नेवादा – सिकंदरा – टोला डुमरी

13 मार्च 23

प्रेमसागर में चलने का उत्साह बरकरार है, या यूं कहा जाये कि उठना और निकल लेना उनकी आदत बन चुकी है। चार बजे सवेरे उठ कर रवाना हो गये हैं। सवेरा होने पर एक चाय की दुकान का चित्र है। खास बात यह है कि एक महिला दीखती है दुकान में चाय बनाते हुये।

उसके बाद उनके लाइव लोकेशन के सेम्पल, जब कभी नेट ठीक होने पर ही मिलते हैं, उससे उनकी चाल काफी तेज होने का आभास होता है।

सवेरा होने पर एक चाय की दुकान का चित्र है। खास बात यह है कि एक महिला दीखती है दुकान में चाय बनाते हुये।

लाइव लोकेशन आज कम ही मिली। नेटवर्क शायद ठीक काम नहीं कर रहा था। दोपहर तीन बजे रास्ते से दूर किसी और जगह नजर आयी उनकी लोकेशन। फोन कर पता किया तो बताया कि सिकंदरा में टनटन मुंशी जी मिल गये थे। मुंशी जी लखीसराय में कोर्ट के मुंशी हैं और बाबाधाम के प्रेमसागर के सोमवारी कांवर जोड़ीदार रहे हैं। उन्होने ने प्रेमसागर को अपनी मोटर साइकिल से लखीसराय ले जाने और कल भोर में वापस सिकंदरा छोड़ने को राजी कर लिया। अपने घर पर बढ़िया, शुद्ध चने का सत्तू बनवाये हैं मुंशी जी ने प्रेमसागर के लिये। यात्रा में सत्तू साथ होना जरूरी है।

लोकेशन में वे सिकंदरा से लखीसराय के रास्ते पर थे, टनटन मुंशी के साथ उनकी मोटर साइकिल पर।

इलाका प्रेमसागर के परिचित कांवर-संगी लोगों से भरा है। जैसे जैसे देवघर पास आयेगा, और भी लोग मिलेंगे! प्रेमसागर 101 बार सुल्तानगंज से बैजनाथ धाम कांवर ले कर जल चढ़ा चुके हैं। यह काम वे दो साल तक प्रति सोमवार करते रहे हैं। इसके अलावा तीन बार दण्ड यात्रा – लेट लेट कर दूरी पार करना – भी कर चुके हैं। इसलिये इलाके में लोग उन्हें सुम्मारी (सोमवारी) बाबा या दण्डी बाबा के नाम से भी सम्बोधित करते हैं।

टनटन मुंशी को रास्ते में ही कोई अर्जेण्ट काम आ पड़ा। वे सुम्मारी बाबा को वापस सिकंदरा ला कर छोड़े। सिकंदरा में प्रेमसागर को मिले ललन मिश्र। ललन मिसिर भी कांवर यात्री रह चुके हैं। वे हर पूर्णिमा को जल चढ़ाने बाबा धाम जाते रहे। ललन मिसिर सिकंदरा में हनुमान मंदिर के पुजारी हैं। चित्र में काफी बड़ा दीखता है हनुमान मंदिर। प्रेमसागर ने बताया कि मंदिर परिसर में पांच कमरे हैं जिनमें गंगोत्री यात्रा करने वाले श्रद्धालु लौटानी में विश्राम करते हैं या शादी-ब्याह में उन कमरों की बुकिंग होती है। वहीं प्रेमसागर के रहने का इंतजाम हुआ है।

जगत जननी जगदम्बा की काले रंग की प्रतिमा बहुत सुंदर है। बहुत सुंदर हैं उनकी आंखें।

ललन मिश्र जी ने प्रेमसागर को जगत जननी जगदम्बा मंदिर के दर्श भी कराये। सन 1977 में बना है यह मंदिर और माँ की काले रंग की प्रतिमा बहुत सुंदर है। बहुत सुंदर हैं उनकी आंखें। माथे पर तीसरा नेत्र भी है। उतने सुंदर तरीके से चित्र आ नहीं पाया।

