6 मार्च 23
बक्सर से सवेरे रवाना होने पर गूगल ने प्रेमसागर को गोल गोल घुमा दिया। दो बार एक ही जगह वापस आ गये तो लोगों से रास्ता पूछा और आगे बढ़े। उन्हें नवानगर की ओर चलना था। जहां तक चल सकें, वहां तक। दोपहर में तीन-चार बजे से रात गुजारने की जगह तलाशने की सोच बना ली थी। जहां मिल जाये, वहीं डेरा जमाया जाये। सब महादेव पर छोड़ रखा था, पर राह चलना और जगह तलाशना उनका कर्म है – इसे वे बखूबी समझते हैं। इसके अलावा ब्लॉग पर लिखने लायक सामग्री उपलब्ध कराना भी शायद वे अपने कामों में महत्वपूर्ण समझते हैं।


बक्सर सोन नहर, उसकी बगल से जाती सड़क और नहर पर पुराना पुल
रास्ता एक नहर के किनारे किनारे चलता है। नक्शे में मैं पाता हूं कि वह सोन मेन कनाल है। एक पुल का चित्र देख कर लगा कि वह बहुत पुराने तरह का है। मुझे 80-100 साल पुराना लगा। यह जिज्ञासा हुई कि शायद यह सड़क और यह नहर अपने में पुराना इतिहास समेटे है। करीब दो घण्टे नेट पर ‘सोन मेन केनाल’ तलाशने पर सन 1853-55 का समय नजर आया। उस समय ब्रिटिश शासन नहीं था। ईस्ट इण्डिया कम्पनी की ओर से एक सेना के इंजीनियर लेफ्टीनेण्ट डिकेंस शाहाबाद (आरा) आये। उन्होने लोगों को कुंये से पुरवट/मोट से पानी निकाल कर बड़े श्रमसाध्य तरीके से खेती करते देखा।
डिकेंस वास्तव में गजब के इंसान थे। वे सेना में आर्टिलरी शाखा के अफसर थे और उनका जल प्रबंधन से कोई लेना देना नहीं था। पर लोगों के खेती के तरीके से द्रवित – प्रभावित हो कर उन्होने आसपास के बड़े भू भाग के जल संसाधनों का सर्वेक्षण किया। उन्होने पाया कि इलाके की दो बड़ी नदियां – सोन और गंगा के तल में काफी अंतर है। सोन का पानी अंतत: गंगा में ही जाता है। उनकी सोच थी कि सोन के पानी पर बैराज बना कर उससे नहरों द्वारा एक बड़े इलाके – उत्तर प्रदेश में कर्मनासा के पश्चिमी भाग से ले कर बक्सर और आरा के बड़े ग्रामीण इलाके को सींचा जा सकता है।
इण्टरनेट से ही मुझे गगन प्रसाद जी की एक पुस्तक/रिपोर्ट – हिस्ट्री ऑफ इर्रीगेशन इन बिहार की 200 पेजों की पीडीएफ कॉपी मिल गयी। इस पुस्तक में प्राचीन काल से लेकर ब्रिटिश काल तक का सिंचाई का इतिहास है। पुस्तक के सोन नदी की नहरों पर लिखे अध्याय के बीस-तीस पेज मैने ब्राउज किये। (आप यह रिपोर्ट इण्डिया वाटर पोर्टल के इस पेज पर दिये लिंक से डाउनलोड कर सकते हैं)।
डिकेंस ने 1855 में अपनी रिपोर्ट बना कर ईस्ट इण्डिया कम्पनी को पेश की। उसके अनुसार सिंचाई की नहरों और बैराज पर 61 लाख रुपये का खर्च आना था और आधा काम होने पर रेट ऑफ रिटर्न 11 प्रतिशत था। काम पूरा होने पर 19 प्रतिशत आमदनी का आकलन था। निश्चय ही ईस्ट इण्डिया कम्पनी कोई काम धर्मादे खाते में नहीं करने वाली थी। कम्पनी के डयरेक्टर्स नें डिकेंस की बहुत प्रशंसा की, लेकिन रिपोर्ट पर काम तुरंत शुरू नहीं हुआ।
उसके बाद 1857 का स्वतंत्रता संग्राम हुआ। कुंवर सिंह के विद्रोह से बिहार का यह इलाका तो बहुत प्रभावित था। अंग्रेज सिमट गए पर जल्दी ही संग्राम दब गया। डिकेन्स वापस आए। तब तक वे शायद लेफ्टीनेण्ट कर्नल बन गये थे। उन्होंने आगे सोन नदी का सर्वेक्षण किया। कालांतर में डिकेंस की रिपोर्ट में सोन नदी के पूर्वी भाग की नहरेंं जो गया और पटना जिलों को भी सिंचित करतीं, जोड़ी गयीं। अंतत: 1868-69 में, जब देश कम्पनी के नहीं, ब्रिटिश सरकार के शासन में था, काम शुरू हुआ।

डेहरी ऑन सोन से 11 किमी पहले इन्द्रपुरी डैम बना। इंद्रपुरी डैम से अकोढी गोला तक नहर बनी और वहां से पश्चिमी सोन नहर बक्सर में गंगा तक आयी। पूर्वी सोन नहर अकोढी गोला से आरा जिले में गंगा तक पंहुची। दोनो नहरें करीब 100 किमी लम्बी हैं। इससे बक्सर और आरा जिलों का बड़ा खेती का इलाका सिंचित होता है।


