वोटदान

विक्रमपुर कलाँ के जूनियर हाई स्कूल में हमें वोट देना था। सात बजे घर से निकले। पांच मिनट में पंहुच गये। तब तक पांच सात लोग लाइन में लग चुके थे। स्कूल के गेट पर पुलीस वाले मुस्तैद थे पर निर्वाचन कर्मचारी शिलिर शिलिर काम करते मिले। पंद्रह बीस मिनट बाद तक भी पहला वोट नहीं पड़ पाया था। पर जब शुरू हुआ तो रफ्तार पकड़ ली।

मुझे और पत्नीजी को लाइन में लगने में ज्यादा दिक्कत नहीं हुई। विपक्षी गठबंधन के वालेण्टियर हमारी पर्ची ले कर दौड़ भाग कर हमारा बूथ पता कर आये। लाइन में खड़ा भी कर दिया। बुआ-जीजी-फूफा-जीजा को प्रणाम नमस्कार भी किया। हमें भाजपा वाला कोई कलाकार नहीं दिखा। उन्ही कलाकारों के बल पर मोदीजी सरकार बनाने चले हैं। निर्वाचन कर्मी अकुशल थे पर पुलीस वाले चुस्त दुरुस्त। एक पुलीस वाले ने आ कर लाइन ठीक से लगवाई। मुझे और मेरी पत्नीजी को तवज्जो दे कर अलग लाइन में और/या लाइन में वरीयता से खड़ा किया। यह भी कहा – सीनियर सिटिजन लोगों का बाकी सब सम्मान करें। एक वृद्ध महिला को भी लाइन में आगे किया। तब तक वोटिंग प्रारम्भ हो गयी।

सात बजे वोटिंग प्रारम्भ हो जानी थी पर बीस मिनट ज्यादा लगे शुरू होने में।

वोटिंग मशीन और वीवीपैट का मैने अवलोकन किया। पींइईं बजने तक बटन छोड़ा नहीं – क्या पता छोड़ने पर वोट निरस्त न हो जाये। कल तक तो मन में खुंदक थी और नोटा को वोट देने का मन था। आज जब वोट देने घुसा तो मन निर्मल हो गया था। वोट उम्मीदवार को ही दिया।

वोट दे कर निकलने में पंद्रह मिनट लगे। बांये हाथ की तर्जनी में नीले रंग की लकीर लगवाये। स्मार्टफोन तो बाहर छोड़ कर वोट देने गये थे पर चित्र खींचने के लिये नोकिया वाला चुटपुटिया फोन जेब में था। उसी से फोटो लेने की सोची।

स्कूल के दरवाजे पर एक पुलीस वाले बैठे थे। हमने उन्ही को सेल्फी प्वाइण्ट बना लिया। गुमटी वाला जग्गी उन्हें चाय पिला रहा था। “फ्री में पिला रहे हो क्या? फ्री में हो तो हमें भी पिलाओ!” – मैने जग्गी से कहा। जग्गी ने अपनी खीस दिखा दी। वोटिंग वालों ने ऑर्डर दिया था। उन्ही के हिसाब से वह सभी कर्मियों के लिये प्लास्टिक की खड़खड़िया ग्लासों में चाय सर्व कर रहा था। दरवाजे के पुलीस वाले सज्जन को भी दी।

हम उन पुलीस वाले सज्जन पास खड़े हो फोटो खिंचाने लगे तो उम्र का अदब करते हुये वे अपनी कुर्सी से खड़े हो कर हमारे लिये कुर्सी खाली करने लगे। हमने उन्हें कहा कि वे यथावत बैठे रहें। उनके साथ चित्र खिंचवाने का विचार भर है। वहां बैठना उद्देश्य नहीं है।

मैने रीता का और उन्होने मेरा चित्र खींचा।

वोटदान सम्पन्न हुआ।

उन पुलीस वाले सज्जन का नाम मैने झुक कर पढ़ा – अटल सिंह। अटल जी ने बताया कि सभी निर्वाचन की टीम वाले स्थानीय नहीं हैं। अलग अलग स्थानों से आये हैं। वे मुरादाबाद से आये हैं।

एक दिन के निर्वाचन अनुष्ठान के लिये कई लोग भिन्न भिन्न स्थानों से आते हैं। जग्गी जैसा कोई चाय की चट्टी वाला चाय नाश्ते की सर्विस देता है। निर्वाचन अनुष्ठान के दौरान जाने कितने सम्पर्क बनते होंगे। कितनी आत्मीयता उपजती होगी। कितनी टिर्र-पिर्र भी होती होगी। थोड़ी देर अटल सिंह जी के पास और गुजारते तो शायद हम भी मित्र बन जाते। फोन नम्बर एक्स्चेंज होने की सम्भावना बनती। … पर अटल जी ने हमें उठ कर कुर्सी पेश करने की सज्जनता दिखाई, वही काफी था। याद रहेंगे वे।

अटल सिंह

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

3 thoughts on “वोटदान

  1. सिंह जब शिकार करने की हालत में नहीं होता तब उसके पास मज़बूरी होती है कि वह सेवा का गमछा धारण कर ले. वोट देकर अच्छा किया आपने. नोटा से कुछ हासिल नहीं अभी और न भारत में कभी ऐसा कुछ होगा जिससे चुने प्रतिनिधि को कुछ डर रहे. आखिर जनसेवक होते हैं वे. जनता उनकी सेवा कैसे कर पायेगी फिर. दयासागर

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