वृन्दावन में पदयात्री

28 मई 2023

कल लिखा था –

प्रेमसागर को कांगड़ा से रानीताल तक किसी सज्जन ने अपने वाहन में जगह दे दी है। अब वे रानीताल पंहुच कर किसी बस की प्रतीक्षा कर रहे हैं। या हो सकता है कि कोई दूसरे वाहन में उन्हें लिफ्ट मिल जाये। आसपास खड़े लोग भी उनकी सहायता करना चाहते हैं।

उसके बाद विशेष बातचीत नहीं हुई। एक जगह उन्होने बताया कि वे बस में बैठे हैं। होशियारपुर जायेंगे। वहां ट्रेन मिली तो उससे अन्यथा बस से लुधियाना जाना होगा।

फिर?

“फिर ट्रेन से बनारस आऊंगा या फिर प्रयागराज।”

प्रेमसागर अगले चरण की यात्रा के पहले शायद अपने शुभचिंतकों से बात करना चाहते हों। पर कौन हैं वे लोग? कौन हैं जो उनकी शक्तिपीठ यात्रा के प्राइम मूवर हैं? कौन हैं जो उन्हें आगे की यात्रा की बात कहते हैं? कौन हैं जो शक्तिपीठों की अवधारणा के प्रति उनकी सोच पुष्ट करते हैं? … मुझे नहीं मालुम। पूछने पर प्रेमसागर एक सपने की बात करते हैं जो उन्हें बार बार आता रहा है और जिसे किसी से शेयर करने पर उन्होने कहा कि तुमने ज्योतिर्लिंगों की यात्रा कर ली, पर मातृशक्ति की यात्रा तो की नहीं। वह करो। और उनके कहने पर वे चल दिये।

मुझे लगता है कि प्रेमसागर के लिये शैव या शाक्त सोच एक अवलम्ब भर है। खूंटी, जिसपर अपना सतत चलना टांग रखा है। ये शक्तिपीठ सम्पन्न हो जायेंगे तो कोई न कोई और खूंटी ईजाद हो जायेगी यात्रा के लिये। यात्रा का संकल्प उसपर टंग जायेगा और यात्रा जारी रहेगी। … पर यात्रा का भी एक अर्थशास्त्र होता है। उस पक्ष को हमेशा हमेशा के लिये अनदेखा नहीं किया जा सकता। मैं इस बारे में प्रेमसागर को कहता हूं, पर लगता नहीं कि उसका कोई प्रभाव पड़ता है।

आखिर मैं उनकी यात्रा का प्राइम मूवर नहीं हूं।

अगले दिन यानि आज प्रेमसागर की लोकेशन दिल्ली के आसपास दिखी और उसके बाद दिल्ली के आगे। मैंने उन्हें फोन कर पूछा – कहां जा रहे हैं?

“मथुरा जा रहा हूं भईया। वहां से बनारस या प्रयाग, जहां की भी मिलेगी, ट्रेन पकडूंगा।”

“बनारस या प्रयाग के आसपास का कोई शक्तिपीठ तो बचा नहीं जिसके दर्शन बाकी हों। यहां आने का क्या लाभ? पास में ही वृन्दावन है। वहां दो शक्तिपीठ हैं। उनके दर्शन क्यों नहीं करते? और उसके आगे अलवर-जयपुर के बीच महाभारतकालीन विराटनगर में एक शक्तिपीठ है। उसके आगे पुष्कर/अजमेर में गायत्री शक्तिपीठ है। मानसून तो यहां आने में और भी समय लगेगा। इन शक्तिपीठों पर क्यों नहीं जाते?”

श्री माँ चामुण्डा शक्तिपीठ, वृन्दावन, मथुरा।

किरीट सोलंकी जी ने एक ट्वीट में कहा था कि प्रेमसागर आपके लैण्ड-रोवर हैं। उनके माध्यम से आप यात्रा कर ले रहे हैं। मुझे ऐसा कोई मुगालता नहीं है। प्रेमसागर अपनी धुन से करते हैं। वे पांच सात लोगों से पूछते हैं और जो रुच जाये, वह करते हैं। पर, फिलहाल तो वे मेरे कहे के अनुसार उतर गये वृन्दावन। वहां दो शक्तिपीठों के दर्शन किये। चामुण्डा शक्तिपीठ और कात्यायनी शक्तिपीठ। दोनो तीन किलोमीटर के अंतर पर हैं। सम्भवत: चामुण्डा शक्तिपीठ ही वृन्दावन का शक्तिपीठ है। गीताप्रेस की पुस्तक शक्तिपीठ दर्शन में इसी का जिक्र है –

सम्भवत: चामुण्डा शक्तिपीठ ही वृन्दावन का शक्तिपीठ है। गीताप्रेस की पुस्तक शक्तिपीठ दर्शन में इसी का जिक्र है

प्रेमसागर ने दोनो मंदिरों के दर्शन कर लिये। उसके बाद ढेर सारे चित्र मेरे पास भेज दिये हैं। मुझसे उन्होने विराटनगर के अम्बिका शक्तिपीठ का लोकेशन मांगा, वह मैंने उनके पास भेज दिया है। अब देखें वे क्या करते हैं। यह स्थान गोवर्धन हो कर जाता है। वहां की पदयात्रा पहले ही प्रेमसागर कर चुके हैं। अगर जाना हो, तो गोवर्धन से पदयात्रा प्रारम्भ कर सकते हैं। गोवर्धन से यह अम्बिका शक्तिपीठ 142किमी दूर है।

देखें आगे क्या होता है। वृन्दावन के दोनो शाक्त मंदिरों और आगे की यात्रा के बारे में कल लिखूंगा। फिलहाल, मैं वाइरल ज्वर के बाद उबर तो गया हूं, पर पढ़ने लिखने में वह एकाग्रता नहीं है। एक दो दिन लगेगा सामान्य होने में।

हर हर महादेव। ॐ मात्रे नम:!

प्रेमसागर की शक्तिपीठ पदयात्रा
प्रकाशित पोस्टों की सूची और लिंक के लिये पेज – शक्तिपीठ पदयात्रा देखें।
*****
प्रेमसागर के लिये यात्रा सहयोग करने हेतु उनका यूपीआई एड्रेस – prem12shiv@sbi
दिन – 103
कुल किलोमीटर – 3121
मैहर। प्रयागराज। विंध्याचल। वाराणसी। देवघर। नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ। दक्षिणेश्वर-कोलकाता। विभाषा (तामलुक)। सुल्तानगंज। नवगछिया। अमरदीप जी के घर। पूर्णिया। अलीगंज। भगबती। फुलबारी। जलपाईगुड़ी। कोकराझार। जोगीघोपा। गुवाहाटी। भगबती। दूसरा चरण – सहारनपुर से यमुना नगर। बापा। कुरुक्षेत्र। जालंधर। होशियारपुर। चिंतपूर्णी। ज्वाला जी। बज्रेश्वरी देवी, कांगड़ा। तीसरा चरण – वृन्दावन। डीग। बृजनगर। विराट नगर के आगे। श्री अम्बिका शक्तिपीठ। भामोद। यात्रा विराम। मामटोरीखुर्द। चोमू। फुलेरा। साम्भर किनारे। पुष्कर। प्रयाग। लोहगरा। छिवलहा। राम कोल।
शक्तिपीठ पदयात्रा

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

आपकी टिप्पणी के लिये खांचा:

Discover more from मानसिक हलचल

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading

Design a site like this with WordPress.com
Get started