23 मार्च 2023
आज एक के साथ एक फ्री वाला दिन था प्रेमसागर के लिये। वे सैंथिया रेलवे स्टेशन के पास के मौचक लॉज से सवेरे निकले श्री बहुला शक्तिपीठ, केतुग्राम जाने के लिये। रास्ते में फुल्लारा देवी के शक्तिपीठ का परसों दर्शन वे कर चुके थे। सो वहां तक वे बस से गये। उसके बाद उन्हें पैदल चलना था।
श्री बहुला शक्तिपीठ केतुग्राम, बर्दवान में है। यह अजय नदी के तट पर है। गूगल मैप में पैदल चलने वाले के लिये विकल्प है। उसका प्रयोग कर वे आगे बढ़ रहे थे। इस एप्प का प्रयोग वे अच्छे से सीख गये हैं। मेरे आकलन के हिसाब से रुपया में बारह आना प्रयोग आ गया है उन्हें। पिछ्ली ज्योतिर्लिंग यात्रा में रुपया में एक-दो आना भर आता था। ज्यादातर दिक्कत नहीं होती। उनकी लोकेशन के बारे में जो अनुमान होता है, देखने पर उसी के आसपास दीखते हैं। इसलिये लोकेशन की सैम्पलिंग मैंने बहुत कम कर दी है। दिन भर में दो तीन बार, बस।
“दिन में यात्रा सामान्य रही भईया। एक जगह एक मैडीकल स्टोर वाले सज्जनों ने मुझे शक्तिपीठ पदयात्री जान कर बड़े आदर से बिठाया और जलपान कराया। … यहां छेना की मिठाई बहुत सस्ती है भईया। दूध के दाम तो लगभग वैसे ही हैं जैसे यूपी-बिहार में पर चाय-मिठाई-भोजन बहुत सस्ता है। छेना 150 रुपये किलो। चाय तीन रुपये की। वैसी चाय अपने इलाके में सात-दस की मिलती होगी। आम आदमी अच्छे से भरपेट खा सकता है। मुझे छेना के साथ खूब शीरा भी दिया। ज्यादा पैदल चलने के लिये जितनी चीनी मिल जाये, उतना अच्छा!” – प्रेमसागर ने यह बात मुझे कई बार कही।


मैडीकल स्टोर वालों ने सम्मान दिया। दांये है छेना (रसगुल्ला) बेचने वाले लोगों के बर्तन।
“दिन में एक गांव से गुजरा मैं। वहां के बारे में लोगों ने बताया कि यहीं रहते थे चैतन्य महाप्रभु। वे घर बार छोड़ कर न जायें इसी लिये पत्नी ने अपने आंचल से उन्हें बांध कर रखा था। पर रात में वे धीरे से गांठ खोल कर निकल भागे और संत बन गये। उनका जन्म स्थान भी पास के किसी गांव में है। मेरे पास समय नहीं था, वर्ना उन सब जगहों की यात्रा करता।” – प्रेमसागर यात्रा मार्ग को ले कर सिंगल-प्वाइण्टेड हैं। उनकी यात्रा में इधर उधर निकलने या यात्रा मार्ग बदलने की सम्भावनायें कम हैं।

पर, आज शाम चार बजे, जब मुझे अपेक्षा थी कि वे श्री बहुला माता का दर्शन कर लौट रहे होंगे तो उन्हें रास्ते से अलग ‘अट्टहास’ नामक स्थान पर पाया। वे अट्टहास में एक शक्तिपीठ का दर्शन सम्पन्न कर रहे थे। फुल्लारा माता (अट्टहास) का दर्शन वे दो दिन पहले कर चुके हैं। यह मंदिर बीरभूम जिले में है। आज फिर अट्टहास के नाम से बर्दवान जिले में नया शक्तिपीठ?!
उनसे पूछा तो बताया कि एक जगह रास्ता टूटा था। उन्होने मार्ग बदला लोगों के कहने पर। उन लोगों से शायद उन्होने शक्तिपीठ का रास्ता पूछा होगा और लोगों ने उन्हे अट्टहास की ओर मोड़ दिया। यह स्थान भी शक्तिपीठ और यहां भी देवी का होंठ धरती पर गिरा था। शायद किसी ने उस शक्तिपीठ का स्थान यहां तय किया। उसकी क्या कथा है? कौन पुराण में उसका जिक्र है? यह जानने का समय नहीं था। वहां लोगों ने बताया कि फुल्लारा में देवी का ऊपर का होठ गिरा था और यहां नीचे का (या उसका विपरीत)। इन दोनों स्थलों पर मान्यता देवी के होंठ गिरने की है और दोनो स्थलों के भैरव भी एक ही हैं। शायद एक ही शक्तिपीठ को दो अलग अलग जगह किसी कालखण्ड में स्थापित किया गया हो।





