***छिपकलियां***
पिछले दिनों मेरे घर में पुताई हुई। सात-आठ साल बाद। घर में अटाला साफ हुआ। एक दो दीवार पर चढ़ने वाले मेढक घर में रहते थे; वे शराफत से बाहर भाग गये। कई छोटी बड़ी छिपकलियां थीं; वे मानती थीं कि घर उन्ही का है। बाहर निकलने को तैयार नहीं थीं। पिंटू-बड़े लाल-गुड्डू की टीम ने अनुमति मांगी – एन्हन के मारि दिहा जाये?
हमने कहा – मारो नहीं, भगा दो। बाहर कई जीव रहते हैं; वे ही इनका आहार बना लेंगे। अगर वैसा नहीं होता तो ये घर के अंदर पनाह क्यों खोजतीं? गिरगिटान की तरह बगीचे में ही रहतीं।
उन्हें खोज खोज कर बाहर भगा दिया गया। करीब डेढ़ दर्जन रही होंगी। उन्हे घर के अंदर से तो निकाला पर घर परिसर से “देश निकाला” नहीं हुआ उनका।
पुताई के लिये कुछ सामान बगीचे में बाहर निकाला गया था, उन्होने उनमें ही पनाह लेने का प्रयास किया। एक मिट्टी का लालटेन का शो पीस था जिसे बैठने की पटिया पर सहेज कर रखा गया था। उसके ‘पेट’ में चार मोटी छिपकलियां एक दूसरे से गुंथी पाई गयीं। वह जगह उन्हें बहुत सुरक्षित लगी होगी। जब पुताई करने के बाद हमने वह लालटेन अपनी जगह लगाने के लिये बगीचे से वापस उठाई तो उसमें से वे निकल भागीं। भाग कर वे घास में दुबक गयीं।
उन सब का अंतत: क्या हुआ होगा? कुछ तो बगीचे में मौजूद शिकारियों का आहार बनी होंगी पर अब, एक सप्ताह बाद, घर में फिर चार पांच छिपकलियां दिख रही हैं। निश्चय ही वे सब पुरानी वाली हैं। फिर घर में आ गई हैं।
हम प्रवासी हैं। इस घर में छिपकलियां स्थाई हैं। शाश्वत! फॉसिल्स के अध्ययन से ज्ञात होता है कि आधुनिक छिपकली पांच करोड़ साल पहले की है। होमो सेपियंस तो मात्र 2-3 लाख साल पहले की संरचना हैं। शायद आदमी के खतम होने के बाद भी छिपकलियां रहें। उस कोण से हम तो मकान के किरायेदार हैं; मकान मालिक तो ये ही हैं। :lol:
यूं घर में छिपकलियों के रहने से हमें ज्यादा तकलीफ नहीं है। छोटे कीड़ों और मच्छरों को खा कर वे बीमारियां और गंदगी को कम ही करती हैं। कीटनाशकों पर हमारा खर्च कुछ कम ही करती होंगी ये। चिकनगुनिया और मलेरिया जैसी व्याधियों से हम बचे हुये हैं; उसके श्रेय का कुछ अंश छिपकलियों का भी है। वैसे उनके द्वारा कुछ गंदगी भी होती है। उनकी आवाज जो रात की नीरवता में सुनाई देती है, मनहूस लगती है। हमेशा भय रहता है कि कभी कोई हमारे शरीर पर न गिर जाये। कहते हैं कि सिर पर छिपकली गिरे तो राजयोग होता है। पर वह सौभाग्य अभी तक मुझे मिला नहीं। फिर भी उस आशा में जी रहे हैं। क्या पता कभी कोई टपके और हमें राजा बना दे!
रसोई में छिपकलियां अलबत्ता असहज करती हैं। खाद्य सामग्री बचा कर रखनी पड़ती है। एक तरह से लाभ भी है कि अपने भोजन को सहेज कर रखना ही चाहिये। छिपकलियां हमें सावधान भी करती हैं कि रसोई में साफसफाई बनाये रखें। मेरे घर में छिपकलियां, पिछले सात आठ साल में, कभी इतनी नहीं हुईं कि अति हो गई हो और मारने के लिये अभियान चलाना पड़ा हो। इस साल पुताई के कारण वैसे भी उनकी संख्या आधी हो गयी है। साल दो साल तो उनकी संख्या स्टेडी स्टेट में आने के लिये कशमकश करेगी। फिर सब सामान्य हो जायेगा।
इस समय जो छिपकलियां घर में हैं, उनमें से एक ही बहुत मोटी और कद्दावार है। घरेलू छिपकली पांच-आठ साल जीती है। उस हिसाब से यह मकान बनने के दौर की होगी। शायद बाकी सब छिपकलियों की नानी-दादी। उसे देख भय होता है। पर उसे भी जीने दिया जायेगा। एक दो साल ही और जियेगी यह सीनियर सिटीजन छिपकली!
छिपकली जैसे तुच्छ जीव पर भी 600 शब्द ठेलने का अवसर मिल गया। लेखन के विषयों की इफरात है जीडी! बस लिखने का माद्दा चाहिये। मानसिक हलचल चलती रहनी चाहिये! :-)
पोस्ट के लिये चित्र चैटी (चैट जीपीटी) जी से बनवाया। वे मेरे घर को बड़ा पुराना टाइप का समझता है। कमरे में इनकैण्डीसेन्ड बल्ब दिखा रहा है। छिपकलियां भी डायनासोर या गोहटा को टक्कर दे रही हैं। पर बिना चित्र की पोस्ट से चित्र वाली पोस्ट बेहतर है। नहीं?


ये 6-6 उँगलियों वाले मॉन्स्टर देख के लगता है की ChatGPT से आशंकित होने का समय अभी नहीं आया है।
मुझे याद है की बचपन में कीट – पतंगों के बड़ी कोफ़्त होती थी, देखते ही मार दिए जाते थे। फिर स्काउट कैंप में जाना हुआ, प्रकृति को नजदीक से देखने और समझने को मिला, और व्यावहारिक परिवर्तन आये। उसके बाद उन्हें मारने के बजाय पकड़ कर बाहर छोड़ना शुरू हुआ। आज के समय में, शहर में रह कर महादेवी वर्मा शायद गिल्लू न लिख पातीं।
R
LikeLiked by 1 person
अपना घर परिसर देख कर बहुधा मुझे लगता है कि महादेवी वर्मा जी का घर देखूं और तुलना करूं कि वैसा ही है या नहीं! :-)
LikeLike
उस घर को शायद म्यूज़ियम बना दिया गया था। जा ही आइये एक दिन।
R
LikeLiked by 1 person
अगली बार प्रयाग गया तो देखूंगा! :)
LikeLike
*लेखन के विषयों की इफरात है*
सहमत
LikeLiked by 1 person
सही कहा छिपकली ही मकानमालकिन हैं और हम किराये दार। हाँ, इनसे डर जरूर लगता है। भगाने की कोशिश करने पर कुछ तो अपनी पूँछ भी छोड़ देती हैं। ऐसा कुछ न हुआ आपके यहाँ?
जहाँ तक लेखन की बात है यह तो सही है कि हर चीज पर लिखा जा सकता है। छिपकलियाँ तो फिर भी काफी रोचक जीव हैं। तीन चार सेंटिमीटर ऊँची और शायद 10-15 सेंटिमीटर लंबी होती होंगी लेकिन पाँच छह फुट के आदमी को भी डराने का माद्दा रखती हैं।
LikeLiked by 1 person
जी! बहुत धन्यवाद!
LikeLike
वाह, बहुत सुंदर प्रस्तुति।
LikeLiked by 1 person