कामाख्या से वापसी और डियाक पर विचार

डिजिटल यात्रा कथा (डियाक) की अपनी अलग प्रकार की थकान है। प्रेमसागर ने 29 अप्रेल को कामाख्या शक्तिपीठ के दर्शन कर लिये। एक दिन आराम कर अगले दिन वे वापस लौटने लगे। बस से कोकराझार, फिर ट्रेन से भगबती। भगबती से अमरदीप पाण्डेय के घर। और वहां से शायद आगे निकल लिये हैं। यह लाइन लिखते समय (2 मई 2023, एक बजे दोपहर) उनकी लोकेशन जमालपुर जंक्शन पर नजर आती है। जमालपुर में भारतीय यान्त्रिक इंजीनियरिंग सेवा का संस्थान है।

डियाक की थकान से बहुत सारे प्रश्न उठते हैं। मैं शक्तिपीठ पदयात्रा पर लिख क्यों रहा हूं? भारत में शाक्त या शक्तिपीठ अवधारणा पर मुझे प्रबल विश्वास है? मैं प्रेमसागार की सहायता करना चाहता हूं? और क्यों? क्या मैं प्रेमसागर के माध्यम से वे यात्रायें अपने घर की सुविधा के साथ करना चाहता हूं जो बढ़ती उम्र के कारण नहीं कर सकूंगा? क्या इसलिये कि ब्लॉग लेखन के लिये मुझे विषय सरलता से मिल जाते हैं प्रेमसागर की यात्रा के माध्यम से?

ईश्वर मेरे लिये मंदिरों और पीठों में नहीं हैं। वह है जरूर पर प्रकृति में हैं। नदी में हैं, यात्रा में हैं, सौंदर्य में हैं, श्रवण, पठन और लेखन में हैं। शक्तिपीठों में मैं उन्हें नहीं तलाशता। पर तीस्ता के सवेरे के दृश्य में वे नजर आते हैं।

प्रेमसागार की सहायता करना भी मेरा ध्येय नहीं है। वे सज्जन तो महादेव के भरोसे चल रहे हैं। और कई जगह आश्चर्यजनक रूप से उन्हें सहायता मिल भी जाती है। पर “सहायता की अपेक्षा के भाव” से वे मुक्त नहीं हैं। यात्रा के शुरुआत से अब तक उनकी सहायता की अपेक्षा और उसपर निर्भरता बढ़ती गयी है। यह तीर्थयात्रा का तप कर रहे व्यक्ति के लिये सही नहीं है। मेरी पत्नीजी कहती हैं – “तुमने प्रेमसागर को पैम्पर (pamper – बढ़ावा देना) किया है”। मेरे ख्याल से वह सही नहीं है। पर दिन में जब तब उनकी यात्रा पर सोचना और उसके लेखन के लिये बैकग्राउण्ड सूचनायें एकत्र करना शायद उन्हें पैम्परिंग लगता हो।

यह जरूर है कि प्रेमसागर मुझे लेखन के विषय प्रदान करते हैं। अन्यथा मुझे रोज अपनी साइकिल यात्रा के दौरान मिले दृश्यों और पात्रों को ही खंगालना पड़ता। या अपनी दैनिकी से विषय चुनने पड़ते। … मामला दिन भर में हजार डेढ़ हजार शब्दों के लेखन का है, वह जो कचरा लेखन न हो।

मेरे ख्याल से यही कारण है। जानने, सोचने और लिखने की तलब के चक्कर में प्रेमसागर के साथ इतना टाइम खोटा किया है! :-)


29 अप्रेल 2023

प्रेमसागर जालुकबारी इलाके में किसी लॉज में थे। उन्होने सवेरे उठ गुवाहाटी के ब्रह्मपुत्र तट पर पंहुच सूर्योदय की तलाश की। बादलों के कारण वह नजारा भी आज भी नहीं दिखा। पर नदी के शराईघाट पुल पार कर दूसरे किनारे गये और वापस आये। पैदल जाना और आना आनंददायक लगा उन्हें। उन्होने बताया कि प्रयाग से गुड्डू मिश्र जी ने फोन कर बताया है कि कामाख्या मंदिर के पण्डाजी उन्हें आठ बजे माँ के दर्शन करा देंगे। उन्हें लाइन से गुजरने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

ब्रह्मपुत्र और शराईघाट पुल

वैसा ही हुआ। अच्छे से कामाख्यापीठ और उनके भैरव – उमानंद – के दर्शन किये प्रेमसागर ने। उसके चित्र भी भेजे। उसके बाद मुझे अपेक्षा थी कि वे कोई ट्रेन पकड़ कर वापस रवाना हो जायेंगे। कामाख्या से जलपाईगुड़ी और फिर वहां से कटिहार या पूर्णिया। पर उन्हें कोई ट्रेन नहीं मिली। कोई बस भी उन्होने नहीं पकड़ी। जो मुझे समझ आया वह यह कि एक दिन और वे गुवाहाटी में आराम करना चाहते थे। लॉज के मालिक ने उन्हें आधा डिसकाउन्ट दे दिया था।

