तालझारी से दुमका के आगे कुसुमडीह

18 मार्च 23

तालझारी के महाकल मंदिर के प्रमुख प्रकाश जी ने प्रेमसागर को रोकने की कोशिश की। कहा कि नवरात्रि तक वहीं रुकें। पर प्रेमसागर ने बरसात के पहले पहले बंगाल-असम की शक्तिपीठ पदयात्रा पूरा कर लेने की जरूरत बताई। उनका काम ही चलना है। ज्यादा दिन रुक जाने पर चलने की मशीन का तेल शायद जाम हो जाने का खतरा हो जाता हो।

वे रुके नहीं। सवेरे की पूजा अर्चना के बाद निकल लिये। प्रकाश जी ने अपने हितैशी शंकर जी को फोन लगाया। शंकर जी की धर्मशालायें हैं सुल्तानगंज-बाबा धाम के रास्ते में। उनके बहनोई जी का दुमका के आगे एक होटल है। रिया रमन होटल। वहीं रुकने की व्यवस्था कर दी है शंकर जी ने।

सवेरे तालझारी में प्रकाश बाबा के आश्रम से विदा लेने के पहले का ग्रुप फोटो।

पहले तालझारी से निकलने के तीन घण्टे बाद पड़ा बासुकीनाथ। प्रेमसागर बार बार कहते हैं – भईया, बाबा धाम हाईकोर्ट है तो बासुकीनाथ सुप्रीमकोर्ट। बाबाधाम के दर्शन के बाद बासुकीनाथ का दर्शन करना ही होता है। वहां उन्होने दर्शन किया। प्रसाद इत्यादि लिया होगा। मार्केट का चित्र भी भेजा है।

बासुकीनाथ का बाजार

नक्शे के अनुसार बासुकीनाथ और दुमका के बीच प्रेमसागर ने मयूराक्षी नदी पार की होगी। पानी से भरी नदी जैसा कुछ नजर नहीं आया उनके चित्रों में। रेत ही दीखती है। और एक क्षीण सी धारा। ताराशंकर बंद्योपाध्याय के उपन्यास गणदेवता में मयूराक्षी बड़ी नदी है। अब शायद सौ साल बाद वह क्षीण हो गयी हो। नदियों का, बरसात के मौसम से इतर बुरा हाल होता जा रहा है। नदी पर डैम/बैराज बने हैं। शायद पहले पानी रुक गया हो। आगे भी एक जगह मसंजोर डैम दिखाई पड़ता है नक्शे में। पर प्रेमसागर का वहां से गुजरना नहीं होगा।

मयूराक्षी नदी

दामोदर नदी पहले बंगाल का काल कही जाती थी। बाढ़ से बहुत तबाही होती थी। वैसा ही कुछ हाल मयूराक्षी का भी रहा है। दामोदर नदी पर बांध और पानी के दूसरे प्रयोगों से वैसी भीषण बाढ़ अब दामोदर में नहीं आती। शायद वैसा मयूराक्षी के साथ भी हो। अंतिम बाढ़/तबाही कब लाई थी मयूराक्षी? … नेट पर बहुत सामग्री नहीं मिलती। भारतीय मानस नेट पर उथली बातें ठेलता है| जो कुछ मिलता है उसमें बहुधा गहराई नहीं होती। 😦

दुमका के पहले नंगे पैर चलते प्रेमसागर के पांव में खजूर का कांटा गड़ गया। खुद निकाल नहीं पाये तो रास्ते में एक स्वास्थ्य केंद्र पर डाक्टर साहब से निकलवाया। वहां की पर्ची के चित्र में जगह का नाम लिखा है – सामुदायिक स्वास्थ केंद्र, जामा। वहां पेन किलर भी दिया गया उन्हे। वहीं कांटा निकालने के लिये प्रेमसागर ने सेफ्टीपिन का गुच्छा खरीदा और एक जोड़ी चप्पल भी।

चप्पल पहले क्यूं नहीं खरीदा? कांटा गड़ने का इंतजार क्यूं किया?