ललन मिश्र जी ने प्रेमसागर को रहने का इंतजाम किया। भोजन उनके घर पर नहीं हो सका। सूतक में था ललन का परिवार। आगे यात्रा के अगले दिन के पड़ाव का इंतजाम उन्होने कर दिया है। सिकंदरा से 44 किमी आगे टोला डुमरी में।

ताड़ के कई गाछ दीखते हैं

इलाके की बात करते प्रेमसागर बताते हैं कि ताड़ के कई गाछ दीखते हैं इस रास्ते पर। सरकार ने सड़क किनारे साखू (सागौन) और सफेदा भी लगाया है। पेड़ बड़े हो गये हैं। खेती तो सामान्य सी है। सड़क किनारे पेड़ हैं तो छांव मिलती जाती है।

14 मार्च 23

गया के आसपास की धरती शापित है। प्रेमसागर यह बार बार कहते हैं। नदियों में पानी नहीं है। पर शाप का असर बहुत धीरे धीरे कम हो रहा है। लोग कहते हैं कि बीस कोस तक शाप था सीता माई का। पर उससे ज्यादा दीखता है।

आज कुछ देर से निकले प्रेमसागर। शायद छ बजे। उन्हें सिकंदरा से खैरा के रास्ते जमुई जिले में दक्षिण की तरफ उतरते टोला डुमरी तक जाना है। खैरा के आगे पड़ता है मंगोबदर और फिर सोने तहसील। किसी बर्नार नदी के समांतर चलना है। सोने के पहले बर्नार पार होती है। नक्शे में बड़ी नदी दीखती है। पर नदी क्या है? रेत की नदी। एक बूंद पानी नहीं। रेत ही रेत। लोगों को रेत उत्खनन के पट्टे मिले हैं। जेसीबी मशीन और ट्रेक्टर-डम्पर काम पर लगे हैं। कई जगह लोगों के रेत के जखीरे लगे हैं।

सीता माई का शाप एक तरफ; इस रेतीले फिनॉमिना का कोई भौगोलिक कारण तो होगा? गया, नेवादा, लखीसराय का दक्षिणी भाग, जमुई, खैरा और अब यह सोने-टोला डुमरी – यहां जमीन पर पानी नहीं पर पचास फिट नीचे पानी है। मॉनसून का मौसम नदियों में बाढ़ लाता है। पर बाढ़ से उपजाऊ मिट्टी नहीं आती। रेत भर आती है। उस रेत में ताड़ के पेड़ उगते हैं। या सरपत। कुल मिला कर वही जी रहा है जो रेत से जद्दोजहद करने का माद्दा रखता है।

प्रेमसागर की यह यात्रा नहीं होती तो मैं इस फिनॉमिना को महसूस ही नहीं कर पाता। मैं तो यही मान कर चलता कि बरसात में बाढ़ आती है और उसके बाद खूब अच्छी फसल लेते हैं बिहारी। पर गरीबी का एक बड़ा घटक – फालगू और बर्नार जैसी नदियों का शापित होना है।

यहां नहरें क्यों नहीं आयीं? नहरें शायद सही विकल्प नहीं होतीं। सोन नदी – या जो भी नदी हो, उसका, पानी यहां आते आते 20-30 प्रतिशत सूख जाता नहरों में। शायद बड़ी पाइप के जरीये पानी आ सकता था या आ सकता है। बड़ी पाइप की नहरों का जाल!

रुक्ष भूगोल के बावजूद जीवन है। खेतों में गेंहू पक गया है। कटाई हो रही है। पिछली फसल का पुआल दीखता है। चीजें उतनी खराब नहीं, जितनी मैं सोचता हूं।

मैंं जिला भदोही के एक गांव में बैठा डियाकर (डिजिटल यात्रा कथा लेखक) सोचे जा रहा हूं। कहीं बेहतर सोचा होगा जल प्रबंधन करने वाले विद्वानों नें। पर हुआ कुछ नहीं। बरनार जैसी नदियां रेत की नदियां हैं।

