कालिका नलटेश्वरी शक्तिपीठ

22 मार्च 23

सैंथिया स्टेशन, जहां लड्डू शाह जी की मौचक लॉज में प्रेमसागर रुके हुये हैं; से कालिका नलटेश्वरी शक्तिपीठ 45 किमी दूर है। उत्तर की ओर। बीरभूम जिले के रामपुरहाट तहसील में। आज प्रेमसागर को वहां जाना था। पैदल उन्होने शक्तिपीठ तक यात्रा की।

वापसी में नलहाटी से ट्रेन पकड़ी। सैंथिया (या सईंथिया) भी जंक्शन है और नलहाटी भी। दोनो पर लगभग सभी ट्रेनें रुकती हैं। एक घण्टा से भी कम समय लगता है ट्रेन यात्रा में।

रास्ते का एक दृश्य

आज रात की बारिश के कारण कहीं कहीं सड़क पर कीचड़ था। चप्पल फंस जा रही थी। पांच सात किलोमीटर सड़क भी टूटी-फूटी मिली। सवेरे जल्दी निकलने के बावजूद दिन भर लग गया नलटेश्वरी माई के स्थान पर पंहुचने में। रास्ते में दो मिलें दिखीं। दोनो कृषि आर्धारित मिलें। थोड़ा बहुत अद्योगिक विकास तो है बीरभूम के इस संथाली इलाके का।

शाम चार बजे वे 500 मीटर दूर थे मंदिर से। पौना घण्टे बाद नलहाटी स्टेशन से वापसी की ट्रेन थी। प्रेमसागर को दर्शन जल्दी करने थे। खैर, “माई की कृपा से” सब अच्छे से हो गया।

“मंदिर एकांत है भईया। साफ सुथरा। मन को अच्छा लगता है वहां। भीड़ भी बहुत ज्यादा नहीं थी। नवरात्रि का प्रारम्भ है तो कुछ तो लोग थे ही। भईया, यहां सती माई का गला गिरा हुआ था। यहां भैरव हैं – योगेश। आप को बता दे रहा हूं, काहे कि बाद में हो सकता है भूल जाऊं।” – प्रेमसागर ने शाम साढ़े चार बजे कहा। मैं हर बार उनसे शक्तिपीठ के भैरव का नाम पूछता हूं और यह भी कि भैरव के दर्शन किये हैं या नहीं। शक्तिपीठ अनेक हैं। कुछ लोगों ने कालांतर में और भी जोड़ लिये हैं। भैरव और उनका मंदिर संलग्न होने से शक्तिपीठ की प्राचीनता का आभास मुझे होता है।

कालिका नलटेश्वरी शक्तिपीठ। स्लाइड शो।

वे दर्शन के तुरंत बाद नलहाटी स्टेशन के लिये निकल लिये। नलहाटी जंक्शन स्टेशन मंदिर से 1300 मीटर की दूरी पर है। किसी वाहन से पंहुचे होंगे वे। ट्रेन शायद कुछ लेट थी, पर ज्यादा नहीं। स्टेशन एक दो तीन चित्र उन्होने भेजे।

बाद में मौचक लॉज लौटने पर प्रेमसागर ने बताया – “सवेरे निकलने के करीब पंद्रह किलोमीटर चलने पर एक चाय दुकान पर मैंने चाय पी। वहां से चल रहा था तो एक छोटी बच्ची दौड़ती आयी थी मेरे पास और इक्यावन रुपये दे कर माता जी को उनकी ओर से चढ़ाने के लिये बोली। उसका फोटो हींच लिया है। आपको भेज दे रहे हैं। बच्ची का नाम है शीनू मण्डल।”

“छोटी बच्ची दौड़ती आयी थी मेरे पास और इक्यावन रुपये माता जी को उनकी ओर से चढ़ाने के लिये दिया था। बच्ची का नाम है शीनू मण्डल।”

किसी भी यात्री-पदयात्री को अपनी ओर से चढ़ाने के लिये पैसा या सामग्री देना प्राचीन परम्परा है। पहले यात्रा कठिन हुआ करती थी। रास्ते निरापद नहीं होते थे। कई कई जगह रास्ते होते भी नहीं थे। जो यात्रा पर जाता था, उसे पूरा गांव और रास्ते के लोग भी विदा करते थे। अपनी ओर से भी कहते थे कि फलानी चीज या फलानी मुद्रा देवता को अर्पित कर देना। नदी में उनकी ओर से भी एक डुबकी लगा लेना। श्रद्धा को पदयात्री के माध्यम से देवता तक पंहुचाना हिंदू धर्म की विशिष्ट परम्परा है। वह बच्ची – शीनू मण्डल – उसी के अनुसार प्रेमसागर को इक्यावन रुपये दे रही थी। उसकी मां-पिताजी ने दिये होंगे वे पैसे। पर बच्ची में एक संस्कार तो डाल रहे थे उसके माता-पिता। जय हो!

