15 मार्च 23
आज रास्ता लम्बा था। छप्पन किलोमीटर का। मुझे यकीन नहीं था कि प्रेमसागर उसे पूरा चल पायेंगे। पर शायद प्रेमसागर को था। सवेरे छ बजे के पहले निकले होंगे वे टोला डुमरी खास से। रेत का इलाका जल्दी ही खत्म हो गया। घण्टे भर में ही। उसके बाद पहाड़ और जंगल। दो घाटियां पड़ीं – चकाई और रांगा। प्रेमसागर के शब्दों में रास्ता अंग्रेजी का डब्ल्यू बनाता था। ऊपर नीचे होता हुआ।
चकई घाटी में एक अजीब घटना हुई। एक बूढ़ा और अपंग आदमी एक लाइन होटल वाले से खाने को मांग रहा था और होटल वाले ने उसे दुत्कार दिया। प्रेमसागर को दुत्कारना बुरा लगा। बूढ़े से बातचीत की तो उसने बताया कि पास के गांव का है वह। उसकी पतोहू जंगल से लकड़ी काट कर लाती है। उसे बेच कर वे भोजन का इंतजाम करते हैं। पतोहू बीमार है। जंगल नहीं जा पा रही। खाने को नहीं है। तो उसने दो दिन से खाना नहीं खाया है।

प्रेमसागर ने अपने पास मौजूद चिवड़ा और चीनी उस वृद्ध को दिया। साथ में रोती उसकी पोती को दस रुपये बिस्कुट लेने को दिये। अपने पास से एक प्लास्टिक की बोतल में उसे पानी भी दिया। चिवड़ा-चीनी-पानी का भोजन पा कर वृद्ध ने आशीर्वाद दिया – आगे तुम्हारी यात्रा सकुशल और सफल होगी।

सहायता करने और वह आशीर्वाद पाने से प्रेमसागर जरूर रोमांचित हुये होंगे। उन्होने तुरंत फोन कर मुझे इस घटना की जानकारी दी। लगा कि महादेव स्वयम परीक्षा ले रहे हों प्रेमसागर की करुणा और दया की। और वे उसमें पास हो गये हों।



आगे ऊंचाई और नीचाई पड़ी जंगली इलाके की। पलाश फूला था चटका लाल लाल। “भईया, ऐसा लग रहा था मानो माई यात्रा में मुझे आशीर्वाद दे रही हों लाल रंग के फूल बिछा कर।” माता को लाल रंग प्रिय है।
कई जगह सड़क छोड़ पगडण्डी पकड़ चले प्रेमसागर। उससे आराम भी रहा और दूरी भी कुछ कम हुई। “फिर भी बहुत चलना पड़ा भईया आज। और ऊंचाई-नीचाई के कारण मेहनत भी रही। लेकिन गया वाले दिन (उस दिन 74 किमी चलना पड़ा था गया में जगह न मिल पाने से) से कम ही चलना पड़ा। कच्चे रास्ते चलते हुये मैं सीधे माधोपुर पंहुचा। वहां से बिहार-झारखण्ड बार्डर पास ही है। मन में बाबा धाम में पंहुचने का जोश तो था ही।” – प्रेमसागर ने शाम के समय बाबा धाम – देवघर पंहुच कर बताया।


“भईया, ऐसा लग रहा था मानो माई यात्रा में मुझे आशीर्वाद दे रही हों लाल रंग के फूल बिछा कर।”
रास्ते में सड़क किनारे कई जगह टेबल लगाये सत्तू का शर्बत बेचते लोग थे। जहां भी वे मिले, प्रेमसागर ने सत्तू पिया। उससे ऊर्जा भी मिली और शरीर को पानी भी। करीब 8-9 जगह सत्तू का शर्बत पिया होगा, प्रेमसागर बोले। दस रुपये का एक ग्लास सत्तू। उसके अलावा रास्ते में एक जगह रसगुल्ला खा कर पानी पिया। इन्ही के बल पर 56 किमी की यात्रा सम्पन्न की।
देवघर से पहले नदी पड़ती है। मयूराक्षी नाम है गूगल मैप पर। मैंने उसके बारे में पूछा।
“भईया अंधेरा हो गया था सो फोटो नहीं ले पाया। नदी में पानी रहता है पर पहले कहीं पानी रोकने का फाटक लगा है। पानी सिंचाई के काम लाते होंगे। इसलिये पानी कम था। बरसात के मौसम में खूब पानी होता है। और इस साल बारिश भी कम ही हुई है। पानी कम होने का वह भी कारण है।”

