रुद्राभिषेक और जन्मदिन का केक दो म्यूचुअली एक्स्क्ल्यूसिव समारोह लगते हैं। पर भारत में जिस तरह सांस्कृतिक-धार्मिक फ्यूजन हो रहा है; उसमें यह एक रिवाज बन जाना कोई अचरज नहीं। कल वही दिन था।
मेरे पड़ोसी, मेरे साले साहब, शैलेंद्र जी की बिटिया का जन्मदिन था। उन्होने निमंत्रण दिया। शाम को रुद्राभिषेक और उसके बाद भोजन। कुछ इस प्रकार से कि समय से रुद्राभिषेक भी हो जाये और समय से सायंकालीन/रात्रिकालीन भोजन भी। मैं सामान्यत: शाम पांच बजे दिन का अंतिम भोजन सम्पन्न कर लेता हूं। पर पत्नीजी ने जोर दे कर कहा कि भले ही देर हो, शैलेंद्र के यहां जा कर भोजन कर लेना। चाहे थोड़ा ही खाना। उनके जोर दे कर कहने में निहित था कि मेरी किसी तरह की बहानेबाजी या नौटंकी की गुंजाइश नहीं बची थी।
मैं शैलेंद्र के घर गया। पांच पण्डित समवेत स्वरों में उसी तरह पाठ रहे थे जैसे बारिश के मौसम में निकले मेढक (वेदपाठी ब्राह्मणों के लिये यह वैदिक युग की उपमा है!)। उनकी ध्वनि जब मद्धिम पड़ती तो भौरों के गुंजार करते लगते या फिर मधुमक्खियों की तरह भनन भनन करते। अगर रुद्राभिषेक की जगह सुंदरकाण्ड का पाठ हो रहा होता तो आसानी से पता चल जाता कि अनुष्ठान कितना हो चुका है और कितना होना बाकी है। पर रुद्राभिषेक में तो अंदाज लगा पाना कठिन या असम्भव है।

समय के आकलन करने में मेरी सहायता को बबलू – मेरे दूसरे साले साहब आये – “जीजा जी, देखिये कि बाल्टी में दूध कितना बचा है?”
बकौल बबलू पांच लीटर दूध के साथ अभिषेक प्रारम्भ किया जाता है। शंकर जी की पिण्डी के ऊपर शंक्वाकार शृन्गी से जजमान दूध डालते हुये अभिषेक करता है। धीरे धीरे गिरता लगभग पूरा दूध लग जाता है रुद्राभिषेक में। अगर श्यान शहद से अभिषेक हो तो ढाई किलो शहद लगता है और अगर पतला शहद है तो साढ़े तीन किलो। यहां शैलेंद्र दूध से अभिषेक कर रहे थे। कितना दूध बाल्टी से निकल चुका है और कितना शंकर जी के आसपास का तसला दूध से भर गया है; उससे आकलन हो जाता है कि कितनी देर और चलेगा अनुष्ठान।
और वैसा ही हुआ। बाल्टी की तलहटी में ही बचा था दूध। शंकर जी के आसपास दूध लगभग पूरी ऊंचाई तक भर चुका था। दस मिनट में अनुष्ठान पूरा हुआ। उसके बाद हवन, पूजा और आरती हुई। एक पण्डिज्जी ने हम सब के माथे पर तीन क्षैतिज रेखाओं में चंदन लगाया। क्षैतिज रेखाओं के मध्य में गेरुये रंग की एक बिंदी। … कुल पांच पण्डित थे अभिषेक कराने में। उनके कार्य और हावभाव से उनकी वरिष्ठता और कनिष्ठता स्पष्ट हो रही थी। बबलू जी ने बताया कि एक-तीन-पांच-सात की संख्या में ब्राह्मण यह अनुष्ठान कराते हैं। उनकी अधिक संख्या जजमान की सम्पन्नता और अवसर की गुरुता – दोनो की परिचायक होती है। शैलेंद्र अपने जिले के वरिष्ठ नेता हैं। भाजपा में इस समय जितनी उठापटक चल रही है, उसमें हो सकता है (और यह मेरी अटकल है) अगली विधायकी का टिकट उन्हें मिल जाये। अत: उनका राजनैतिक रसूख और इकबाल बुलंद रहना चाहिये। सो अनुष्ठान में पांच से कम पण्डित होते तो जमता नहीं।
रुद्राभिषेक सम्पन्न होने के बाद एक अलग स्तर पर चर्चा प्रारम्भ हुई। राजनीति और भाजपा की उत्तरप्रदेश में दशा पर चर्चा। अमित शाह और अडानी पर चर्चा। बबवा (आदित्यनाथ योगी) और मौर्या की खटपट पर चर्चा। बाभन किस ओर झुकेंगे, उसपर चर्चा। हर व्यक्ति ओपीनियन रखता था और हर एक की आने वाले समय को ले कर भविष्यवाणियां थीं।
“मोदी हारते हारते बचे हैं। बबवा की ऐसी उपेक्षा करते रहे और अमित शाह को खुल्ली छूट रही अंट-शंट टिकट बांटने की तो अगली बार निपट जायेंगे।”
“अडनिया गले तक कर्जे में डूबा है। गुब्बारा अब फूटा और तब फूटा। अडनिया जाये त अमित शाहऊ जईहीं।”
पिछले चुनाव ने अमित शाह को विलेन बना दिया है। आदित्यनाथ का जबरदस्त समर्थन है। सरकार से जो अपेक्षायें थीं, वे पूरी नहीं हुईं, यह भाव भी है। … मैं दर्शक/श्रोता के रूप में उपस्थित रहा।
“कौनों ढंग के आदमी को मुख्यमंत्री बना दें और बबवा को केंद्र का गृहमंत्री। सब को सही कर देगा बबवा।” उत्तर प्रदेश में हमेशा किसी अवतार के आने और सब ठीक कर देने की धारणा रही है। पहले मोदी को अवतारी समझते थे लोग। अब कुछ लोग आदित्यनाथ योगी को उस रूप में देखने लगे हैं।
रात का भोजन कर मैं सवा सात बजे तक घर आ गया। शैलेंद्र की बिटिया का केक तो अगले दिन खाया। उनकी बिटिया मेधावी है। अच्छे नम्बरों के आधार पर दिल्ली के किसी प्रतिष्ठित कॉलेज में उसका दाखिला हुआ है। शैलेंद्र अपनी किसानी, कारोबार, राजनीति और बच्चों की मेधाविता – सब में महादेव की भरपूर कृपा पाये हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि जन्मदिन के अवसर पर अंगरेजी गानों की भांय भांय नहीं, रुद्राभिषेक का आयोजन किया।
ॐ रुद्रायै नम:! हर हर महादेव!

आभार
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Sir Baba Vishwanath ki kripa sadaiv saparivar bani rahe Jai Baba Vishwanath
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