27 मार्च 2023
सवेरे आठ बजे प्रेमसागर का फोन था। वे गंगा किनारे के स्थान समाजबाड़ी में थे। हुगली नदी पार कर उन्हें उसपार मायापुर के लिये जाना था। रात वे इसी स्थान के आसपास रहे होंगे। अपना सामान अपनी पीठ पर लिये प्रेमसागर रात्रि विश्राम वाले लॉज से निकल चुके थे|
समाजबाडी
प्रेमसागर ने मुझे बताया कि समाजबाडी वह जगह है जहां केतुग्राम से रात्रि में पत्नी, मां और मित्रों को सोता छोड़ कर, पत्नी के आंचल की गांठ खोल अपने को मुक्त कर निकल लिये थे निमाई पण्डित। उन्होने फोन पर बात करने के साथ लगभग दो दर्जन चित्र ह्वात्सएप्प पर भेजे। गलियों वाला कस्बाई ग्राम है समाजबाड़ी। चित्र बड़े सुंदर आये हैं सवेरे की सुनहरी रोशनी में। फोन करते करते वे गली में चल रहे थे। एक गुजरते व्यक्ति से रास्ता भी पूछ रहे थे – दादा, गंगा उसपार जाने के लिये नाव लेने का घाट कहां है?
घाट पर पता चलता है कि अलग अलग तरह की नावें चलती हैं पार जाने के लिये। उनके अलग अलग घाट हैं। नावों का किराया दो, तीन, पांच, दस रुपया है। एक जगह लाइन में लग कर उन्होने पांच रुपये वाला टिकट खरीदा। डीजल इंजन से चलने वाली बड़ी नाव आती दिखी। उसी के इसपार से फेरे में उसपार जाना था प्रेमसागर को। नाव बड़ी थी और भीड़ भी काफी। “भईया, गंगा का पाट बनारस-प्रयाग जितना चौड़ा नहीं है। पर पानी काफी है नदी में।”



फेरी से हुगली पार जाना
वहां, बंगाल की खाड़ी में जाने के लिये गंगा कई कई डिस्ट्रीब्यूटरी नदियों में बंट जाती हैं। हुगली उनमें से एक डिस्ट्रीब्यूटरी है। वही कारण होगा कि नदी का पाट उतना चौड़ा नहीं है।
उसके बाद पौने दस बजे प्रेमसागर का अगला फोन आया। वे हुगली पार कर चुके हैं। मायापुर में एक लॉज का कमरा तय कर चुके हैं। “भईया काफी मेहनत करनी पड़ी कमरा लेने के लिये। दो हजार मांग रहे थे, मुझे देख कर चार सौ में एक सिंगल सीट वाला कमरा दिया। लॉज वाले अकेले आदमी को कमरा देने में आनाकानी कर रहे थे। मुझे परिचय देने के लिये अपने पिताजी से गोरखपुर फोन कर बात करानी पड़ी। संयोग से पिताजी का फोन लग गया; वर्ना अपना गार्जियन बताने के लिये मुझे आपको फोन करना होता।”
लॉज वालों ने उनके पिताजी से बात कर सत्यापित की प्रेमसागर की आईडेण्टिटी। उनके पिताजी से पूछा कि उनको कोई आपत्ति तो नहीं है प्रेमसागर को अकेले कमरे में रहने देने के लिये। यह कहने पर कि “ये मेरा लड़का है, तीर्थ यात्रा पर निकला है। कोई गलत काम नहीं कर रहा। उन्हें कोई आपत्ति नहीं है।” तब जा कर लॉज वालों ने कमरा दिया।
मायापुर के चित्र
कमरा मिल गया तो मैंने प्रेमसागर से पूछा कि लॉज में भोजन का भी इंतजाम है? “नहीं भईया। पर यहां बहुत जगहें हैं जहां फ्री खाना मिलता है – खिचड़ी। वह तो थोड़ा प्रसाद के लिये खाऊंगा। बाकी, भोजन तो किसी होटल में कर लूंगा। उसके साथ दिन में घूम घाम कर यह जगह देखनी है। बहुत से स्थान हैं देखने के लिये। बढ़िया जगह है यह।”
दिन भर प्रेमसागर घूमे। उस दौरान उनसे बातचीत नहीं हुई। शाम को ढेरों चित्र उन्होने भेजे और फोन किया।
“विचित्र बात हुई भईया। मैं तो गोपीनाथ मंदिर जा रहा था और एक जगह चाय पीने के लिये रुका था कि एक सज्जन ने अपनी कार रोकी। पता नहीं क्यों रोकी। वे खुद तो चाय पीते नहीं थे। मुझसे पूछा कि क्या गोपीनाथ मंदिर जा रहे हैं? मेरे हां कहने पर मुझे कार में बैठने को कहे। पहले तो मुझे अजनबी का कार में बिठाना अजीब लगा, पर फिर सोचा कि महादेव ही कुछ कर रहे हैं। वे सज्जन मुझे बीस-बाइस किलोमीटर कार में ले कर गये और वापस लाये। सवेरे दस से शाम चार बजे तक मैं उन्ही के साथ रहा। उनका नाम राहुल बिस्वास है। कलकत्ता में रेलवे में नौकरी करते हैं। महीना में एक बार मायापुर आते हैं दर्शन करने के लिये। उनके साथ ही बहुत बात हुई और चैतन्य महाप्रभु के बारे में काफी जानकारी भी मिली।”