बाबाधाम में अनेक बार कांवर के साथ आने के कारण बहुत से लोग प्रेमसागर के परिचित हैं। मोनू पण्डा जी ने उनके रहने का इंतजाम किया है। सामान रख बाबा बैजनाथ को प्रणाम करने गये प्रेमसागर। रात हो गयी थी, तो मंदिर बंद हो गया था। बाहर से ही बाबा को दण्डवत किया। कल वे सवेरे पुन: आयेंगे दर्शन करने। दर्शन के बाद ही रवाना होंगे वासुकीनाथ के लिये।
मेरे अनुसार, प्रेमसागर में लम्बी यात्राओं से बड़े सार्थक परिवर्तन हुये हैं। प्रकृति के दर्शन और ईश्वर के प्रति श्रद्धा में कोई विरोधाभास नहीं है – यह उन्हें समझ में आया है। गूगल नक्शे का बेहतर प्रयोग करने लग गये हैं। भौगोलिक स्थिति का अध्ययन, लोगों का व्यवहार, आदतें आदि देखने समझने की ड्रिल ने उनके व्यक्तित्व को निखारा है।
और दिन यात्रा विवरण लिखने में मुझे बहुत प्रश्न करने होते हैं और बहुत से इनपुट मुझे खुद को खंगालने होते हैं। आज वह उतना नहीं करना पड़ा। बाबाधाम प्रेमसागर का अपना क्षेत्र है और वहां पंहुचने की ललक ने प्रेमसागर को स्वत: मुखर बना दिया है। अपने से ही वे छोटी छोटी जानकारियां देते गये मुझे। इसके अलावा पलाश वन की लालिमा के साथ माई के आशीर्वाद की कल्पना करना अच्छा लगा। प्रेमसागर यात्रा विवरण देने-लिखने की बारीकियां समझने लगे हैं। जानने लगे हैं कि वह मात्र चित्र देना या घटना की बेसिक जानकारी देना भर नहीं होता। उसमें यह भी जानने की जिज्ञासा का भाव लाना होता है कि कोई चीज कैसी क्यों है। मयूराक्षी में पानी अगर कम है तो क्यों है। रास्ता अगर अनड्यूलेटिंग है तो उसे डब्ल्यू कहा जा सकता है। हां, उस बूढ़े की अपंगता नहीं बताई उन्होने अपने से। वह तो चित्र में साइकिल का चक्का देख मैंने पूछा, तब उन्होने बताया कि वह अपंग था और ट्राईसाइकिल से चल रहा था।
मेरे अनुसार, प्रेमसागर में लम्बी यात्राओं से बड़े सार्थक परिवर्तन हुये हैं। प्रकृति के दर्शन और ईश्वर के प्रति श्रद्धा में कोई विरोधाभास नहीं है – यह उन्हें समझ में आया है। गूगल नक्शे का बेहतर प्रयोग करने लग गये हैं। भौगोलिक स्थिति का अध्ययन, लोगों का व्यवहार, आदतें आदि देखने समझने की ड्रिल ने उनके व्यक्तित्व को निखारा है। पर लोगों, स्थानों आदि के नाम सही सही सुनना और याद रखना उनका बहुत ही कमजोर पक्ष सतत बना हुआ है। इसको ले कर कभी कभी बहुत खीझ होती है। इस विषय पर समय मिलता रहेगा लिखने के लिये। 😆

मोनू पण्डा जी ने बाबा बैजनाथ के मंदिर पर दण्डवत के बाद पास की दुकान में जलपान कराया। रात में भोजन भी उन्हे के सौजन्य से होगा। रहने की व्यवस्था तो है ही। अगले दिन बैजनाथ धाम दर्शन के बाद आगे निकलेंगे प्रेमसागर वासुकीनाथ के लिये। वासुकीनाथ दर्शन के बाद उन्हें बंगाल में धंसना है।
जब यात्रा प्रारंभ की तो मध्यप्रदेश था. उसके बाद उत्तर प्रदेश और फिर बिहार। अब झारखंड। चार प्रांतों की धरती पर चल चुके हैं प्रेम सागर!
हर हर महादेव! जय बाबा बैजनाथ! ॐ मात्रे नम:!
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दिन – 34 कुल किलोमीटर – 1244 मैहर। अमरपाटन। रींवा। कटरा। चाकघाट। प्रयागराज। विंध्याचल। कटका। वाराणसी। जमानिया। बारा। बक्सर। बिक्रमगंज। दाऊदनगर। करसारा। गया-वजीरगंज। नेवादा। सिकंदरा। टोला डुमरी। देवघर। तालझारी। दुमका-कुसुमडीह। झारखण्ड-बंगाल बॉर्डर। नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ। फुल्लारा और कंकालीताला। नलटेश्वरी। अट्टहास और श्री बहुला माता। उजानी। क्षीरसागर/नवद्वीप। |