प्रेमसागर का तर्क अजीब है। “पहले मंहगा मिल रहा था भईया” … यात्रा की कुछ बेसिक जरूरतें हैं। जूता नहीं पहनना, चट्टी पहनना या नंगे पैर चलना। चप्पल भी सस्ता लेना – कई कई तरह की ग्रंथियां हैं! इन ग्रंथियों के बावजूद (या उनके साथ अपनी श्रद्धा का सम्बल जोड़ कर) प्रेमसागर की लदर-फदर यात्रा चल रही है।

दुमका के बारे में बताते प्रेमसागर कहते हैं – भईया, साफ सुथरी जगह है। लोग भी सीधे हैं और सहायता करते हैं। ज्यादा फोटो नहीं ले पाया। कई जगहों पर फोटो लेने की मनाही थी।

सिद्धू और कानू मुर्मू पर डाकटिकट। Post of India – https://colnect.com/en/stamps/stamp/158245-Sido_Murmu_-_Kanhu_Murmu-History-India, GODL-India, https://commons.wikimedia.org/w/index.php?curid=98713604 द्वारा

दुमका संथाल परगना का एक प्रमुख शहर है। आदिवासी संथालों की बहुतायत है। सिद्धू और कानू मुर्मू का नाम आजकल बहुत से लोगों ने, राष्ट्रवादी भावनाओंं के उफान युग में बहुत से लोगों ने सुन लिया होगा। पर शायद इतिहास जानने की उत्सुकता उतनी न हो। उन्होने सन 1855-56 में संथाल हूल के नाम से स्वतंत्रता का युद्ध लड़ा ईस्ट इण्डिया कम्पनी और शोषक महाजनों के खिलाफ। साठ हजार संथाल इकठ्ठे हुये। उन्होने इलाके को मुक्त कर लिया। अपनी टेक्स व्यवस्था भी लागू की। अंग्रेज हतप्रभ रह गये थे। पर अंतत: जीत उनकी टेक्नॉलॉजी – गोला बारूद – और तीर कमानों के असमान युद्ध के कारण संथाल विद्रोह दबा दिया गया। सिद्धू और कानू को फांसी दी गयी।

प्रेमसागर की पदयात्रा में इतिहास जानने की और आसपास के स्थानों की घुमक्कड़ी की गुंजाइश नहीं है। डियाकी (डिजिटल यात्रा कथा लेखन) में है। कुछ वर्षों पहले मेरे दामाद ने मालूती की यात्रा की थी। यह मिट्टी से बने अनेक मंदिरों का गांव है और दुमका जिले में ही है। उनके खींचे कई चित्र काफी समय तक मेरे मोबाइल में रहे भी। कभी यह नहीं सोचा था कि प्रेमसागर के साथ डिजिटल यात्रा में उनके पास से गुजरना होगा। विवेक (मेरे दामाद) कामकाजी जीव हैं। मेरे कहने पर वे पुन: मालूती की यात्रा करने से रहे! कितनी जगहें स्मृति में यूं ही धुंधलाते हुये गुम हो जायेंगी। फिलहाल, प्रेमसागर के बहाने उनकी याद हो आयी!

प्रेमसागर ने सोचा कि रिया रमन होटल शायद पातबारी में है। वह जगह उन्हें गूगल मैप पर नजर नहीं आई। मैप अपड़ेट नहीं होता – उसके लिये कामचलाऊ इण्टरनेट कनेक्शन चाहिये। वह शायद नहीं था। सो, अंदाज से ही निकल लिये थे तालझारी से प्रेमसागर। यह सोचते हुये कि शायद पचास साठ किलोमीटर चलना हो। लेकिन दुमका पास होते ही कुसुमडीह में पड़ा रिया रमन होटल।