बक्सर सोन नहर से निकली एक उप नहर। दूसरा चित्र नहर पर बनाये ग्रामीण पैदल पुल का है।
सो, आज यात्रा में, प्रेमसागर जिस नहर और उसपर बने पुल का चित्र भेज रहे थे, वह 1874 की बनी है। मैंने प्रेमसागर को कहा कि वे लोगों से पता करें कि नहर आज भी कितनी प्रभावी है। पदयात्रा करते हुये प्रेमसागर ने इस पश्चिमी सोन नहर पर अपनी यात्रा के दौरान चार बड़ी नहरें और पैंतीस छोटी नहरें निकलती देखीं। इन छोटी-बड़ी नहरों से यह पश्चिमी सोन नहर एक बड़े भू भाग को सिंचित करती है। किसानों ने प्रेमसागर को बताया कि पूरे साल नहर में पानी रहता है। किसी किसी साल पानी की कमी होने पर फरवरी-मार्च में पानी नहीं होता, अन्यथा हमेशा सिंचाई के लिये पानी मिलता है। इन नहरों के कारण लोगों ने कुंये या ट्यूब वेल का प्रयोग नहीं किया। हाल में नीतिश सरकार ने जब बोरिंग करने पर पचहत्तर प्रतिशत की सबसिडी दी, तब कुछ लोगों ने ट्यूब वेल लगाए। अन्यथा सारी सिंचाई इसी नहर से होती है।

प्रेमसागर ने कई तरह की खेती देखी। धान, गेंहू, चना, सरसों तो होता ही है। उसके अलावा कमलगट्टा और मखाना व्यापक तौर पर होता है। एक जगह प्रेमसागर को पिपरमिण्ट की खेती और उसके आसवन का एक प्लाण्ट भी दिखा।
प्रेम सागर ने ही गुजरात यात्रा के दौरान मुझे नर्मदा नहरों के द्वारा गुजरात की ग्रामीण खुशहाली दिखाई थी। कुछ वैसा ही कर्नल डिकेंस और कर्नल रेण्डाल के इन सोन नहरों से भी हुआ होगा। इन नहरों से ग्रामीणों को लाभ हुआ होगा पर लाभ ब्रिटिश लोगों ने कमाया भी खूब कमाया होगा।
पूरे दिन मैं बक्सर की इस सोन नहर और प्रेमसागर के दिये इनपुट्स से चमत्कृत होता रहा। प्रेमसागर की इस यात्रा से न जुड़ा होता तो मुझे डेढ़ सौ साल पहले का यह सिंचाई इतिहास, जो आज भी प्रभावी है; पता ही नहीं चलता।
सोन नहर के सहारे प्रेमसागर बक्सर से सिकरौड़ तक 18 किलो मीटर चले। आगे वे नवानगर/बिक्रमगंज की ओर मुड़ गये। यह रास्ता आगे दाऊद नगर में सोन नदी पार करता है।
शाम चार बजे प्रेमसागर नवानगर पार कर चालीस किमी चल कर सेमरी के आगे रात्रि विश्राम के लिये रुके। खुले में या किसी मंदिर में रुकना खतरे से खाली नहीं था। मंदिर वालों ने बताया – “बाबा, होली का मौसम है, नौजवान बदमाशी कर सकते हैं। रात में होलिका जलनी है। खुले में सोने पर कोई हो सकता है आपका सामान उठा कर होलिका में डाल दे”।
सो प्रेमसागर ने लॉज तलाशी। एक जगह उन्हें कमरा मिला। मांग तो वह एक हजार की कर रहा था, पर प्रेमसागर ने अपना सब सामान दिखा कर बताया कि वे दो सौ ही दे सकते हैं। झिक झिक हुई पर कमरा मिल गया दो सौ में। “भईया पास में ही लाइन होटल (ढाबा) से भोजन मिल जायेगा”। फिलहाल प्रेमसागर ने बताया कि उन्हें हल्की हरारत है। वे मेडीकल दुकान से दवाई ले कर सोने का प्रयास करेंगे।
आगे की यात्रा –
सेमरी से दाऊद नगर करीब 45 किमी है और उसके आगे सत्तर किमी है गया। तीन चार दिन लगेंगे गया पंहुचने में। कल होली के दिन निकलना-चलना शायद ही हो पाये। फिर भी, देखें आगे क्या होता है।
ॐ मात्रे नम:। हर हर महादेव।
प्रेमसागर की शक्तिपीठ पदयात्रा प्रकाशित पोस्टों की सूची और लिंक के लिये पेज – शक्तिपीठ पदयात्रा देखें। ***** प्रेमसागर के लिये यात्रा सहयोग करने हेतु यूपीआई एड्रेस – prem12shiv@sbi |
दिन – 34 कुल किलोमीटर – 1244 मैहर। अमरपाटन। रींवा। कटरा। चाकघाट। प्रयागराज। विंध्याचल। कटका। वाराणसी। जमानिया। बारा। बक्सर। बिक्रमगंज। दाऊदनगर। करसारा। गया-वजीरगंज। नेवादा। सिकंदरा। टोला डुमरी। देवघर। तालझारी। दुमका-कुसुमडीह। झारखण्ड-बंगाल बॉर्डर। नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ। फुल्लारा और कंकालीताला। नलटेश्वरी। अट्टहास और श्री बहुला माता। उजानी। क्षीरसागर/नवद्वीप। |

Nice information.
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