26 मार्च 2023
सवेरे उजानी के शक्तिपीठ से आगे रवाना होने में देर हुई। मंदिर का मुख्य दरवाजा बंद था। पुजारी जी सो रहे थे। उन्हें उठाया और तब दरवाजा खुला। सवेरे पांच बजे प्रेमसागर निकल लेते पर एक घण्टा देरी से निकल सके। “भईया, यह हमें समझ नहीं आया। शक्तिपीठ के पुजारी हो कर भी सवेरे ब्रह्म मुहूर्त में नहीं उठते। सवेरे भोर का समय ही तो पूजा-आराधना का होता है।” – रास्ते में चाय के लिये रुके प्रेमसागर ने मुझे सवेरे चलने और तब तक की उनकी प्रगति के बारे में बताया।
अगला शक्तिपीठ – श्री योगोद्या शक्तिपीठ उजानी से ज्यादा दूर नहीं है। बीस किलोमीटर से कम ही होगा। दोपहर बारह बजे तक प्रेमसागर वहां थे। जगह अच्छी लगी उन्हें। योगोद्या मंदिर ताल के भीतर है। इसके अलावा वहां माता का दूसरा स्थान भी है। गांव में बीचोबीच माता की बाड़ी (घर) है। माता की बाड़ी पुराना मंदिर है। कहा जाता है कि यह 11वीं सदी का है। पर इस मंदिर में देवी का विग्रह नहीं है। इस मंदिर को काला पहाड़ (इस्लाम स्वीकार करने से पहले राजीबलोचन राय) ने नष्ट किया था। सन 1760 में कीर्तिचंद्र के जमाने में इसे पुन: बनाया गया।
योगोद्या मंदिर, क्षीरसागर।
नया मंदिर सफेद संगमरमर का है और इसे सन 2005 में क्षीरसिद्धि जलाशय में बनाया गया। एक और प्रतिमा क्षीरसिद्धि जलाशय की सफाई में मिली और उसे भी लाल पत्थर का मंदिर बना कर सन 2011 में स्थापित किया गया।
क्षीरसिद्धि जलाशय बड़ा – करीब 13 एकड़ का है। इसमें मछलियांं बड़ी बड़ी हैं। मछलियों का शिकार नहीं किया जाता। श्रद्धालु उन्हें दाना भी देते हैं। प्रेमसागर ने उनकी गतिविधि दिखाने के लिये मुझे एक वीडियो बना कर भी भेजा।



योगद्या शक्तिपीठ – गांव के दृश्य
योगोद्या शक्तिपीठ से रवाना हो कर 10-15 किलोमीटर चले। उन्हें रात्रि गुजारने के लिये कोई स्थान नहीं मिला। दो दिन से वे इस उहापोह में थे कि क्या नवद्वीप/मायापुर जा कर चैतन्य महाप्रभु के जन्मस्थान का दर्शन करें या अपनी शक्तिपीठ यात्रा पर चलते रहें। मैंने उन्हें नक्शे में देख कर बता दिया था कि मायापुर जाने में कम से कम पैंतीस किलोमीटर अधिक की यात्रा करनी होगी। आज शाम के समय रुकने के लिये उचित स्थान न मिलने के कारण उन्होने बस पकड़ कर नवद्वीप जाने का निर्णय किया।
“भईया, यहां मंदिर बहुत हैं, पर उनमें रुका नहीं जा सकता। वे रात में बंद हो जाते हैं। बाहरी व्यक्ति को किसी लॉज या होटल में ही रुकना होता है।” – प्रेमसागर ने अन्य प्रांतों और बंगाल के मंदिरों की व्यवस्था का अंतर बताया।
नवद्वीप/मायापुर उनकी शक्तिपीठ यात्रा से इतर यात्रा है। इसलिये उन्होने बस का प्रयोग किया। शाम साढ़े छ बजे वे नवद्वीप में थे। एक लॉज में जगह मिल गयी थी। कल वे हुगली नदी पार कर उसपार मायापुर जायेंगे। अगर फेरी सर्विस मिल गयी थो मायापुर गंगा/हुगली के दूसरे तट पर है। वर्ना सड़क मार्ग से तो दस किलोमीटर की दूरी है।
लॉज के बारे में प्रेमसागर बहुत उत्साहित नहीं लगे बताने में। “भईया, रात भर ही गुजारनी है। जगह साफ सुथरी है पर फर्नीचर और सुविधायें तो लगता है बहुत पुरानी हैं।”
शक्ति और शिव को देखते निहारते अचानक कल वे राधा-कृष्ण के अवतार माने जाने वाले गौरांग चैतन्य महाप्रभु से सम्बंधित स्थलों को देखेंगे। वहां इस्कॉन वालों ने भव्य मंदिर बनाया है और अन्य व्यवस्था भी उनकी ओर से विश्व स्तर की है। शक्ति पीठ यात्रा से इतर एक दिन इस प्रकार का भी सही। आखिर इतनी पास आ कर वहां न जाने से भविष्य में कभी उस जगह को देखने का योग बनेगा या नहीं, कहा नहीं जा सकता। जब मन में इच्छा है और योग बैठ रहा है तो शैव से वैष्णव भाव में रूपांतरित होने में कोई हर्जा नहीं।
हर हर महादेव। ॐ मात्रे नम:। राधाकृष्ण की जय हो।
प्रेमसागर की शक्तिपीठ पदयात्रा प्रकाशित पोस्टों की सूची और लिंक के लिये पेज – शक्तिपीठ पदयात्रा देखें। ***** प्रेमसागर के लिये यात्रा सहयोग करने हेतु उनका यूपीआई एड्रेस – prem12shiv@sbi |
दिन – 83 कुल किलोमीटर – 2760 मैहर। प्रयागराज। विंध्याचल। वाराणसी। देवघर। नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ। दक्षिणेश्वर-कोलकाता। विभाषा (तामलुक)। सुल्तानगंज। नवगछिया। अमरदीप जी के घर। पूर्णिया। अलीगंज। भगबती। फुलबारी। जलपाईगुड़ी। कोकराझार। जोगीघोपा। गुवाहाटी। भगबती। दूसरा चरण – सहारनपुर से यमुना नगर। बापा। कुरुक्षेत्र। जालंधर। होशियारपुर। चिंतपूर्णी। ज्वाला जी। बज्रेश्वरी देवी, कांगड़ा। तीसरा चरण – वृन्दावन। डीग। बृजनगर। सरिस्का के किनारे। |
