17 अगस्त 2013
कल प्रेमसागर दोपहर में रवाना होने को थे, पर पहले उमस भरी गर्मी थी, उसके बाद तेज बारिश होने लगी। उमस और बारिश का मौसम तो मिलने ही वाला है। श्रावण-भादौं का समय है और उसपर भी समुद्र का तटवर्ती इलाका। अव्वल तो यह यात्रा का समय नहीं है और उसपर भी बंगाल की खाड़ी का बीस पच्चीस किलोमीटर की समुद्र तटीय स्ट्रिप पर पैदल यात्रा। कठिन काम है। लगता नहीं कि प्रेमसागर के पास कोई तैयारी है। उनके पास कोई छाता या रेनकोट नहीं है। इस मौसम में कोई बंगाली बिना छाते के नहीं पांव धरता होगा घर के बाहर।


कल दोपहर तामलुक में हाईवे पर ही होटल मिला – स्वास्ति निवास गेस्ट हाउस। किराया बताया सात सौ रुपया उसपर भी अठ्ठाईस परसेण्ट जीएसटी। प्रेमसागर ने अपना परिचय शुरू किया। ब्लॉग दिखाया और पूरे भारत की तीर्थ यात्रा की बात की। अंत में होटल के मालिक साहब से फोन पर बात किया स्टाफ ने। उन्होने तीन सौ रुपये में रहने दिया। खाने का पचपन रुपया अलग लगा। “खाना तो भईया जैसा था, बस ठीक था। काम चल गया।”
गूगल सर्च और ब्लॉग पर ढेरों पोस्टों का जखीरा! प्रेमसागर के बड़े काम आता है। और उसे लेकर अपनी यात्रा की बैटिंग बड़ी कुशलता से करते हैं। वह कुशलता और यात्रा का जोखिम उठाने का हाइपर भाव – इन्ही के बल पर प्रेमसागर का काम चल रहा है। और जब काम चल जाता है तो उसका श्रेय वे महादेव के हवाले कर आगे बढ़ जाते हैं।

आज सवेरे साढ़े पांच बजे गेस्ट हाउस का गेट खुलने पर प्रेमसागर यात्रा पर निकल लिये। जब बात की तो चाय वाले का चित्र और नारियल के वृक्षों वाली सड़क के बारे में कहने को था उनके पास। “भईया यहां नारियल की जटा बड़ी सफाई से और तेजी से निकालने की मशीने हैं। पूरा इलाका में नारियल का कारोबार है।”


उसके बाद ज्यादा नहीं चल पाये। दिन भर में कुल 26 किलोमीटर की दूरी नापी। हल्दी नदी मिली। गूगल नक्शे में ज्यादा बड़ी नहीं दिखती पर चित्र में तो पाट बहुत चौड़ा है। यह पता नहीं चला कि इसे हल्दी नदी क्यों कहा जाता है? शायद मटमैला-पीला जल हो इसका।
नक्शे में इस इलाके की बहुत नदियां नजर आती हैं। कपालेश्वरी, केलेघाई, कंसाई, रूपनारायण … ये सब एक दूसरे में मिल कर अंतत: हुगली में समाहित हो जाती हैं। और हुगली उसके बाद दस बीस किमी चल कर समुद्र में मिलती है। हुगली यानी गंगा। कुछ यूं लगता है कि मानो गंगा माई के साथ समुद्र में मिलन को आसपास की सभी सखी नदियां उन्हें साथ ले कर जा रही हों।

हुगली के बंगाल की खाड़ी में समाहित होने का इलाका नक्शे में मुझे मोहित करता है। किनारे पर एक टापू है – नयाचार। उसके बाद बड़ा द्वीप सागर-द्वीप। सागर द्वीप का दक्षिणी कोना है गंगासागर। प्रेमसागर ने वह सब नहीं देखा। उन्हें शायद अंदाज भी न हो। नक्शे के साथ वे खुर्दबीन लगा कर विश्लेषण करने की प्रवृत्ति वाले नहीं हैं। उनका औजार उनकी टांगें हैं – चलने के लिये। और वे उन्हें जगन्नाथ पुरी की ओर ले जा रही हैं।

प्रेमसागर की जगह मैं होता तो गंगासागर के इस इलाके में तीन चार दिन लगाता। इतनी पास आ कर इन्हें देखे बिना निकल जाता? नहीं। … और हल्दी नदी जहां हुगली से मिलती है, वहां अंतरराष्ट्रीय बंदरगाह है – हल्दिया। लगे हाथ बंदरगाह देखे बगैर आगे निकलना कत्तई न होता। जाने कितने जहाज हों वहां जेट्टी पर। और किस किस मुल्क के!
गंगा किनारे डोंगियाँ ही देखी हैं मैंने। ज्यादा से ज्यादा बालू ढोने वाली नावें। जहाज तो देखे नहीं। मैं तो हल्दिया और गंगासागर जरूर जाता। प्रेमसागर को तो शक्तिपीठ साधने हैं; मैं बंदरगाह और बीच (समंदर का किनारा) देखता। महादेव और माता तो वहां भी होंगे ही।

