12 मार्च 23
गया का अनुभव पार करने के बाद आज सवेरे सामान्य लगे प्रेमसागर। वजीरगंज में सुमन गेस्ट हाउस से निकल चुके थे। पांच किलोमीटर चलने के बाद मुझसे बात हुई। उनका कहना था कि प्लानिंग में चेंज है। वे नेवादा की बजाय पहले ही मुड़ कर वाया गोविंदपुर आगे निकलेंगे। गूगल नक्शे के हिसाब से वह रास्ता छोटा है।
अलग अलग रास्ते मैं कम्प्यूटर पर छान चुका था। मैंने उन्हे कहा कि ज्यादा दूर तक जाने में रास्ते की लम्बाई एक घटक जरूर है पर यह भी देख लें कि रास्ता कैसा है। गोविंदपुर वाला रास्ता पहाड़ी है। हो सकता है जंगल भी हों। जंगल में अकेले जाना दुरूह होगा। झारखण्ड में वैसे भी, अपेक्षाकृत, वन ज्यादा हैं। उसकी बजाय नेवादा-अलीगंज-सिकंदरा का रास्ता नक्शे के अनुसार अधिकतर मैदानी है। और उसपर दूरी का अंतर मात्र सात किमी है।
प्रेमसागर रास्ते का चुनाव करने के लिये मुझे कह रहे थे, पर मैंने वह नहीं किया। घुमक्कड़ मैं नहीं, वे हैं। योजना और चुनाव उन्हें करना चाहिये। पर प्रेमसागर में यह कमी है – कोई कुछ समझा देता है और उस हिसाब से चल देते हैं। बहुधा उन्हें ज्यादा श्रम करना पड़ा है। खैर, उन्होने आसपास वाले लोगों से बातचीत की। उन्होने भी समझाया कि नेवादा-सिकंदरा वाला मार्ग बेहतर है। सो उन्होने नेवादा की ओर बढ़ना तय किया।
गया के कटु अनुभव – वहां रात्रि विश्राम के लिये आश्रमों द्वारा डोनेशन मांगने की बात को ले कर सोशल मीडिया पर लोगों ने अपना क्षोभ व्यक्त किया। कई लोगों ने अपना अंशदान किया। कुछ ने नियमित कुछ न कुछ देते रहने की बात की। एक सज्जन ने टिप्पणी की – धंधे मातरम! एक अन्य ने कहा कि उनके भी इसी तरह के कटु अनुभव हैं।
गया तो गया! उसके चक्कर में एक दिन प्रेमसागर को 74 किलोमीटर चलना पड़ा। पर शायद इतना वे पहले भी विकल्पहीनता की दशा में चल चुके हैं। समस्याओं का समाधान उनके पास केवल चलने से है! पर उस चलने का परिणाम यह हुआ कि आज उन्हें कई लोगों की सहानुभूति और आर्थिक सहयोग मिला।

दिन में जो भी नदियां दिखीं, सब बड़े पाट वाली और चौड़ी। सब में एक बूंद पानी नहीं। फालगू नदी को तो सीता जी ने शाप दिया था, पर लगता है आसपास की सभी नदियों को वह शाप कस कर लगा है। नदियों में कुशा, कास, सरपत जैसी वनस्पति दीखती है। उसके अलावा एक जगह कई ट्रेक्टर भी दिखे जो बालू ढोने में लगे थे। बालू खनन जहां भी दीखता है, वह मन में अवैध उत्खनन और बालू माफिया का चित्र ही मन में उपजाता है। वही इन्हें देख भी उपजा। ये सभी नदियां बरसाती होंगी और मॉनसून के मौसम में कहर ढाती होंगी।

मॉनसून के पानी का प्रबंधन लोग करते हैं; ऐसा प्रेमसागर ने कहा। कई ताल हैं। बड़े बड़े तालाब। उनका रखरखाव भी किया जाता है। इसके अलावा तीस से पचास फुट की बोरिंग पर पानी मिल जाता है। लोग पारम्परिक खेती में लगे हैं। हॉर्टीकल्चर का कोई प्रसार नहीं है। दो दिन पहले एक जगह पर मधुमक्खी पालकों के बक्से किसी जगह सड़क किनारे जरूर दिखे थे। मैंने प्रेमसागर को कहा कि आगे अगर उन्हें कुछ अच्छे और सुंदर बने तालाब दीखें तो उनका भी चित्र लेने का प्रयास करें।


नेवादा जिला में एक औद्योगिक विकास प्राधिकार और उसके आसपास कुछ ट्रेनिंग संस्थानों के बोर्ड नजर आये। एक जगह टीसीएस – टॉपर्स कॉन्वेण्ट स्कूल – देखा।
नेवादा जिला में एक औद्योगिक विकास प्राधिकार और उसके आसपास कुछ ट्रेनिंग संस्थानों के बोर्ड नजर आये। एक जगह टीसीएस – टॉपर्स कॉन्वेण्ट स्कूल – देखा। गिट्टी क्रशिंग या बालू उत्खनन के अलावा कोई उद्योग नहीं दिखा। उद्योगों के पनपने के लिये उपयुक्त कानून-व्यवस्था, कुशल और ईमानदार प्रशासन और मनोवृत्ति की उर्वरता है ही नहीं शायद।
प्रेमसागर ने मैसेज दिया है कि कोई सोनू जी ने अपने मैरिज हॉल में उन्हें निशुल्क रहने का स्थान दिया है। “मैं भईया मंदिरों को ही तलाश रहा था। पर मंदिरों के आसपास भोजन का कोई प्रबंध नहीं था। तभी एक जगह यह नौजवान मिल गये। बोले बाबा आप मेरे मैरिज हॉल में रह सकते हैं। भोजन आपको बाहर से देखना होगा।” – प्रेमसागर ने बताया।
हूडी पहने सोनू जी हाथ पैर से पोलियोग्रस्त होने के कारण अक्षम भले ही हैं पर संस्कारी नौजवान हैं। वे टचस्क्रीन का मोबाइल बड़ी कुशलता से इस्तेमाल कर रहे थे। उनकी माता जी ने घर से भोजन बना देने की पेशकश जरूर की, पर उन्हें असुविधा होती। प्रेमसागर ने होटल तलाशे जो ज्यादातर नॉनवेज भी बनाते थे। इसलिये एक जगह से लिट्टी-चोखा खरीद कर खाया और रात के भोजन का काम उसी से पूरा हो गया।
गया के धर्म-व्यवसायियों से उलट सोनू जी ने उदात्त भाव से प्रेमसागर की जो सहायता की वह प्रशंसनीय है।

