21 मार्च 23
कल प्रेमसागर ने बीरभूम जिले में नंदिकेश्वरी देवी के दर्शन किये थे। उनका नौवां शक्तिपीठ दर्शन। अब वे आगे के शक्तिपीठों की ओर चल रहे हैं।
चैत्र नवरात्रि दो दिन बाद प्रारम्भ होने जा रही है। बंगाल में लोगों के वेष बदलने लगे हैं। लोग लाल धोती और लाल कुरते में नजर आने लगे हैं। प्रेमसागर ने अपना एक जोड़ी लाल कुरता धोती पानी में भिगो कर साफ करने छोड़ दिया है। यात्रा के दौरान वे साबुन का प्रयोग नहीं करते, सो कपड़े साफ करने के लिये मात्र पानी का ही प्रयोग होता है। उनके पास एक दूसरी जोड़ी लाल टी-शर्ट और धोती है। वही पहन कर आज पदयात्रा को निकले।
रुके वे लड्डू शाह के मौचक रेजीडेंशियल लॉज में हैं। यह सैंथिया रेलवे स्टेशन, बस अड्डे और नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ के पास है। वहां से सवेरे पौने छ बजे निकल कर; मयूराक्षी के बगल से दो किलोमीटर चलते हुये अट्टहास के फुल्लारा देवी शक्तिपीठ के लिये दक्षिण की ओर मुड़े। बारिश हुयी है। मौसम में धुंध है। दृश्यता कम है। चित्र साफ नहीं आ रहे।
बारिश हुयी है। मौसम में धुंध है। Slide Show
ताल और कुंये ज्यादा दीख रहे हैं। हर सम्पन्न ग्रामीण के पास एक ताल है। ताल का रखरखाव अच्छा है। ताल सिंचाई और मत्स्य पालन – दोनो के लिये है। जगह जगह धान की बुआई की गतिविधियां चल रही हैं।
चलते चलते प्रेमसागर बताते हैं – “भईया बंगाल भोजन के लिये बहुत सस्ता है। तीन रुपये की चाय है। वही चाय हमारे इलाके में पांच-दस रुपये की है। और क्वालिटी में यह चाय बीस ही होगी, उन्नीस नहीं। रसगुल्ला पांच रुपये में है। जिस साइज का रसगुल्ला हमारे यहां पंद्रह से पच्चीस रुपये का होता है, वह यहां दस रुपये का है। मन होता है फ्रिज की सुविधा हो तो ढेर सारा खरीद कर यहां से ले जाया जाये। मैंने दूध का भाव पता नहीं किया; पर सस्ता ही होगा।”
“आज निकलने के दस पंद्रह किलोमीटर पर अजीब घटना हुई। एक पुलिया पर मैं सुस्ताने बैठा था तो मेरा वेश देख कर दो तीन खेत मजदूर मेरे पास आये। मेरे बारे में पूछने लगे। बताने पर कि मैं लम्बी लम्बी पदयात्रायें कर रहा हूं, उनका भाव बदला। वे कहने लगे कि वे मुसलमान हैं, पर उनके पूर्वज तो हिंदू ही थे। ज्यादा टाइम नहीं हुआ। उनके बाबा 18-20 साल के थे तब धर्म बदला। उनके घर में रामायन-गीता है पर उसके बारे में बोल नहीं पाते। उस सब के बारे में बोलो भी तो धमकी मिलती है। मैं उनका फोटो लेने लगा तो उन्होने मना किया कि बाबा वह मत करिये और हमारे बारे में भूल कर भी कहियेगा नहीं।”

“भईया वे सरल लोग थे। मुझे बताया कि रास्ते की बजाय इस खेत खेत निकलेंगे तो तीन किलोमीटर चलना बच जायेगा। अगर खेत के बीच चलने में अड़चन लगती हो तो कुछ दूर वे साथ चल सकते हैं। उनके मुसलमान होने से मैं असहज था पर उन्होने बहुत अच्छे से बात किया और कोऑपरेट किया।”
इस घटना से मुझे गाजीपुर जिले की प्रेमसागर की कही बात याद आयी। उत्तरप्रदेश के उस जिले से गुजरते हुये प्रेमसागर ने मुझे बताया था कि जब भी वे किसी चाय की दुकान पर बैठते थे तो वहां मुसलमान और समाजवादी पार्टी वाले उनका वेश देख कर मुख्तार अंसारी के खिलाफ की गयी कार्रवाई को ले कर बहुत आक्रोश जताते मिलते थे। वे कई बार प्रेमसागर को उकसा कर प्रतिक्रिया करने को बाध्य भी करते थे। “पर भईया हम तो चुपचाप चाय पी कर पैसा दे कर वहां से चल देते थे। उनसे उलझने की कभी कोशिश नहीं की। हमें तो अपनी यात्रा निर्विघ्न पूरी करनी है। अपने आचरण को मुझे बहुत संयत रखना होता है भईया। कोई भी गलत बात बोलना परेशानी में डाल सकता है। कई बार तो एक शब्द हमारी भाषा में सही होता है पर दूसरे लोग उसका उलटा ही अर्थ लेते हैं।”
फुल्लारा देवी के दृश्य – स्लाइड शो।
