16 अगस्त 2023
प्रेमसागर चित्रकूट, उज्जैन और जूनागढ़ हो आये। इनमें क्रमश: 1, 2, 2 शक्तिपीठ हैं। उज्जैन में हरसिद्धि मंदिर और गढ़कालिका के दर्शन किये। जूनागढ़ में गिरनार पर्वत पर चढ़े। जूनागढ़ से वापस लौटे तो सीधे कलकत्ता। वहां कालीघाट के पास रमाशंकर पाण्डेय जी के यहां तीन दिन रहे। आज सवेरे ओडिसा के शक्तिपीठों के दर्शन के लिये निकलना हुआ।

तामलुक तक वे पहले ही पैदल चल चुके हैं। वहां तक वे बस से यात्रा करने वाले हैं। उसके बाद होगी पैदल यात्रा। तामलुक से जाजपुर में बिरजा शक्तिपीठ का दर्शन करना है। आगे बढ़ कर जगन्नाथ पुरी मंदिर के प्रांगण में ही विमला शक्तिपीठ है। लगभग 460 किमी की यह पैदल यात्रा होगी। इसका एक चौथाई हिस्सा पश्चिम बंगाल में है और तीन चौथाई ओडिसा में। यह सब तटीय इलाका है। प्रेमसागर को सलाह मिली है कि वे सड़क और हाईवे का साथ न छोड़ें। कोई शॉर्टकट न तलाशें। पर जब निकल लेते हैं तो बहुत से लोग मिलते हैं और बहुत प्रकार की सलाह भी मिलती है। वे शॉर्टकट के फेर में बहुधा ज्यादा ही चलते हैं।
मुझे अचम्भा होता है कि भूगोल की मामूली जानकारी भी न रखने वाले प्रेमसागर पूरा भारत घूम ले रहे हैं और एक से दूसरे स्थान के बीच की दूरी, मिलने वाले स्थानों, नदियों, ऊंची नीची जमीन का आकलन आदि करने के बावजूद भी मैं घर से एक कदम नहीं निकलता! वे मुझसे कहते हैं – “भईया, उडीसा में तो नर्मदा परिक्रमा का मार्ग मिलेगा। परिक्रमा के रास्ते में तो लोग बहुत सहायक होते हैं।”

मुझे घोर आश्चर्य होता है। “यहां नर्मदा कहां? नर्मदा तो अमरकण्टक से निकल कर अरब सागर में जाती हैं। यह तो दूसरे छोर का बंगाल की खाड़ी का इलाका है। यहां तो महानदी मिलेंगी। और भी कई नदियां रास्ते में होंगी। पर नर्मदा का तो यहां आना ही नहीं है। बंगाल और ओडिसा की सीमा रेखा है सुवर्णरेखा नदी। उनके दर्शन होंगे।” – मैं उन्हें मोटा परिचय देता हूं।
“हां भईया, सुवर्णरेखा तो मैं जानता हूंं। देखी हुई हैं। बाकी, रास्ते में क्या मिलेगा, कैसे होगा, वह सब तो महादेव जानें।” प्रेमसागर अपनी अल्पज्ञता को महादेव को अर्पण कर देते हैं। सच में वही तो करा रहे हैं यह यात्रा!
प्रेमसागर के लिये यात्रा सहयोग करने हेतु उनका यूपीआई एड्रेस – prem12shiv@sbi
मैं लिखने से ऊब चुका हूं। प्रेमसागर की यात्रा ही नहीं, कुछ भी लिखने से। एकाग्रता नहीं बन रही। आंखें कीबोर्ड देखना नहीं चाहतीं। दो चार लाइन लिखने के बाद मन को खींच कर वापस लाना पड़ता है। पर बंगाल की खाड़ी के तटीय इलाके को देखने का मन है। भले ही अपने चक्षुओं से नहीं, प्रेमसागर के चित्रों और उनके थोड़े बहुत विवरण से हो। इण्टरनेट पर ओडिसा के बारे में पुस्तकें तलाशता हूं। अंतत: विकिपेडिया को खंगालना होगा। क्या पता वही सब करते हुये मन एकाग्र होने लगे।
सवेरे नौ बजे के बाद दक्षिणेश्वर स्थित रमाशंकर जी के डेरा से चले हैं प्रेमसागर। दोपहर बारह बजे उनकी लोकेशन तामलुक में दिखाई देती है। यह लिखने तक भी – दोपहर ढाई बजे वे वहीं तामलुक में ही नजर आते हैं गूगल नक्शे पर। आज अगर वहां से चलना भी हुआ तो दस बारह किमी से ज्यादा चलना नहीं होगा।
उनका डियाक (डिजिटल यात्रा कथा) लेखन शायद नित्य न हो पाये। शायद दो तीन दिन में एक बार। पर जैसा भी होगा; मैंं ओडीसा के स्थानों की यात्रा करूंगा ही। प्राचीन मंदिरों, तटीय शहरों और समुद्र की छटा, ऐतिहासिक इमारतों, सुंदर कलाकारी और काष्ठ कला का प्रांत है ओडिसा! देखता हूं, प्रेमसागर कितना दिखाते हैं!

अपना मोबाइल सुधरवाया है कलकत्ता में प्रेमसागर ने। रमाशंकर जी के सहयोग से उनको और जो गैजेट्स की दरकार थी, वे भी मिल गये हैं।
प्रेमसागर ने वहां से दक्षिणेश्वर के कुछ चित्र भेजे हैं। इस पोस्ट पर वही हैं। पोस्ट का हेडर गिरनार पर्वत का है। उसपर लिखना शायद बाद में कभी हो।
आगे देखें क्या होता है।
ॐ मात्रे नम:। हर हर महादेव!

One thought on “प्रेमसागर – तामलुक से ओडिसा की ओर”