कामाख्या शक्तिपीठ

30 अप्रेल 2023

लॉज वाले सज्जन वीज-एण्ड पर अपने घर, कोकराझार, जा रहे थे। प्रेमसागर को भी साथ ले लिया उन्होने। उनका नाम भी बताया है प्रेमसागर ने – आकाशी। असमिया सज्जन (नौजवान) हैं। उनकी पत्नी और बच्चे कोकराझार रहते हैं।

प्रेमसागर और आकाशी, लॉज के मालिक

दोपहर/शाम के समय ट्रेन पकड़ी कोकराझार से। देखने में ट्रेन जलपाईगुड़ी से आगे चलती जा रही थी। कोई लम्बी दूरी वाली एक्स्प्रेस ट्रेन रही होगी।

01 मई 2023

सवेरे प्रेमसागर की लोकेशन भगबती में थी। रात एक बजे उतरे होंगे ट्रेन से। बारिश भी हो रही थी। आज उन्हें जीवन पाल जी के यहां रुक कर चाय की फेक्टरी से चाय लेनी है। कुछ ताजा पत्तियां जीवन पाल जी के बागान से भी चुनवा कर अपने साथ ली हैं।

उन्होने अन्नानास के खेत से भी अपने चित्र भेजे। खेत में लगे अन्नानास के फल को पहली बार छू कर देखा था उन्होने।

चाय के बागान और उनके मालिकों के नाम पर मन में किसी अंग्रेज गोरा साहब या उसकी अंगरेजी स्कर्ट पहने मेम की छवि मन में बनती है। वह अब रईस शायद देसी अमीर में तब्दील हो गये हैं। पर छवि बड़े बड़े बंगलों वाले साहबों की ही है।

जो चित्र प्रेमसागर ने जीवन पाल जी के घर-परिवार के भेजे, उनसे यह मिथक ध्वस्त हो गया। शब्दों की बजाय चित्र ज्यादा बोलते हैं। चित्र ही देखे जायें जीवन पाल, उनके घर और परिवार के। वे सामान्य ग्रामीण की तुलना में सम्पन्न अवश्य होंगे पर हैं मितव्ययी ग्रामीण ही।

प्रेमसागर भगबती में बच्चों के साथ

प्रेमसागर भगबती से कब कैसे निकले और अमरदीप (गुड्डू) पाण्डेय के घर कैसे और कब पंहुचे, उसका मुझे पता नहीं। उनकी लोकेशन मुझे गूगल मैप से पता चलती है; उसी आधार पर मैं कह सकता हूं कि वाया पूर्णिया वे आगे बढ़ रहे हैं। अभी दोपहर ढाई बजे, वे चिडिया उड़ान (क्रो-फ्लाइट) के हिसाब से पटना से 50 किमी पीछे हैं! :-)

हर हर महादेव! ॐ मात्रे नम:।

प्रेमसागर की शक्तिपीठ पदयात्रा
प्रकाशित पोस्टों की सूची और लिंक के लिये पेज – शक्तिपीठ पदयात्रा देखें।
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प्रेमसागर के लिये यात्रा सहयोग करने हेतु उनका यूपीआई एड्रेस – prem12shiv@sbi
दिन – 103
कुल किलोमीटर – 3121
मैहर। प्रयागराज। विंध्याचल। वाराणसी। देवघर। नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ। दक्षिणेश्वर-कोलकाता। विभाषा (तामलुक)। सुल्तानगंज। नवगछिया। अमरदीप जी के घर। पूर्णिया। अलीगंज। भगबती। फुलबारी। जलपाईगुड़ी। कोकराझार। जोगीघोपा। गुवाहाटी। भगबती। दूसरा चरण – सहारनपुर से यमुना नगर। बापा। कुरुक्षेत्र। जालंधर। होशियारपुर। चिंतपूर्णी। ज्वाला जी। बज्रेश्वरी देवी, कांगड़ा। तीसरा चरण – वृन्दावन। डीग। बृजनगर। विराट नगर के आगे। श्री अम्बिका शक्तिपीठ। भामोद। यात्रा विराम। मामटोरीखुर्द। चोमू। फुलेरा। साम्भर किनारे। पुष्कर। प्रयाग। लोहगरा। छिवलहा। राम कोल।
शक्तिपीठ पदयात्रा

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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