का हेरत हयअ?

“कछु हेरान बा का? का हेरत हयअ? (कुछ खो गया है क्या? क्या ढूंढ रहे हो?)”

द्वारिकापुर के गंगा तट पर मैं इधर उधर घूमता नाव, झाड़ी, पौधे, नदी, पीपल के चित्र ले रहा था। गांव से गंगा स्नान के लिये आती उस महिला ने मुझे देखा होगा। घाट पर जो लोग थे, उनसे अलग लग रहा होऊंगा। उसे लगा होगा कि मेरा कुछ खो गया है और मैं उसे इधर उधर तलाश रहा हूं!

सही कह रही थी वह। कुछ खो तो गया है। कुछ तलाश तो हो रही है। पर क्या खो गया है और क्या तलाश है, वह मेरे लिये भी सवाल हैं! उम्र खो गयी है? सौंदर्यबोध खो गया है? जो दीख रहा है, उसे अभिव्यक्त करने के शब्द गड्डमड्ड हो गये हैं? कुछ तो हो गया है। मैं बहुत अर्से बाद गंगा तट पर आया हूं।

द्वारिकापुर में गंगा किनारे के चित्र।

मैंने उस महिला को कहा – नहीं, कुछ खोया नहीं है। ऐसे ही देख रहा हूं।

काफी कुछ बदला है वहां। बबूल के पेड़ काट दिये हैं किसी ने। उनके झुरमुट से गंगा दीखती नहीं थीं, अब दूर से ही उनकी जलराशि दीखती है। नये पौधे लगाये हैं किसी ने – बबूल नहीं, शायद पीपल। आंधी आयी होगी, पीपल के बड़े वृक्ष पर एक सरपत या कुशा का सूखा बड़ा पौधा ऊपर की डाल पर अटका है। आंधी में उड़ कर गया होगा।

पीपल में अभी नये पत्ते पूरी तरह नहीं आये हैं। उदास उदास सा लगता है पीपल। मौसम की मार उसपर भी पड़ी है।

एक नाव पिछले तीन साल से तट पर पड़ी थी, अब उसे कोने पर सरका दिया गया है। शायद अपनी काम की जिंदगी गुजार चुकी है वह। अब उसका कबाड़ भर बिकना हो। घाट पर नावें नहीं हैं। बालू का (अवैध) उत्खनन और लदान शायद बंद है। लोग भी कम हैं। घाट पर भागवत कथा कहने वाले चौबे जी नहीं दीख रहे। आजकल शायद न आते हों। कुछ अन्य रेगुलरहे स्नानार्थी पहचान में आ रहे हैं। एक दो तो रास्ते में भी मिले स्नान कर जाते हुये।

हां, एक विचित्र बात रही। अमूमन घाट के आसपास करार और नाले की जमीन पर आधा-एक दर्जन मोर दीखा करते थे। आज एक भी नहीं दिखा। कहां चले गये वे?

रास्ते में आते नीलगाय तो दिख गये। बड़े कद्दावर नहीं, छोटे शायद बच्चे या किशोर थे। उनके चित्र भी पास से ले पाया मैं। इतनी पास से बहुत कम बार लिये होंगे उनके चित्र।

किशोर नीलगाय।

मुझे लगता है सप्ताह में दो या तीन दिन तो वहां आना चाहिये। थोड़ा जल्दी, जब सूरज की सुनहरी किरणें हों और गोल्डन ऑवर का लाभ लेते हुये कुछ बेहतर चित्र लिये जा सकें।

महिला का सवाल, जिसका उत्तर नकारात्मक में भले दिया हो मैंने, पर कुछ खो जरूर गया है। उसे जल्दी ही पा लेना है।


एक विघ्नेश्वर जी ने मेरी फेसबुक पोस्ट पर टिप्पणी की। पोस्ट मौसम की अनिश्चितता, आंधी-पानी आदि पर थी। सज्जन ने कहा – घर में रह बुड्ढ़े, ऐसे मौसम में निकलेगा तो जल्दी मर जायेगा।

उनकी टिप्पणी का प्रभाव यह हुआ कि उनको ब्लॉक तो किया पर साइकिल ले कर निकलना प्रारम्भ कर दिया। दस किलोमीटर से ज्यादा ही चल रही है साइकिल।

सेहत पर काला टीका लगा दिया है उन सज्जन ने। सौ साल जिया जायेगा बंधुवर। ज्यादा ही!

सेल्फी चित्र गंगा किनारे का है। साइकिल सात किलोमीटर चल चुकी है। अभी इतनी ही और चलेगी दिन भर में। सोशल मीडिया पर लोग बहुत शुभेच्छु हैं।


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Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

6 thoughts on “का हेरत हयअ?

    1. फेक आईडी वाले हैं.. रक्त बीज. एक ब्लॉक करने पर दूसरी बनाने वाले.

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  1. block bekar kiya… unko dekhne rahte dena tha… aapki sehat aur aapki post… dono ko.. aur hamare jaise aapke shubhakankshyion ko bhi…

    Liked by 1 person

    1. धन्यवाद, दयानिधि जी। वे सज्जन तो आते ही रहेंगे। अपनी आईडी बदल बदल कर। वे तभी आते हैं, जब कुछ जलन के लिये होता है। मरे कुत्ते को कौन ठोकर मारता है! 🙂

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