देवघर से तालझारी

17 मार्च 23

कल सवेरे साढ़े छ – पौने सात बजे प्रेमसागर ने बाबा धाम दर्शन किये। मंदिर खुला था तो विधिवत दर्शन हुये। मुझे दर्जन भर चित्र ह्वाट्सएप्प पर ठेले और फिर फोन किया। मैं साइकिल चला रहा था। किनारे लगा उनकी बात सुनी – “आज अभी बाबा धाम के दर्शन किये हैं। अभी घण्टा भर बाद निकलूंगा एक टैबलेट ले कर।”

टेबलेट काहे?

“कुछ खास नहीं भईया। हरासमेण्ट है।” – प्रेमसागर का हिंदी शब्द हरारत (थकान, हल्का ज्वर और सामान्य शिथिलता) का शायद अंगरेजी या शहरी तर्जुमा है हरासमेण्ट। तबियत नरम होने पर इस शब्द का प्रेमसागर बहुधा उपयोग करते हैं। अंग्रेजी शब्दकोश में शरीर की दशा के अर्थों में सम्भवत: उसका प्रयोग न होता हो।

सवेरे साढ़े छ – पौने सात बजे प्रेमसागर ने बाबा धाम दर्शन किये।

जब तबियत नरम है तो एक दिन आराम कर लीजिये। मोनू पण्डा और यहां की व्यवस्था तो आपकी जानी पहचानी है। रुकने में कोई परेशानी थोड़े होगी?

प्रेमसागर शायद रुकना चाहते भी थे। उनकी भावना पर एक हामी मेरी ओर से मिली और उन्होने रुकने का निर्णय ले लिया। कल आराम ही किया। बाद में दिन भर के बारे में बताते हुये मुझे बताया – “खूब सोया दिन भर भईया। बीच में जब उठता तो बाबाधाम में जा कर बैठ जाता। फिर वापस आ कर सो जाता। शरीर को जो चाहिये था, वह आराम मिल गया।”

आज सवेरे साढ़े तीन – पौने चार बजे ही निकल लिये प्रेमसागर वासुकीनाथ के लिये। जब आठ बजे मुझसे चित्र भेजने के बाद बात की तो करीब बीस किमी चल चुके थे। घोरमारा में बैठ चाय पी रहे थे। दिन की पहली चाय।

“घोरमारा का पेड़ा एक नम्बर का होता है।”

“घोरमारा वह जगह है जहां बासुकीनाथ जाने वाले यात्री रुक कर बासुकीनाथ का प्रसाद लेते हैं। अभी तो मैं आज की पहली चाय की दुकान देख कर रुक गया हूं। प्रसाद की दुकानें कुछ आगे हैं। बहुत सी हैं। पचास ठो से ऊपर ही होंगी। मेन बात है भईया कि नम्बर एक का दूध का पेड़ा मिलता है वहां। कभी मैं आपको खिलाऊंगा।” – प्रेमसागर ने अपनी कमेण्ट्री दी।

“सवेरे जल्दी निकलना बहुत फायदेमंद है भईया। अब गर्मी हो गयी है। दिन में सड़क तपने लगती है तो चलने में मुश्किल होती है। सवेरे सवेरे खूब चला जा रहा है। अब आगे यही करूंगा। सवेरे जितना हो सके चल कर दिन में आराम और फिर शाम को चलना हुआ करेगा। आगे बंगाल में तो और भी गर्मी होगी। मैं बासुकीनाथ में एक चप्पल खरीदूंगा। बनारस से चलने पर खरीदी पहले वाली चप्पल तो टूट गयी। अब नंगे पैर चल रहा हूं। ज्यादा मंहगी नहीं, पचास – साठ की खरीदूंगा। जितना चले चले, फिर दूसरी।”

जूता क्यों नहीं खरीदते?

“जूते से चलने में थकान ज्यादा होती है। गर्मी का मौसम है। सर्दी का होता तो ज्यादा ठीक रहता जूता। अब चप्पल ही ठीक है।” – प्रेमसागर कहते हैं।

“भईया, बंगाल के शक्तिपीठ तो आप देख लिये होंगे नक्शे में। एक लिस्ट बना लिये होंगे न?” – उनका यह कहना मुझे मनोरंजक लगता है। यात्रा वे कर रहे हैं। प्लानिंग उनकी होनी चाहिये पर धीरे से यात्रा का प्लानिंग वाला पार्ट मेरी ओर सरका दे रहे हैं – मेरी तरफ, जिसने बिहार-बंगाल का यह हिस्सा कभी देखा नहीं। कभी मानसिक रूप से जिस इलाके की कोई छवि भी नहीं बनी। :lol:

प्रेमसागर रास्ते में पड़े त्रिकूट पर्वत की बात किये। रास्ते से तीन किलोमीटर हट कर पर्वत है। “चित्र में आप जरा जूम कर देखियेगा। लगता है पहाड़ को किसी ने तरवार से फारा हो। … मैं वहां कभी गया नहीं। वहां माई का मंदिल है। जब बुलावा आयेगा, तब शायद जाना हो पाये।” त्रिकूट पर्वत के दूर से अनेक चित्र भेजे हैं प्रेमसागर ने। एक चित्र में तो इकहरी रेल लाइन के अंत में क्षितिज पर दीखता है त्रिकूट।

