह गांवदेहात में नहीं रहता। वह शहरी जीव है। पर उसमें गांव की, गरीबी की, अभाव की समझ और तमीज है। एक तरह से वह मेरा शहरी क्लोन है, या मैं उसका गांव का रूप हूं। हां, वह ह्वाट्सएप्प और टेलीग्राम, जूम और वीडियो कॉन्फ़्रेन्सिन्ग के युग में भी सम्प्रेषण के लिये ई मेल का ही प्रयोग करता है।

नागेश्वर मे बताया कि मिस वाईपी गोली, गिन्नी और गुन्जा के बारे में वैसा ही विस्तार से बताने को तत्पर हो गयी हैं, जैसा मधुमिता दत्ता की किताब में नोकिया की लड़कियों के पॉडकास्ट और पुस्तक में है। वे लड़कियां हिन्दी बोलती है। इसलिये उनको समझने में मिस वाईपी को किसी टेली-रूपान्तर की जरूरत नहीं होगी। उनके कुछ देशज शब्द अर्थ के साथ जस का तस रखे जा सकते हैं।

मोबाइल गर्ल्स का पॉडकास्ट 8-9 अंकों का है। पुस्तक भी तीन सौ पेज से कुछ कम की है। गोली, गिन्नी और गुंजा को ले कर उसी आकार का प्रयोग हम – मिस वाईपी, नागेश्वर और मैं कर सकते है।

इस प्रयोग की सीमायें है। मिस वाईपी के साथ मेरा सम्पर्क नहीं होगा। वह नागेश्वर ही बतायेगा। वह भी ज्यादातर ई-मेल के माध्यम से। यदा कदा मैं उसे फ़ोन करूगा। वैसे वह फ़ोन अपने अलमारी में बन्द कर रखता है। वह सुविधाओं के होने के बावजूद मिनिमलिस्ट जीवन जीने का हिमायती है।

तो यह एक परिचयात्मक पोस्ट है। आगे हम गिन्नी, गुन्जा और गोली की बातचीत मिसेज वाईपी और नागेश्वर के माध्यम से करेंगे। क्या पता वह करते करते तीन सौ पेज की एक किताब ही बन जाये! :lol:

मोबाइल गर्ल्स कुत्तम के पात्र
मोबाइल गर्ल्स कुट्टम के पात्र

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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