घर परिसर में साइकिल और मानसिक- यात्रा

उम्र के साथ साथ घरपरिसर में ही व्यायाम करने या साइकिल चलाने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। कमरे के अंदर स्टेशनरी साइकिल चलाने की बजाय बगीचे में पेड़ों-क्यारियों की बगल से साइकिल चलाना बेहतर अनुभव लगता है। गर्मियों में सवेरे चार बजे से साइकिल चलाने का रुटीन बना। भोर के धुंधलके में एक दो जगह इमरजेंसी लाइट रख कर साइकिल-ट्रैक पर उजाला किया जाता था। अब बारिश के मौसम में सवेरा होने का इंतजार किया जाता है लेकिन गीली जमीन पर साइकिल न फिसल जाये, उसका उपाय निकालना पड़ रहा है।

जहां साइकिल चलती है, वहां ईंट या पटिया का खड़ंजा है। गीली मिट्टी में साइकिल धंसने का भय नहीं। पर पानी से भीगे खड़ंजे पर साइकिल रपटने का भय जरूर है। उसका उपाय मैने अपनी स्पीड कम कर निकाला।

गेट के अंदर भीगे रास्ते में साइकिल चलाना। एक चक्कर 39-40 मीटर का है और एक किमी में 25-26 चक्कर लगते हैं। वह 1 किमी की दूरी बारिश से भीगे बगीचे में साढ़े सात मिनट में तय होती है।

एक किलोमीटर घर के अंदर साइकिल चलाने में सात मिनट लगते हैं। बाहर सड़क पर पांच मिनट में एक किमी की दूरी तय हो सकती है। बारिश में रपटने का भय डिसकाउंट कर साइकिल चलाने के लिये स्पीड और कम करते हुये मैने गणना की तो आठ मिनट लगे एक किमी की दूरी तय करने में।

एक किमी साइकिल चलाने में लॉन के 25-26 चक्कर लगाने होते हैं। कान में स्पीकर लगाये ऑडीबल पर पुस्तक सुनते वह गोल गोल घूमना अखरता नहीं। अच्छा ही लगता है।

रेलवे की टर्मिनॉलॉजी में आठ किमी प्रतिघंटा पैदल चलने की रफ्तार है। चालक को ट्रेन को जब वाकिंग स्पीड से दो स्टेशनों के बीच चलने को निर्देश दिये जाते हैं तो उससे अपेक्षा की जाती है कि वह ट्रेन की रफ्तार 8किमीप्रघ रखेगा। उसी स्पीड से साइकिल चलाते मैं यह मानता हूं कि जितनी देर साइकिल चलाई, मानो उतनी देर ब्रिस्क वाकिंग कर ली! गूगल फिट भी उसी अनुसार आंकड़े बनाता है।

अभी इस मौसम की बारिश ज्यादा नहीं हुई है। भादौं का महीना आते आते ईंट के खडंजे पर काई की मोटी परत जम जायेगी और साइकिल रपटने का भय बढ़ जायेगा। पर अगर साइकिल नियमित चलती रही तो उसकी ट्रेल पर काई जमा ही नहीं होगी। और एक-आध बार रपट भी गये तो क्या?

मैं आजकल नित्य 10-12 किमी घर परिसर में साइकिल चला ले रहा हूं। गोल गोल साइकिल चलाते करीब 250-300 चक्कर लगते हैं। इस साइकिलिंग को दुगना किया जा सकता है। अगर इनहाउस यात्रा की धुन सवार हो तो रोज 25किमी साइकिल बिना कहीं निकले चल सकती है। करीब इतनी ही पदयात्रा ज्योतिर्लिंग पदयात्री प्रेमसागर किया करते थे। नित्य की उनकी यात्रा का विवरण ब्लॉग पर लिखना मेरा लेखन-पैशन रहा है। कुछ वैसा ही लेखन, बिना घर से निकले, मानसिक-साइकिल-यात्रा से किया जा सकता है।

मेरे घर से कन्याकुमारी लगभग 2500किमी दूर है। नित्य 25किमी मानसिक साइकिल यात्रा करते हुये यह दूरी 100 दिन में तय हो सकेगी। वर्षा के दौरान एक स्थान पर रह संत जन चौमासा किया करते रहे है। जहां रुकते हैं, वहां से बाहर निकलना नहीं होता। मानसून के चौमासा भर में यह मानसिक यात्रा सम्भव है। प्रेमसागर जी की यात्राओं के इनपुट्स ले कर नित्य ब्लॉग लिखने से इस तरह मानसिक यात्रा करने का अनुभव पहले ही मुझे हो चुका है।