वैसे, शक्तिपीठ पदयात्रा पर निकले प्रेमसागर को अगर मैरिज हॉल वाले सोनू जी की बजाय किसी मंदिर के प्रांगण में ही रुके होते तो मुझे अच्छा लगता। कमरा, बिस्तर, सफाई और कम्बल आदि का एक बेंचमार्क तो प्रेमसागर ने बना लिया ही लिया है और उससे कमतर में रहने की उनकी अभ्यस्तता कम होती गयी है। पर शायद मुख्य कारण यह है कि जिस भाव से सोनू ने प्रेमसागर को अपने यहां रहने के लिये आमंत्रित किया, वह मंदिरों-देवालयों के लोगों में अब होता ही नहीं!
कुछ दशकों पहले तक मंदिर के ओसारे तीर्थयात्रियों के रहने रुकने के सामान्य ठिकाने होते थे। अब शायद युग बदल गया है। देवालयों में अगर तीर्थयात्री नहीं रुकते, तीर्थयात्रियों को रुकने के लिये वे आमंत्रित नहीं करते तो शायद देवता भी वहां नहीं होते होंगे।
शायद मैं ज्यादा ही अव्यवहारिक बातें कर रहा हूं। अगर मुझे यात्रा करनी हो तो मैं प्रेमसागर से कहीं ज्यादा सुविधाओं की अपेक्षा करूंगा। मैं तो यह मान कर चलता हूं कि देवता देवालयों में नहीं, प्रकृति में या लोगों के उदात्त स्वभाव के बीच रहते हैं। मैं मंदिरों के दर्शन का कोई विशेष प्रयास करता भी नहीं। पर वही एक प्रमुख कारण है कि मैं यात्रा कर नहीं रहा। लिखना मेरे बस का है, डियाकी (डिजिटल यात्रा कथा लेखन) मेरे बस का है। यायावरी मेरे बस की नहीं। यायावर तो प्रेमसागर हैं।
बीस दिन हो गये यात्रा को। अठारह ब्लॉग पोस्टें हो गयीं। सात सौ से ज्यादा किलोमीटर चल चुके प्रेमसागर। मुझे तो डियाक (डिजिटल यात्रा कथा) लेखन में थकान हो रही है। प्रेमसागर की समस्याओं को खुद ओढ़ लेने की थकान। पता नहीं प्रेमसागर को फेटीग (fatigue) हो रहा है या नहीं। मुझे तो मानसिक यात्रा ही करनी हो रही है, पर प्रेमसागर के तो पैर भी दर्द करते होंगे? कौन सा तेल मलते हैं प्रेमसागर पण्डिज्जी?!
ॐ मात्रे नम:!
| प्रेमसागर की शक्तिपीठ पदयात्रा प्रकाशित पोस्टों की सूची और लिंक के लिये पेज – शक्तिपीठ पदयात्रा देखें। ***** प्रेमसागर के लिये यात्रा सहयोग करने हेतु उनका यूपीआई एड्रेस – prem12shiv@sbi |
| दिन – 103 कुल किलोमीटर – 3121 मैहर। प्रयागराज। विंध्याचल। वाराणसी। देवघर। नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ। दक्षिणेश्वर-कोलकाता। विभाषा (तामलुक)। सुल्तानगंज। नवगछिया। अमरदीप जी के घर। पूर्णिया। अलीगंज। भगबती। फुलबारी। जलपाईगुड़ी। कोकराझार। जोगीघोपा। गुवाहाटी। भगबती। दूसरा चरण – सहारनपुर से यमुना नगर। बापा। कुरुक्षेत्र। जालंधर। होशियारपुर। चिंतपूर्णी। ज्वाला जी। बज्रेश्वरी देवी, कांगड़ा। तीसरा चरण – वृन्दावन। डीग। बृजनगर। विराट नगर के आगे। श्री अम्बिका शक्तिपीठ। भामोद। यात्रा विराम। मामटोरीखुर्द। चोमू। फुलेरा। साम्भर किनारे। पुष्कर। प्रयाग। लोहगरा। छिवलहा। राम कोल। |


Photo ki sankhya kuchh kam nahi hai?
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जी, चित्रों में धूसर रंग और शाम के अंधेरे में उनकी अस्पष्टता ज्यादा रही. चित्रों का स्केच लगाना शायद बेहतर ऑप्शन होता…
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Sir apka kahna yatharth h Ishwar kahin bhi mil sakte h .Achchhe logon ki bhi kami nahi h may God help Premsagar ji in his mission
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