लेकिन प्रेमसागर के साथ गंगासागर जाना तो क्या, आगे ज्यादा चलना भी नहीं था आज के दिन। “भईया, दोपहर तीन बजे बड़ी तेज बरसात हुई। हाईवे के ओवरब्रिज के पास तो बुरी तरह भीग गया। एक होटल दिखा। मुझे लगा कि मुझे बुखार हो गया है भीगने से। होटल वाले ने कहा कि किराया बारह सौ रुपया है। मैंने अपना पेटीयम खाता खोल कर दिखा दिया कि मेरे पास तो छ सौ भी नहीं हैं। उन्हें ब्लॉग भी दिखाया। यह भी बताया कि यात्रा विवरण में उनका चित्र भी आयेगा दो तीन दिन में। तब वे राजी हुये साढ़े पांच सौ रुपये में। साथ में भोजन भी दिया। … मैंने पेरासेटामॉल लिया है। अब ठीक है। कल आगे बढ़ूंगा।”
प्रेमसागर की शक्तिपीठ पदयात्रा की पोस्टों के लिंक के लिये पेज देखिये – शक्तिपीठ पदयात्रा
| प्रेम सागर का यूपीआई एड्रेस |
| प्रेमसागर की पदयात्रा हेतु अगर आप कुछ सहयोग करना चाहें तो निम्न यूपीआई पते पर कर सकते हैं – Prem12Shiv@SBI |
जहां प्रेमसागर महाराज होटल में आश्रय पाये वह जगह नक्शे में है चण्डीपुर या मठ-चण्डीपुर (जिला पूर्वा मेदिनीपुर)। गूगल मैप में एक नया सुंदर मंदिर दिखता है मठ-चण्डीपुर के नाम से। मठ में तो रहने की जगह मिलनी चाहिये प्रेमसागर को, पर उनका कहना है कि बंगाल में कोई भी मंदिर चौबीसों घण्टे नहीं खुले रहते। वहां किसी को रुकने की व्यवस्था नहीं होती। इजाजत भी नहीं। रात में ताला लगा कर पुजारी-प्रबंधक घर चले जाते हैं।
प्रेमसागर वैसे लिख कर संदेश कम ही देते हैं। आज ह्वाट्सएप्प पर दिया। वह मैं नीचे प्रस्तुत यहां देता हूं – “आज मूसलाधार बारिश में फंस गए थे। भागते भागते, तब पर भी 2 किलोमीटर दौड़ना पड़ा। बीच में कहीं भी रुकने का जगह नहीं था। पानी में पूरा गीला हो गये जिसके चलते हमको लग रहा है कि बुखार हो गया है। तभी हमें रोड किनारे महाराजा होटल मिला। इसमें आ गये है बहुत कहने सुनने पर 550 रु में तैयार हुए। उन लोगो को अपने paytem का Balance 576 का दिखाये तो मान गये। ऐ सब महादेव जी का कृपा और आपका आशीर्वाद है भैयाजी। थोड़ा आराम मिलेगा 2 3 घंटा में बात करेंगे।”

प्रेमसागर की यात्रा कठिन होती जा रही है। उनके पास सामान भी नहीं है सुविधाओं के लिये और पैसे भी नहीं हैं। लगता है इक्का-दुक्का आत्मीय जनों को छोड़ कर; लोग उन्हें ज्यादा आर्थिक सहयोग दे नहीं रहे। वे इण्टरनेट पर ब्लॉग दिखा कर किसी तरह अपनी यात्रा के लिये कुछ सुविधायें जुगाड़ पा रहे हैं। अभी इस गति से उन्हें बारह पंद्रह दिन लगने हैं बंगाल-ओडिसा में। देखें, महादेव क्या इंतजाम करते हैं। मैंने तो सिर्फ यह तय किया है कि (मेरी अपनी नरम सेहत के बावजूद) अपनी ओर से जितना हो सकेगा, उतना यात्रा विवरण ब्लॉग पर लिख दूंगा। उसे देख-पढ़ उन्हें सहायता मिले तो ठीक, अन्यथा जो महादेव तय करें!
हर हर महादेव। ॐ मात्रे नम:!
[इस पोस्ट में हेडर हल्दी नदी में नाव से मछली पकड़ने के लिये जाल बिछाते दो मछेरों का चित्र है। शायद पुल पर गुजरते हुये प्रेमसागर ने खींचा। मैंने सोचा कि वह चित्र चित्र नहीं एक पेंटिंग होना चाहिये था। सो वैसा ही बना दिया है।]