दोपहर बारह बजे प्रेमसागर ने पच्चीस किलोमीटर चल कर फुल्लारा मां के दर्शन किये। “भईया छोटी जगह है। साफ सुथरा है। शांति है। बहुत अच्छा लगा वहां। यह जान कर कि मैं पदयात्री हूं, यहां और आगे कनकलिताला में भी पुजारी महराजों ने मेरा तिलक किया और आशीर्वाद के रूप में पीठ पर हाथ रखा। कहा कि सनातन धर्म के लिये यह करते रहो।”
अट्टहास (फुल्लारा) में सती के नींचे का ओठ गिरा था। फुल्लारा का अर्थ है पुष्प की तरह खिलना। यहां विश्वेश भैरव हैं। देवी यहां सभी कामनायें पूरा करती हैं – ऐसा पीठ निर्णय तंत्र में है। पता नहीं प्रेमसागर ने क्या कामना की। मैंने पूछा नहीं उनसे। अगली बार पूछूंगा कि शक्तिपीठों में सिर नवा कर ध्यान करते समय उनके मन में क्या कामना/आशा रहती है।
छोटी शांत जगह है अट्टहास और जंगल का इलाका था। यहां आने पर मन स्वत: अंतर्मुखी हो जाता है। बाहरी शोर खत्म हो जाता है। तभी सुनाई देता होगा माई का अट्टहास और तभी उनका खिलना महसूस होता होगा। मैं गूगल मैप पर लोगों की टिप्पणियाँ पढ़ता हूं, और उनमें कुछ ऐसे ही भाव हैं।
फुल्लारा माता के दर्शन के बाद प्रेमसागर ने पंद्रह बीस मिनट वहां विश्राम किया। मुझे फोन किया। उनके स्वर में उपलब्धि का भाव था। यहां दर्शन पर दस शक्तिपीठ वे सम्पन्न कर चुके। आगे चल कर शाम के पहले वे कंकालिताला माता के भी दर्शन कर लिये। इग्यारहवें शक्तिपीठ के दर्शन हो गये।
कंकालिताला माता के दृश्य। स्लाइड शो।
कंकालिताला में माता का वपु काली का है। वे मानस और मसान – दोनो में निवास करती हैं। यह स्थान बोलपुर में है। शांतिनिकेतन से आठ दस किमी दूर। यहां सती की कमर की अस्थियां गिरी थीं। अस्थियां इतनी जोर से गिरी थीं कि वहां गड्ढा बन गया। जो सरोवर (कुण्ड) के रूप में विद्यमान है। यह कुण्ड ही वास्तव में शक्तिपीठ है। पर इसके पास ही पूजा के लिये पार्वती जी का मंदिर बना है।
स्थान को “कंकाली” कहा जाता है। कंकाल अर्थात शरीर का अस्थि-ढांचा। भक्तों को विश्वास है कि सती की अस्थियां इस कुण्ड में अभी भी विद्यमान हैंं!
कंकालीताला को अन्य मंदिरों की तरह मुगल काल में नष्ट किया गया था। दिल्ली की मुगलिया सरकार के सेनापति काला पहाड़ (जो धर्म परिवर्तन के पहले राजीबलोचन राय था) ने जगन्नाथ पुरी, कामाख्या और कंकालीताला को क्षतिग्रस्त किया था।
कंकालिताला दर्शन के बाद वे रेलवे स्टेशन पर पंहुचे तो ट्रेन पंद्रह मिनट में आने ही वाली थी। जल्दी से टिकट लिया। तीस रुपये का टिकट। उसके बाद एक घण्टे से पहले ही वे सैंथिया जंक्शन के पास मौचक लॉज में आ चुके थे। तेरह चौदह घण्टे की यात्रा, जिसमें वे पैंतालीस किलोमीटर पैदल चले; करने से वे दो शक्तिपीठों के दर्शन सम्पन्न कर पाये। एक दिन में इतनी प्रगति, इतने व्यवस्थित तरीके से शायद ही हो।
दोनो शक्तिपीठों के इतिहास की जानकारी बढ़ा कर बहुत कुछ लिखा जा सकता है। पर उतना शायद ब्लॉग में सम्भव न हो सकेगा। कभी पुस्तक लिखने का नम्बर लगे तो पुनर्लेखन की मेहनत होगी!
हर हर महादेव! ॐ मात्रे नम:!
प्रेमसागर की शक्तिपीठ पदयात्रा प्रकाशित पोस्टों की सूची और लिंक के लिये पेज – शक्तिपीठ पदयात्रा देखें। ***** प्रेमसागर के लिये यात्रा सहयोग करने हेतु उनका यूपीआई एड्रेस – prem12shiv@sbi |
दिन – 83 कुल किलोमीटर – 2760 मैहर। प्रयागराज। विंध्याचल। वाराणसी। देवघर। नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ। दक्षिणेश्वर-कोलकाता। विभाषा (तामलुक)। सुल्तानगंज। नवगछिया। अमरदीप जी के घर। पूर्णिया। अलीगंज। भगबती। फुलबारी। जलपाईगुड़ी। कोकराझार। जोगीघोपा। गुवाहाटी। भगबती। दूसरा चरण – सहारनपुर से यमुना नगर। बापा। कुरुक्षेत्र। जालंधर। होशियारपुर। चिंतपूर्णी। ज्वाला जी। बज्रेश्वरी देवी, कांगड़ा। तीसरा चरण – वृन्दावन। डीग। बृजनगर। सरिस्का के किनारे। |
