गया में सही मायने में दया नहीं नजर आई। विंध्याचल में शक्तिपीठ पदयात्री होने के कारण आदर मिला था। माई की चुनरी उढ़ाई गयी थी। उसके उलट गया में यहां उन्हें टके सेर जवाब मिला – रुकने की जगह चाहिये तो पांच हजार का डोनेशन लाओ!
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दाऊदनगर से करसारा के प्रमोद कुमार सिंह के यहाँ
नदी-नहर-खेत-खलिहान के ढेरों चित्रों की बजाय पगडण्डी का वह साधारण सा चित्र मुझे भा गया जो प्रेमसागर ने राह चलते क्लिक किया था। पगडण्डी सही में घुमक्कड़ी है। मेरा बस चले तो प्रेमसागर दूरी न नापें। यात्रा-आनंद तलाशें।
बक्सर से सेमरी – सोन नहर
पूरे दिन मैं बक्सर की इस सोन नहर और प्रेमसागर के दिये इनपुट्स से चमत्कृत होता रहा। प्रेमसागर की इस यात्रा से न जुड़ा होता तो मुझे डेढ़ सौ साल पहले का यह सिंचाई इतिहास, जो आज भी सिंचाई के लिये प्रभावी है; पता ही नहीं चलता।
मोकालू गुरू का चपन्त चलऊआ- पोस्ट पर री विजिट
भूत प्रेत, चुड़ैल, ओझा, सोखा का स्पेस गांव के जीवन में, मोबाइल और स्मार्ट फोन के युग में अभी भी है और उनका महत्व कम नहीं हुआ है.