गया – मंगला गौरी दर्शन

11 मार्च 23

शाम होते होते प्रेमसागर ने अष्टादश शक्तिपीठों में से तीसरे महाशक्तिपीठ का दर्शन सम्पन्न कर लिया। गया में वे मंगलागौरी मंदिर हो आये। इससे पहले उन्होने प्रयाग में ललिता देवी/अलोपी माता और वाराणसी में विशालाक्षी देवी के दर्शन कर लिये हैं। उनके अलावा कई अन्य शक्तिपीठों पर भी वे जा चुके हैं। अब तक शक्तिपीठ पदयात्रा में वे सात सौ किलोमीटर के आसपास पैदल चल चुके हैं।

उनका शक्तिपीठ पदयात्री का दर्जा ऊंचा हो गया है।

गया के रास्ते सवेरे चाय की दुकान पर बैठे जंच रहे हैं प्रेमसागर। चाय की दुकान रफीगंज में है।

सवेरे, भेजे चित्र में गया के रास्ते चाय की दुकान पर बैठे जंच रहे हैं प्रेमसागर। चाय की दुकान रफीगंज में है। दुकान वाले सज्जन को करसारा के प्रमोद जी ने सहेज दिया था। सो चाय के पैसे नहीं देने पड़े। आगे रास्ते में नहरें और सूखी नदियाँ पड़ीं। चौड़ा पाट और केवल रेत। सरपत उगा होगा बीच बीच में, जिसे लोग काट ले गये हैं। नक्शे में फालगू तो नहीं पड़ती रफीगंज और गया के बीच। कौन नदियां हैं ये? गूगल मैप को जूम कर देखने पर भी कोई अंदाज नहीं लगा। बरसात में शायद इनमें खूब पानी आ जाता होगा। उथली और चौड़ी नदी लगती हैं ये। शायद फालगू ही हो।

रेत की नदियां।

जो चित्र भेजे और जो विवरण दिया, उससे यह पूरा इलाका मुझे मनहूस लगा। कोई आश्चर्य नहीं कि इस फालगू नदी को सीता जी का शाप लगा है। यह राम द्वारा उनके पूर्वजों के पिण्डदान के समय उग्र हो गयी थी।

महाभारत काल का भी यहां से जुड़ाव रहा है। भीम वेदी और भीम मंदिर हैं यहां। पर वह सब प्रेमसागर ने देखा नहीं। उनके रात गुजारने का कोई इंतजाम नहीं हुआ था तो उन्हें गया छोड़ आगे बढ़ने की जल्दी थी। “भईया सभी मंदिरों-सरोवरों को मैंने मन ही मन में प्रणाम कर लिया है। अब आगे बढ़ कर नेवादा जिला में कोई जगह तलाशता हूं रात में रुकने के लिये।” – प्रेमसागर ने कहा।

गया धर्म का केंद्र रहा है आदि काल से। पर वहां धर्म कम, धर्म का व्यवसाय ज्यादा दिखा। मंगला गौरी मंदिर के दर्शन और उसके साथ शिव/भैरव मंदिर के दर्शन के अलावा प्रेमसागर ने कुछ खास देखा नहीं। किन्ही सुरेंद्र गिरि जी का नाम लिया, जिन्होने मंगला गौरी के दर्शन कराये। उसके अलावा शाम हो जाने के कारण वे चार पांच आश्रमों में गये कि रहने को कोई ठौर मिल सके। वहां बताया गया कि पांच छ हजार डोनेशन दें तो व्यवस्था हो सकेगी। आश्रम भी व्यवसाय बने हुये हैं। एक होटल ने कहा कि वहां शादी की बुकिंग है, वर्ना उन्हें जगह दे देते। प्रेमसागर ने कहा – भईया, लोग पिण्डदान को आते हैं और वे इन्हें मनमांगा मोटा पैसा देते हैं। मेरे जैसे के लिये जिसे चार पांच सौ निकालना कठिन है, कोई जगह नहीं है गया में।”

मंगलागौरी और भैरव मंदिर

कहीं चाय पी और मीठा खा कर प्रेमसागर आगे बढ़े। फालगू पार कर नेवादा जिले की ओर। अंत में पच्चीस किमी और चले तो वजीरगंज में किसी सुमन गेस्ट हाउस में रुकने को कमरा मिला। “भईया, न मिलता तो रात भर चलता ही रहता मैं।” – प्रेमसागर का कहना था। किसी भी समस्या के निदान के लिये प्रेमसागर के पास एक ही उपाय है – चलना!