अगर हुई तो यह मानसिक यात्रा कुछ अलग होगी। इसमें गूगल मैप के द्वारा मार्ग के अध्ययन, विकीपीडिया पर उपलब्ध सामग्री, पुस्तकों, पत्र पत्रिकाओं से इलाकों की जानकारी के अलावा बहुत कुछ कल्पनाशक्ति का सहारा लेना होगा। कल्पना का घटक मेरे लेखन में आजतक नहीं हुआ। वह सीखना होगा। फिक्शन लिखना सीखना होगा।

मैने पढ़ा है कि जॉन स्टीनबैक ने अपने कालजयी ट्रेवलॉग – ट्रेवल्स विथ चार्ली लिखने में अपनी वास्तविक यात्रा के अलावा कल्पनाशक्ति का भरपूर प्रयोग किया है। कुछ लोगों ने तो उनकी यात्रा मार्ग को ट्रेस करने पर पाया कि कई जगहें, कई लोग तो वास्तव में थे ही नहीं। वे सब बुढ़ाते (और अशक्त) स्टीनबैक की उर्वर कल्पना की उपज थे।

जॉन स्टीनबैक का यात्रा के दौरान प्रयोग किया गया ट्रेलर। चित्र विकीपीडिया से।

“I don’t think your readers will mind the term as you deploy it here, but if it were my call I’d use something different. Travels with Charley is an inventive, incisive essay on America that, because Steinbeck made some of it up, can’t really be called a snapshot. It’s more like a painting.” ट्रेवल्स विथ चार्ली पर यह टिप्पणी यहां देखें।

पर स्टीनबैक का यह ट्रेवलॉग नायाब कृति है। साठ सत्तर के दशक का अमरीका समझने के लिये एक महत्वपूर्ण पुस्तक। नायाब तो मैं क्या खा कर लिखूंगा, पर एक मानसिक-ट्रेवल-कृति लिखने का प्रयास तो कर ही सकता हूं।

मेरा मानसिक डूप्लीकेट नागेश्वर बहुधा मुझसे कहता है कि वह भी बूढ़ा हो रहा है। इससे पहले कि वह भी बिस्तर तक सीमित हो जाये या डिमेंशिया का शिकार हो, वह अभिव्यक्त हो जाना चाहता है। नागेश्वर का व्यक्तित्व मुझे निखारना-गढ़ना है। जैसे जैसे साल बीत रहे हैं, वह करना कठिन होता जायेगा।

मानसिक यात्रा होनी ही चाहिये। नागेश्वर को अभिव्यक्त होना ही चाहिये।

यात्रा पर निकला नागेश्वर। बिंग एआई द्वारा बनाया एक प्रतीक चित्र।

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

7 thoughts on “घर परिसर में साइकिल और मानसिक- यात्रा

  1. आप स्वर्ग में रह रहे हैं. मेरी आयु 51 हो गई है और संभवतः मैं अगले वर्ष रिटायर्मेंट के लिए अप्लाई कर दूंगा. मेरी भी इच्छा है कुछ ऐसा ही घर बनाने की.

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  2. इस पोस्ट को पढ़ने के कुछ दिन बाद आपका ब्लॉग ओपन किया। आश्चर्य हुआ कि, इसके बाद आपने कुछ लिखा नहीं, क्योंकि आप लिखते ही रहते हैं।

    आशा है सब ठीक होगा।

    आज आपका ब्लॉग ओपन करने के पीछे भी यह कारण है कि लंबे समय बाद ghughooti baasuti जी से फोन पर बात हुई और मैंने जिक्र किया कि अभी भी आपका ब्लॉग पढ़ना होता है।
    आपको लेकर उनकी जिज्ञासाएं हुईं, ब्लॉग पोस्ट के आधार पर अपने स्तर पर समाधान भी किया।

    आप, ghughuti जी और मेरे बड़े भाई तीनों ही 1955 के।

    संजीत त्रिपाठी, रायपुर

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  3. इस पोस्ट को पढ़ने के कुछ दिन बाद आपका ब्लॉग ओपन किया। आश्चर्य हुआ कि, इसके बाद आपने कुछ लिखा नहीं।
    आशा है सब ठीक होगा।
    आज आपका ब्लॉग ओपन करने के पीछे भी यह कारण है कि लंबे समय बाद ghughooti baasuti जी से फोन पर बात हुई और मैंने जिक्र किया कि अभी भी आपका ब्लॉग पढ़ना होता है।
    आपको लेकर उनकी जिज्ञासाएं हुईं, ब्लॉग पोस्ट के आधार पर अपने स्तर पर समाधान भी किया।

    आप, ghughuti जी और मेरे बड़े भाई तीनों ही 1955 के।

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