राहुल बिस्वास और उनकी कारवैष्णव तिलक के साथ प्रेमसागर
जानकारी, जो उन्हें मिली, प्रेमसागर मुझे बताने लगे। चैतन्य महाप्रभु के जीवन के बारे में वैसे भी बहुत कुछ जानकारी इण्टरनेट पर उपलब्ध है। उनपर विकिपेडिया पेज भी ठीकठाक जानकारी देता है। एक दो छोटी-बड़ी फिल्में/वीडियो भी गौरांग महाप्रभु पर मैं देख चुका था।
चैतन्य महाप्रभु ((विश्वम्भर मिश्र) पर जो कुछ मैंने जाना, उसपर तो एक ब्लॉग पोस्ट अलग से लिखा जा सकता है, फुर्सत से। फाल्गुनी पूर्णिमा (18 फरवरी 1486) को उनका जन्म हुआ था। उस दिन चंद्रग्रहण था और बहुत से लोग शाम के समय हुगली नदी में स्नान कर रहे थे। शुभ था उनका जन्म। किसी ज्योतिषी ने भविष्यवाणी की थी कि बालक आगे चल कर एक बड़ा संत बनेगा।
उनका परिवार ढाकदक्षिण गांव, सिलहट का रहने वाला था और वहीं से नवद्वीप आ कर बस गया था। उनके पुश्तैनी घर का अवशेष बांगलादेश में अब भी है। उनके पिता जगन्नाथ मिश्र थे और माता शची देवी। शची देवी के पिता नीलाम्बर चक्रवर्ती थे – नवद्वीप के प्रकाण्ड पण्डित।
कैसे निमाई पण्डित (विश्वम्भर मिश्र) संस्कृत व्याकरण, तर्क, न्याय के विद्यार्थी होते हुये गया गये और पिता का श्राद्ध करते समय उन्हें गुरू के रूप में ईश्वर पुरी जी मिले। उसके बाद आश्चर्यजनक रूप से उनके व्यक्तित्व मेंं अद्वैत वेदांत की जगह कृष्ण भक्ति प्रज्ज्वलित हुई, कैसे उन्हें वैराज्ञ हुआ और वेदांत की गौड़ीय शाखा का उन्होने प्रतिपादन किया। कैसे वे पुरी पंहुचे, कैसे उन्होने दक्षिण और बनारस वृन्दावन की यात्रायें कीं – वह सब इतिहास है।

भक्ति काल में बंगाल-ओडीशा और बाकी देश का धार्मिक-सांस्कृतिक जागरण करने में उनका वैसा ही योगदान है जैसा कभी सनातन धर्म के पुन: जागरण में आदिशंकराचार्य का था। और आदिशंकराचार्य की तरह वे भी छोटी उम्र – 48 साल में अपनी लीला पूर्ण कर ब्रह्मलीन हो गये। … यह अलग से लिखा जा सकता है। वह समय वैसा रहा होगा जब शुष्क दर्शन या कर्मकाण्ड की बजाय भग्वन्नाम भजन-संकीर्तन ज्यादा सहज मार्ग रहा होगा धर्म के प्रति आस्था जगाने का।
आज भी एक बड़ी आबादी – देश विदेश में – अद्वैत की बजाय हरिनाम संकीर्तन के माध्यम से अपना धार्मिक विकास चाहती है। इस्कॉन जैसी संस्थाओं और भारत के आस्था-संस्कार जैसे चैनलों पर रामायण-भाग्वत कथा की लोकप्रियता से वह सिद्ध भी होता है। प्रेमसागर की मायापुर यात्रा के साथ मुझे नाम जपना अच्छा लग रहा है।


हरि बोल, हरि बोल, हरि हरि बोल! मुकुंद माधव केशव बोल!
यूट्यूब पर सुन रहा हूं अब हरि हरि बोल! प्रेमसागर के भेजे चित्रों में मृदंगम देख कर मन हो रहा है कि बजाना आता होता तो कितना अच्छा होता!
कल प्रेमसागर बस से श्री राजराजेश्वरी बगलामुखी शक्तिपीठ पंहुचेंगे। वह स्थल तंत्र साधकों का है, हुगली नदी के दूसरे तट पर। वहां माता के दर्शन के बाद आगे की अपनी पदयात्रा जारी रखेंगे।
हर हर महादेव। ॐ मात्रे नम:!
प्रेमसागर की शक्तिपीठ पदयात्रा प्रकाशित पोस्टों की सूची और लिंक के लिये पेज – शक्तिपीठ पदयात्रा देखें। ***** प्रेमसागर के लिये यात्रा सहयोग करने हेतु उनका यूपीआई एड्रेस – prem12shiv@sbi |
दिन – 83 कुल किलोमीटर – 2760 मैहर। प्रयागराज। विंध्याचल। वाराणसी। देवघर। नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ। दक्षिणेश्वर-कोलकाता। विभाषा (तामलुक)। सुल्तानगंज। नवगछिया। अमरदीप जी के घर। पूर्णिया। अलीगंज। भगबती। फुलबारी। जलपाईगुड़ी। कोकराझार। जोगीघोपा। गुवाहाटी। भगबती। दूसरा चरण – सहारनपुर से यमुना नगर। बापा। कुरुक्षेत्र। जालंधर। होशियारपुर। चिंतपूर्णी। ज्वाला जी। बज्रेश्वरी देवी, कांगड़ा। तीसरा चरण – वृन्दावन। डीग। बृजनगर। सरिस्का के किनारे। |