अट्टहास के दृश्य
प्रेमसागर ने एक ऑटो वाले को तय किया था, उससे वे केतुग्राम पंहुच कर श्री बहुला माता के दर्शन भी किये और वहां से बस से वापस लौटे। करीब तीस किलोमीटर चलना था उन्हें और शेष यात्रा बस से करनी थी। मेरे आकलन से उन्हें शाम छ बजे तक वापस आ जाना था। पर वे वापस पंहुचे रात पौने नौ बजे।
“अट्टहास” का शक्तिपीठ ज्यादा व्यवस्थित था और बड़े क्षेत्र में। वहां की जगह देख कर लगता था कि यह कोई अहम मंदिर है। इसके विपरीत श्री बहुला मंदिर सामान्य सा था। लगता नहीं था कि कोई बड़ा मंदिर है। वहां व्यवस्था भी सामान्य थी। वहां के एक ताल में साफसफाई भी नहीं थी और ताल में जल भी स्वच्छ नहीं था। गंदगी थी। बहुला शक्तिपीठ में एक बाबा जी मिले प्रेमसागर को। उनके केश बहुत लम्बे थे। नौ-साढ़े नौ फीट के। बाबा ने उसे लपेट कर बांधा हुआ था, वर्ना वे जमीन को बुहारते चलते। उन बाबाजी ने जब प्रेमसागर की पदयात्रा की बात सुनी तो प्रसन्न हो कर उन्हें एक चूड़ी दी। यह कहा कि यात्रा में शक्तिपीठ दर्शन के समय उसे साथ में रखें।
श्री बहुला शक्तिपीठ में एक लकड़ी का पुल था। शायद नया बना था। उसकी मिट्टी समतल तो की गयी थी, पर रेत हल्की थी और पैर धंसने से एक डेढ़ फुट का गड्ढा बन गया। प्रेमसागर के पांव डगमगाये और दोनों पैरों में हल्की मोच आ गयी। उसके बाद वापसी यात्रा पैदल नहीं, बस से करनी थी, सो काम चल गया। रात में जब वे सईंथिया बस अड्डे पर उतरे तो पैर दर्द कर रहा था।
श्री बहुला शक्तिपीठ, केतुग्राम के दृश्य। स्लाइड शो।
आज कुछ परेशान से थे प्रेमसागर। “भईया, अब मैं अपना पूरा सामान उठा कर यहां से निकल लूंगा। शाम को बस या ट्रेन पकड़ कर वापस लौटना ज्यादा ही पड़ जा रहा है।” वैसे सेंथिया स्टेशन के इस लॉज से आसपास के शक्तिपीठों को कवर करना लगभग पूरा हो गया है। पश्चिम बर्दवान में बहुला माता के नाम से एक और शक्तिपीठ नक्शे में दीखता है। पर आज उन्होने श्री बहुला माता के दर्शन किये हैं। यह उन्हीं के नाम का दूसरा शक्तिपीठ सम्भवत: वैसा ही है जैसे फुल्लारा और अट्टहास के दो शक्तिपीठ हैं। दोनो अलग अलग जगह पर हैं, पर उनकी कथा एक सी है।
शक्तिपीठों का मानकीकरण हुआ नहीं है। और जिस तरह की हिंदू/सनातन धर्म की प्रवृत्ति है – आगे होने की सम्भावना भी नहीं है। आखिर यह अब्राहमिक धर्मों की तरह कोई धर्म गुरु या धर्म ग्रंथ द्वारा हाँके जाने वाला रिलीजन तो है नहीं। यहां श्रद्धा और आस्था तरल तरीके से बहती है।
प्रेमसागर की टांगों में मोच को ले कर परेशन थे। रात में वे कोई मैडीकल की दुकान से आयोडेक्स लेने और पैरों पर मल कर उन्हें बांध कर सोने की बात कह रहे थे। मैंने उन्हें सलाह दी कि एक दिन वे इसी लॉज में आराम कर अपने पैर सीधे कर लें। आगे दो सौ किलोमीटर की पदयात्रा के लिये पांवों को दुरुस्त करना जरूरी है। प्रेमसागर को सलाह पसंद आयी। शायद वे यही चाह भी रहे थे, बस कोई और कह दे, उसके इंतजार में थे।
उन्हें सईंथिया की इस लॉज को छोड़ कर आगे कलकत्ता की ओर बढ़ना चाहिये – रास्ते में पड़ने वाले दो-तीन शक्तिपीठों का दर्शन करते हुये। यहां रहते हुये उन्हें बहुत सहूलियत मिली। मौचक लॉज के लड्डू शाह जी का एक चित्र उन्होने भेजा। शाह जी ने उनकी बहुत सहायता की। उनकी सहायता से ही बीरभूम-बर्दवान के पांच-छ शक्तिपीठों के दर्शन वे बड़ी सहजता से कर पाये।

कृतज्ञ हैं प्रेमसागर लड्डू शाह जी के। उनसे मिलते समय लड्डू शाह जी बोले – “फिर कभी आना हो तो सेवा का मौका दीजियेगा। बीच बीच में कभी कभी फोन करते रहियेगा, याद आने पर। मैं भी करता रहूंगा।”
शक्तिपीठ यात्रा के सहयात्री-सहयोगी हैं लड्डू शाह जी!
चौबीस मार्च को सईंथिया के इस लॉज में दिन भर आराम कर पच्चीस मार्च को रवाना होंगे।
हर हर महादेव। ॐ मात्रे नम:!
प्रेमसागर की शक्तिपीठ पदयात्रा प्रकाशित पोस्टों की सूची और लिंक के लिये पेज – शक्तिपीठ पदयात्रा देखें। ***** प्रेमसागर के लिये यात्रा सहयोग करने हेतु उनका यूपीआई एड्रेस – prem12shiv@sbi |
दिन – 83 कुल किलोमीटर – 2760 मैहर। प्रयागराज। विंध्याचल। वाराणसी। देवघर। नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ। दक्षिणेश्वर-कोलकाता। विभाषा (तामलुक)। सुल्तानगंज। नवगछिया। अमरदीप जी के घर। पूर्णिया। अलीगंज। भगबती। फुलबारी। जलपाईगुड़ी। कोकराझार। जोगीघोपा। गुवाहाटी। भगबती। दूसरा चरण – सहारनपुर से यमुना नगर। बापा। कुरुक्षेत्र। जालंधर। होशियारपुर। चिंतपूर्णी। ज्वाला जी। बज्रेश्वरी देवी, कांगड़ा। तीसरा चरण – वृन्दावन। डीग। बृजनगर। सरिस्का के किनारे। |