टोला डुमरी बड़ा गांव है। दस हजार की आबादी होगी। खास बात यह है कि बहुत भव्य मंदिर हैं यहां पर। देवी पार्वती और शंकर भगवान का मंदिर। और भी देव हैं। विष्णु भी हैं, लक्ष्मी भी और हनुमान जी भी। एक सज्जन को फोन थमा देते हैं प्रेमसागर। वे मुझे बताते हैं टोला डुमरी का प्राचीन इतिहास। यह जगह आदि काल में कंचनपुर था। शिव जी का जो मंदिर है वह कंचनेश्वर महादेव है। अभी का मंदिर नया है। पर यह तीन बार विस्थापित होने पर बना है। पास में किसी पुराने मंदिर के भग्नावशेष हैं। एक पत्थर भी है वहां जिसपार पाली (?) में कुछ लिखा है। वे बताते हैं कि औरंगजेब काल में इसे तोड़ा गया। नया मंदिर किसी गिद्दर महराज ने बनवाया।

प्रेमसागर ने मंदिर और वहां के लोगों के चित्र भेजे हैं। ज्यादा न जोड़ते हुये वे मैं यहां प्रस्तुत कर देता हूं।

आज रास्ते में सिकंदरा से निकलते ही प्रेमसागर का पिट्ठू फट गया। गमछे से बांध कर वे पंद्रह बीस किमी चले। फिर खैरा में नया बैग खरीदा। “भईया, पहला बैग कपड़े का था। चार सौ किलोमीटर साथ दिया। मेंअ बात है कि पीठ पर पसीने और रगड़ से फट गया। अब यह नया बेहतर है। साढ़े आठ सौ का है। चमड़ा और रेक्सीन लगा है। मजबूत दीखता है।”

फटे पिट्ठू पर ट्वीट

पदयात्रा में एक अच्छा पिट्ठू और अच्छी लाठी – यही प्रेमसागर की जरूरत है।

नया पिट्ठू

टोला डुमरी में बहुत लोग मिले प्रेमसागर को। पुजारी जी ने उनके लिये दूध-चिवड़ा का इंतजाम किया। एक और उम्रदराज सज्जन बोले – बाबा, मेरे घर में लहसुन प्याज के बिना भोजन बनता है। वहीं से आपके लिये रोटी-सब्जी ले कर आया हूं।

दूध चिवड़ा, रोटी सब्जी और मंदिर के फर्श पर डेरा। प्रेमसागर के लिये तो इस जगह पिकनिक मन गयी!

कल देवघर का रास्ता लम्बा है। रास्ते में जंगल भी है। शायद सीता माता का शाप पूरी तरह खत्म हो जाये तब तक। कल बिहार से झारखण्ड में घुस जायेंगे प्रेमसागर।

हर हर महादेव। ॐ मात्रे नम:!

प्रेमसागर की शक्तिपीठ पदयात्रा
प्रकाशित पोस्टों की सूची और लिंक के लिये पेज – शक्तिपीठ पदयात्रा देखें।
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प्रेमसागर के लिये यात्रा सहयोग करने हेतु उनका यूपीआई एड्रेस – prem12shiv@sbi
दिन – 103
कुल किलोमीटर – 3121
मैहर। प्रयागराज। विंध्याचल। वाराणसी। देवघर। नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ। दक्षिणेश्वर-कोलकाता। विभाषा (तामलुक)। सुल्तानगंज। नवगछिया। अमरदीप जी के घर। पूर्णिया। अलीगंज। भगबती। फुलबारी। जलपाईगुड़ी। कोकराझार। जोगीघोपा। गुवाहाटी। भगबती। दूसरा चरण – सहारनपुर से यमुना नगर। बापा। कुरुक्षेत्र। जालंधर। होशियारपुर। चिंतपूर्णी। ज्वाला जी। बज्रेश्वरी देवी, कांगड़ा। तीसरा चरण – वृन्दावन। डीग। बृजनगर। विराट नगर के आगे। श्री अम्बिका शक्तिपीठ। भामोद। यात्रा विराम। मामटोरीखुर्द। चोमू। फुलेरा। साम्भर किनारे। पुष्कर। प्रयाग। लोहगरा। छिवलहा। राम कोल।
शक्तिपीठ पदयात्रा
प्रेमसागर की पदयात्रा के लिये अंशदान किसी भी पेमेण्ट एप्प से इस कोड को स्कैन कर किया जा सकता है।

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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