करसारा से वजीरगंज तक दिन भर में कुल चौहत्तर किलोमीटर चले प्रेमसागर। मुझे लगता था कि वे गया भी नहीं पंहुच पायेंगे और पंहुच भी गये तो रात में आराम कर अगले दिन दर्शन करेंगे मंदिरों के। पर धर्म के व्यवसाय के नगर गया में उन्हें रुकने की जगह नहीं मिली! शायद इसका अंदाज प्रेमसागर को था। इसलिये शुरू से ही वे तेज चाल में चलते ही रहे। दिन में कहीं आराम नहीं किया।

बड़ी जगह है गया। पर रात गुजारने को ठौर नहीं मिला प्रेमसागर को।

अब वजीरगंज के रास्ते वे देवघर पंहुचेंगे और वहां से वाया वासुकीनाथ बंगाल में प्रवेश करेंगे। देवघर उनका जाना पहचाना है। सुल्तानगंज से बैजनाथधाम की सैकड़ों पदयात्रायें वे कर चुके हैं। सो यह रूट पकड़ना उन्हें सही लगा। बंगाल में कई शक्तिपीठ हैं। उनके दर्शन कर अगर बरसात का समय नहीं हुआ तो वे कामाख्या मंदिर के दर्शन के लिये गुवाहाटी निकल जायेंगे। यह डेढ़ दो महीने का कार्यक्राम होगा। यह सब निर्भर है कि लोगों से उन्हें अंशदान मिलता रहे जिससे उनके रात गुजारने और भोजन का खर्चा निकल आये।

उनके पास पैसा नहीं है। साधन नहीं हैं। लोग जुड़े हों और सहायता कर रहे होंं- वह बहुत नहीं दिखता। प्रेमसागर मध्यप्रदेश-गुजरात में कई लोगों की बात किया करते थे। वैसी बातें अब सुनने में नहीं आतीं। शायद माता और महादेव सही में उनकी कड़ी परीक्षा ले रहे हैं। या फिर व्यर्थ ही एक नया प्रॉजेक्ट हाथ में ले कर चल दिये हैं वे।

मैं उनकी सहायता के लिये लिख सकता हूं। वही किये दे रहा हूं। पाठक से मैं अपील ही कर सकता हूं कि प्रेमसागर को उनके यूपीआई पते पर जो सहयोग कर सकते हों, करने का कष्ट करें। पर मेरी भी अपनी सीमा है।

गया के प्रकरण ने मुझे मायूस किया है। मुझे एक तुकबंदी सुनने में आई थी – गया में दया नहीं। पुरी में जात नहीं। कलकत्ता में रात नहीं। पुरी और कलकत्ता का पता नहीं, पर गया में सही मायने में दया नहीं नजर आई। विंध्याचल और बनारस में शक्तिपीठ पदयात्री होने के कारण आदर मिला था। माई की चुनरी उढ़ाई गयी थी। उसके उलट गया में यहां उन्हें टके सेर जवाब मिला – रुकने की जगह चाहिये तो पांच हजार का डोनेशन लाओ!

गया के बारे में एक और तुकबंदी है – बिना पानी की नदी, बिना पेड़ का पहाड़ और बिना दिमाग का आदमी। जरूर गया होगा!

शायद तुकबंदी में दिमाग की जगह दिल होना चाहिये था। हृदयहीन नजर आया गया।

सरकार बनारस और विंध्याचल के पर्यटन विकास के लिये बहुत कर रही है। उसकी कुछ सृजनात्मक शक्ति गया में भी लगनी चाहिये। हिंदू धर्म का व्यवसाय भले रहे; वहां आश्रम वाले मौज करें या भाड़ में जायें; पर प्रेमसागर जैसे साधन हीन श्रद्धालु के लिये वहां स्पेस बने! आगे कोई पदयात्री आये तो उसे रुकने को एक बिस्तर और सस्ता साधारण भोजन तो मिल सके।

हर हर महादेव। ॐ मात्रे नम:।

प्रेमसागर की शक्तिपीठ पदयात्रा
प्रकाशित पोस्टों की सूची और लिंक के लिये पेज – शक्तिपीठ पदयात्रा देखें।
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प्रेमसागर के लिये यात्रा सहयोग करने हेतु उनका यूपीआई एड्रेस – prem12shiv@sbi
दिन – 86
कुल किलोमीटर – 2820
मैहर। प्रयागराज। विंध्याचल। वाराणसी। देवघर। नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ। दक्षिणेश्वर-कोलकाता। विभाषा (तामलुक)। सुल्तानगंज। नवगछिया। अमरदीप जी के घर। पूर्णिया। अलीगंज। भगबती। फुलबारी। जलपाईगुड़ी। कोकराझार। जोगीघोपा। गुवाहाटी। भगबती। दूसरा चरण – सहारनपुर से यमुना नगर। बापा। कुरुक्षेत्र। जालंधर। होशियारपुर। चिंतपूर्णी। ज्वाला जी। बज्रेश्वरी देवी, कांगड़ा। तीसरा चरण – वृन्दावन। डीग। बृजनगर। विराट नगर के आगे।
शक्तिपीठ पदयात्रा
प्रेमसागर की पदयात्रा के लिये अंशदान किसी भी पेमेण्ट एप्प से इस कोड को स्कैन कर किया जा सकता है।

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Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

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