एक चित्र में तो इकहरी रेल लाइन के अंत में क्षितिज पर दीखता है त्रिकूट।

घोरमारा से आगे बढ़ने पर ढाई घंटे बाद फिर फोन आया प्रेमसागर का। कोई जगह है तालझारी। वहां के प्रकाश बाबा ने उन्हें आज के लिये रोक लिया है। प्रकाश बाबा भी कांवर यात्री रह चुके हैं।

“मैं डब्बा में जल ले कर चलता था और प्रकाश बाबा सुराही (मिट्टी के संकरे मुंह वाले बर्तन) में जल ले कर चला करते थे। उन्होने यहां महाकाल शिवजी का मंदिल (मंदिर) और आश्रम बनाया है। एक गौशाला भी है। बाउण्ड्री का काम अभी होना है। प्रकाश बाबा दरभंगा जिला के हैं। वे उज्जैन से शिवलिंग ला कर यहां स्थापित किये हैं। भजन-पूजन और यज्ञ आदि करते हैं। मेरे लिये बहुत स्नेह है। उन्होने कहा तो रुक ही गया हूं। मोटामोटी अठ्ठाईस किलोमीटर चल चुका हूं।” – प्रेमसागर ने बताया।

तारझारी। वहां के प्रकाश बाबा ने उन्हें आज के लिये रोक लिया है।

पहले इतनी जानकारी लेने के लिये मुझे कम से कम पांच साल सवाल करने होते थे। अब वह प्रेमसागर खुद बता ले रहे हैं। वे समझ गये हैं कि मुझे किस तरह की जानकारी चाहिये और वे शायद अपनी ओर से तैयार रखते हैं। या फिर यह हो सकता है कि देवघर-वासुकीनाथ उनका अपना बैटिंग-फील्ड है और यहां वे ज्यादा सहज महसूस करते हैं।

मैंने पूछा – भजन-पूजन करते हैं प्रकाश बाबा तो कैसी आवाज है गाने में? क्या उनका गायन ह्वाट्सएप्प पर रिकार्ड कर भेज सकते हैं आप?

“हां हां। जब गायेंगे तो भेजूंगा। आप से उनकी बात भी करा दूंगा।” – प्रेमसागर ने कहा। पर उसके बाद पूरे दिन लगता है तालझारी में प्रकाश बाबा के आतिथ्य में मगन रहे प्रेमसागर। मुझे फोन करने का या ह्वाट्सएप्प पर संदेश भेजने का समय नहीं निकाल पाये।

अब कर वासुकीनाथ के लिये निकलना होगा। वह तालझारी से बीस किलोमीटर से कम ही दूरी पर है। कल भी ज्यादा चलना नहीं होगा। कल ही बात होगी प्रेमसागर से।

आप कृपया प्रेमसागर की यूपीआई पते पर सहायता करने पर विचार करें। वे आप जैसों के सहयोग से ही आगे बढ़ रहे हैं। आगे बंगाल में अनजान जगह और भाषाई अपरिचय के कारण उन्हें आर्थिक सहयोग की ज्यादा ही जरूरत होगी।

हर हर महादेव। जय वासुकीनाथ। ॐ मात्रे नम:!

प्रेमसागर की शक्तिपीठ पदयात्रा
प्रकाशित पोस्टों की सूची और लिंक के लिये पेज – शक्तिपीठ पदयात्रा देखें।
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प्रेमसागर के लिये यात्रा सहयोग करने हेतु उनका यूपीआई एड्रेस – prem12shiv@sbi
दिन – 103
कुल किलोमीटर – 3121
मैहर। प्रयागराज। विंध्याचल। वाराणसी। देवघर। नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ। दक्षिणेश्वर-कोलकाता। विभाषा (तामलुक)। सुल्तानगंज। नवगछिया। अमरदीप जी के घर। पूर्णिया। अलीगंज। भगबती। फुलबारी। जलपाईगुड़ी। कोकराझार। जोगीघोपा। गुवाहाटी। भगबती। दूसरा चरण – सहारनपुर से यमुना नगर। बापा। कुरुक्षेत्र। जालंधर। होशियारपुर। चिंतपूर्णी। ज्वाला जी। बज्रेश्वरी देवी, कांगड़ा। तीसरा चरण – वृन्दावन। डीग। बृजनगर। विराट नगर के आगे। श्री अम्बिका शक्तिपीठ। भामोद। यात्रा विराम। मामटोरीखुर्द। चोमू। फुलेरा। साम्भर किनारे। पुष्कर। प्रयाग। लोहगरा। छिवलहा। राम कोल।
शक्तिपीठ पदयात्रा
प्रेमसागर की पदयात्रा के लिये अंशदान किसी भी पेमेण्ट एप्प से इस कोड को स्कैन कर किया जा सकता है।

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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