रिया रमन होटल रास्ते में ही सड़क पर है। “शंकर जी के बहनोई जी के होटल में शाकाहारी-मांसाहारी दोनो तरह का भोजन होता है। मीट मुरगा सब होता है। पर बहनोई जी ने अपने घर से साफ सुथरे भोजन की व्यवस्था की। पनीर की सब्जी, दाल, चावल। हमको कमरे में ही भोजन कराया। बहनोई जी काफी बिजी थे। होटल रात इग्यारह बजे तक चलता रहता है। काम धाम वे संभालते हैं।”

रिया रमन होटल रास्ते में ही सड़क पर है।

कुछ अलग सा नाम है रिया रमन। कोई कृष्ण भक्त तो रखेगा राधारमण। शायद बहनोई जी के बेटी-बेटा हों रिया और रमन। प्रेमसागर को यात्रा में यह जिज्ञासा भी होनी चाहिये कि किसी जगह को कोई नाम क्यूं दिया जाता है। वैसे अपनी मेमोरी में नाम न रजिस्टर करना या गलत रजिस्टर करना प्रेमसागर का बड़ा कमजोर पक्ष है। इसलिये वे नामों और शब्दों को रखने की ओर ध्यान देंगे – मुझे नहीं लगता। उनकी इस कमजोरी के साथ ही मुझे डियाक (डिजिटल यात्रा कथा) लेखन करना है! 😆

आज छियालीस किलोमीटर चले। आगे करीब 65 किमी बाद नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ है। बंगाल में। कल वहां पंहुचेंगे या रास्ते में कहीं पड़ाव होगा? समय ही बतायेगा।

हर हर महादेव। ॐ मात्रे नम:!

प्रेमसागर की शक्तिपीठ पदयात्रा
प्रकाशित पोस्टों की सूची और लिंक के लिये पेज – शक्तिपीठ पदयात्रा देखें।
*****
प्रेमसागर के लिये यात्रा सहयोग करने हेतु यूपीआई एड्रेस – prem12shiv@sbi
दिन – 34
कुल किलोमीटर – 1244
मैहर। अमरपाटन। रींवा। कटरा। चाकघाट। प्रयागराज। विंध्याचल। कटका। वाराणसी। जमानिया। बारा। बक्सर। बिक्रमगंज। दाऊदनगर। करसारा। गया-वजीरगंज। नेवादा। सिकंदरा। टोला डुमरी। देवघर। तालझारी। दुमका-कुसुमडीह। झारखण्ड-बंगाल बॉर्डर। नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ। फुल्लारा और कंकालीताला। नलटेश्वरी। अट्टहास और श्री बहुला माता। उजानी। क्षीरसागर/नवद्वीप।
शक्तिपीठ पदयात्रा
प्रेमसागर की पदयात्रा के लिये अंशदान किसी भी पेमेण्ट एप्प से इस कोड को स्कैन कर किया जा सकता है।

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Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

7 thoughts on “तालझारी से दुमका के आगे कुसुमडीह

  1. सुधीर खत्री फेसबुक पेज पर –
    ये तीर कमान ताने किसकी मूर्ति है सर?

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    1. मूर्ति तिलका मांझी की है।
      सन 1784 में अंग्रेजों से विद्रोह करने पर वे पकड़े गये। घसीटा गया और फांसी दी गयी।
      तिलका मांझी को नमन।

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  2. बदनाम शायर, ट्विटर पर –
    मयूराक्षी के किनारे ही मसानजोर डैम है, यही निरीक्षण भवन मे कभी लाल कृष्ण आडवाणी कैद किए गए थे लालू प्रसाद द्वारा । वैसे इस डैम से बहुत समस्याएँ भी आई हैं, देवघर के रोपवे के हादसे के पीछे ये नदी भी कारण थी ।
    जाने क्यों ये क्षेत्र टूरिज़्म के लिहाज से लोकप्रिय क्यूँ नहीं हो पाये।

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    1. धन्यवाद! डैम का मैंने जिक्र किया है। पर आपकी जानकारी और भी गहन है!
      मयूराक्षी यात्रा में आगे पुन: मिलेगी! 🙂

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