राजस्थान में – प्याऊ, बबूल और जलेबा

30 मई 2023

डीग में खण्डेलवाल धर्मशाला में रुके थे प्रेमसागर। पहले चौरासी कोस की परिक्रमा के दौरान भी इसी धर्मशाला में ठहर चुके थे। सस्ता भी था वहां रुकना और आत्मीयता भी थी वहां लोगों से। यह गुण प्रेमसागर में प्रचुर है – लोगों से आत्मीयता बना लेना और उस नेटवर्किंग का अपनी पदयात्रा के लिये भरपूर उपयोग कर लेना। यह गुण उनकी रुक रुक कर बोलने, स्थानों और लोगों ने नाम गड्डमड्ड कर देने और भूगोल की अपर्याप्त जानकारी आदि की कमियों को बखूबी कवर-अप कर लेती हैं।

धर्मशाला पर बड़ा अच्छा वाक्य लिखा था – श्री खण्डेलवाल वैश्य समाज आपका हार्दिक स्वागत करता है।

सवेरे देरी से निकलना हुआ। करीब सात बजे। एक घण्टे बाद उन्होने बताया कि करीब चार-पांच किमी चल चुके हैं और एक “ठाकुर साहब” ने उन्हें बुला कर आलू के परांठे के साथ चाय का नाश्ता कराया है। उनका नाम बताया चौधरी महेंद्र सिन्ह। चित्र में लगता है कि महेंद्र सिंह जी का कोई सड़क किनारे रेस्तरां है। पास में एक महिला भी बैठी हैं। शायद महेंद्र सिंह जी की पत्नी होंगी। “भईया, ठाकुर साहब के खिलाने से दिन के दो बजे तक का तो काम हो गया!”

एक “ठाकुर साहब” ने उन्हें बुला कर आलू के परांठे के साथ चाय का नाश्ता कराया है। उनका नाम बताया चौधरी महेंद्र सिन्ह।

डीग/भरतपुर के आसपास करीब 40000 वर्ग किमी का इलाका जाट बाहुल्य है। पूर्वी उत्तरप्रदेश और बिहार के लोग जाट, ठाकुर, राजपूत में अंतर नहीं जानते। बहुधा इन सब को एक समझ कर ठाकुर या क्षत्रिय के कोष्ठक में रखते हैं। ठाकुर या राजपूत मुख्यत: राजे रजवाड़े और सामंती मानसिकता से ओतप्रोत हैं, पर जाटों की सामाजिक संरचना जातिगत प्रजातंत्र पर अवलम्बित है। यहां पांच बुजुर्गों की राय मायने रखती है और उसके खिलाफ बगावत नहीं होती। खाप पंचायत या महापंचायत की अवधारणा बहुत से लोगों को समझ नहीं आती।

आगे गर्मी बढ़ी और पानी की कमी दीखने लगी। “भईया, पानी के लिये तो हर आधा किलोमीटर पर पेड़ की छाया में घड़े रखे मिले हैं। पशुओं को भी पानी पिलाने के लिये गड्ढ़े खोदे गये हैं। कई जगह सड़क किनारे कुयें भी हैं और उनसे मीठा पानी निकालने के लिये रस्सी-बाल्टी भी रखी है। फसल तो इस समय नहीं दीखती पर लोगों ने बताया कि मोटा अनाज – मकई, बाजरा – उगाया जाता है। बबूल के ही पेड़ दीखते हैं ज्यादातर।”

जल प्रबंधन

सवेरे गर्मी थी पर दोपहर होते होते मौसम बदल गया। बारिश होने से रुकना पड़ा, पर आगे चलने में गर्मी के कारण व्यवधान भी खत्म हो गया। दोपहर दो बजे तक अठारह किलोमीटर का रास्ता तय किया था प्रेमसागर ने। मैंने उन्हें फोन कर बताया – “आगे छ किमी पर बृजनगर या नगर है। वहां मंदिर और धर्मशालायें दिखती हैं नक्शे में। आज वहां रुकने की सोचें। अन्यथा आगे अठारह-बीस किमी तक चलने पर ही कोई बड़ी जगह मिलेगी। नगर में जलेबा मिलता है। उसका फोटो भी ले लीजियेगा।”