शाम वापस लौटने पर मैं नलटेश्वरी माता के विषय में प्रेमसागर से पूछ्ता हूं तो वे गुड्डू मिश्र जी को फोन कर पता करते हैं। किन्ही रामचरण शर्मा जी को माता सपने में आयी थीं, तो उन्होने यहां मंदिर बनवाया। वहां नीम का एक गाछ है। जिसका पत्ता मीठा होता है। झरने पर उठा कर खायें तो कड़वा होता है। गुड्डू मिश्र जी ने नारद जी को स्वप्न में माता के आने और उससे इस पीठ को जोड़ने की बात भी बताई। सनातनी आस्थायें स्वप्न में प्रेरणा मिलना, कुछ नीम के मीठे होने जैसे चमत्कार, किसी महापुरुष के कोई वचन आदि से उत्प्रेरित होती हैं।

शक्तिपीठ चार हों, अठारह हों, इक्यावन हों, बावन-तिरपन-चौंसठ हों या एक सौ आठ। सारा खेल शक्ति-रूपा ईश्वरीय वपु का है। माता माहेश्वरी के अनेकानेक रूप हैं। उनकी कल्पना शरीर के उनके अंगों, उनकी प्रकृति और/या उनकी भौगोलिक स्थिति से होती है। मैं प्रेमसागर की यात्रा के दौरान उन्हें समझने का (असफल) प्रयास करता हूं और जब उलझन होती है तो खीझ के रूप में प्रेमसागर पर उतारता हूं। पर प्रेमसागर पर उसका कोई प्रभाव पड़ता नहीं दिखता। अगले दिन वे पुन: उसी जोश, उसी श्रद्धा से नयी यात्रा के लिये तैयार दीखते हैं। गूगल मैप पर उनके रात्रि विश्राम स्थल से हिला-चलता उनका आईकॉन बता देता है कि वे भोर में चल दिये हैं।

प्रेमसागर देवी श्रद्धा में मगन-मस्त हैं। मैं प्रेमसागार सिण्ड्रॉम से ग्रस्त हूं। ज्यादा सोचना मन के लिये खतरनाक है। :lol:

कल प्रेमसागर केतुग्राम स्थित श्री बहुला देवी शक्तिपीठ को जायेंगे। अपनी लॉज से फुल्लारा देवी तक बस से और आगे करीब तीस किलोमीटर पैदल। वापस किसी बस या ट्रेन से लौटेंगे।

ॐ मात्रे नम:। हर हर महादेव! मातृशक्ति की जय हो!

प्रेमसागर की शक्तिपीठ पदयात्रा
प्रकाशित पोस्टों की सूची और लिंक के लिये पेज – शक्तिपीठ पदयात्रा देखें।
*****
प्रेमसागर के लिये यात्रा सहयोग करने हेतु उनका यूपीआई एड्रेस – prem12shiv@sbi
दिन – 103
कुल किलोमीटर – 3121
मैहर। प्रयागराज। विंध्याचल। वाराणसी। देवघर। नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ। दक्षिणेश्वर-कोलकाता। विभाषा (तामलुक)। सुल्तानगंज। नवगछिया। अमरदीप जी के घर। पूर्णिया। अलीगंज। भगबती। फुलबारी। जलपाईगुड़ी। कोकराझार। जोगीघोपा। गुवाहाटी। भगबती। दूसरा चरण – सहारनपुर से यमुना नगर। बापा। कुरुक्षेत्र। जालंधर। होशियारपुर। चिंतपूर्णी। ज्वाला जी। बज्रेश्वरी देवी, कांगड़ा। तीसरा चरण – वृन्दावन। डीग। बृजनगर। विराट नगर के आगे। श्री अम्बिका शक्तिपीठ। भामोद। यात्रा विराम। मामटोरीखुर्द। चोमू। फुलेरा। साम्भर किनारे। पुष्कर। प्रयाग। लोहगरा। छिवलहा। राम कोल।
शक्तिपीठ पदयात्रा
प्रेमसागर की पदयात्रा के लिये अंशदान किसी भी पेमेण्ट एप्प से इस कोड को स्कैन कर किया जा सकता है।

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

आपकी टिप्पणी के लिये खांचा:

Discover more from मानसिक हलचल

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading

Design a site like this with WordPress.com
Get started