प्रेमसागर ने नगर में रुकने की सोची। किसी खण्डेलवाल धर्मशाला में रुकने का इंतजाम हुआ। दिन भर का विवरण उन्होने बताया –

एक नौजवान लड़के ने तो मुझे रोक कर कोल्ड ड्रिंक और दो पैकेट बिस्कुट मंगाया मेरे लिये।

“लोग बहुत अच्छे हैं भईया। एक नौजवान लड़के ने तो मुझे रोक कर कोल्ड ड्रिंक और दो पैकेट बिस्कुट मंगाया मेरे लिये। उन्होने मेरे लिये पचीस पचास भक्ति गीत भी लोड कर दिये मेरे ब्ल्यू-टूथ (?) में। एक और जगह तो बड़ी उम्र के दो लोगों ने रोक कर चाय पिलाई। ब्राह्मण के रूप में बड़ी कदर की मेरी। उनका कहना था कि मुझे सिर झुका कर चलते चले जाना उन्हें अलग सा लग रहा था। ज्यादातर इस तरह की वेशभूषा वाले तो भीख मांगते दिखते हैं।”

बड़ी उम्र के दो लोगों ने रोक कर चाय पिलाई। ब्राह्मण के रूप में बड़ी कदर की मेरी।

“सरकार कांग्रेस की है यहां। तो मुझे लगा कि हो सकता है मुझ जैसे के लिये कोई दिक्कत हो। पर वैसा कुछ भी नहीं। लोग – स्त्रियां बच्चे भी देख कर राधे राधे कह कर अभिवादन करते हैं।”

“लोग कुरता पायजामा में हैं। कहीं कहीं धोती पहने भी हैं। सिर पर पगड़ी वाले भी कुछ हैं।”

नगर में जलेबा का चित्र भी लिया प्रेमसागर ने। “काफी बड़े साइज की जलेबी है। एक जलेबी का वजन डेढ़ सौ से तीन सौ ग्राम तक है।”

बृजनगर का जलेबा

“पहले राजस्थान नहीं देखा था। अब यह सब देख कर अच्छा लग रहा है। आगे देखें कैसा होता है।” – प्रेमसागर को रुच भी रहा है राजस्थान पर अनजानी जगह की आशंकायें भी हैं। लोग अच्छे मिल रहे हैं। व्यवहार अच्छा है।

राजस्थान में मौसम और बबूल की रुक्षता है पर स्वागत वह बाहें फैला कर करता है। … पधारो म्हारे देस!

हर हर महादेव! ॐ मात्रे नम:!

प्रेमसागर की शक्तिपीठ पदयात्रा
प्रकाशित पोस्टों की सूची और लिंक के लिये पेज – शक्तिपीठ पदयात्रा देखें।
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प्रेमसागर के लिये यात्रा सहयोग करने हेतु उनका यूपीआई एड्रेस – prem12shiv@sbi
दिन – 103
कुल किलोमीटर – 3121
मैहर। प्रयागराज। विंध्याचल। वाराणसी। देवघर। नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ। दक्षिणेश्वर-कोलकाता। विभाषा (तामलुक)। सुल्तानगंज। नवगछिया। अमरदीप जी के घर। पूर्णिया। अलीगंज। भगबती। फुलबारी। जलपाईगुड़ी। कोकराझार। जोगीघोपा। गुवाहाटी। भगबती। दूसरा चरण – सहारनपुर से यमुना नगर। बापा। कुरुक्षेत्र। जालंधर। होशियारपुर। चिंतपूर्णी। ज्वाला जी। बज्रेश्वरी देवी, कांगड़ा। तीसरा चरण – वृन्दावन। डीग। बृजनगर। विराट नगर के आगे। श्री अम्बिका शक्तिपीठ। भामोद। यात्रा विराम। मामटोरीखुर्द। चोमू। फुलेरा। साम्भर किनारे। पुष्कर। प्रयाग। लोहगरा। छिवलहा। राम कोल।
शक्तिपीठ पदयात्रा

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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