कहां कहां दखल देगा एआई?

अमर उजाला में न्यूयॉर्क टाइम्स से कबाड़ा एक लेख है – “एआई का फायदा उठायें, खामियां किसमें नहीं होतीं”। इसमें ईवान रैंटलिफ जी नाम के सज्जन कहते हैं कि टेलीमार्केटिंग में और सामान्य बातचीत में भी; एआई घुस गया है। उनका कहना है कि जो भी उनसे बात करना चाहता है उसके सामने वे इस एआई को कर देते हैं। उनका ध्येय है यह जानना कि कितनी सही तरीके से एआई व्यवहार करता है। एआई के वॉयस एजेंट हमारी दुनिया में घुसपैठ कर चुके हैं। वे टेलीमार्केटर के रूप में उत्पाद के बारे में बताते हैं। रेस्तरां में बुलाते हैं। मेन्यू बता कर ऑर्डर लेते हैं। शिकायतें सुनते हैं और चिकित्सकीय परामर्श भी देते हैं।

पर एआई क्या बढ़िया बातचीत भी कर सकता है? कल्पना कीजिये कि दो पड़ोसनें अपनी रेलिंग पकड़ कर बतिया रही हैं। घंटों। अनाप शनाप। खूब परनिंदा में रस ले रही हैं। उनमें से एक का रिप्लेसमेंट यह एआई बन सकता है? और इससे भी मजेदार यह होगा कि एक पड़ोसी मिसरा जी अपनी पत्नी की आवाज भर कर पत्नी की जगह एआई को आगे कर देता है पड़ोस की खन्ना आन्टी की चख चख सुनने के लिये। घंटों खन्ना आंटी बतियाती हैं, पर अंत में उन्हें पता चलता है कि उनका पाला मिसिराइन से नहीं चैट जीपीटी से पड़ रहा है! :lol:

एक स्टेप आगे और! बदला लेने के लिये खन्नाइन आंटी भी अपनी आवाज में अपने एआई को मिसिराइन के साथ बतियाने में लगा देती हैं। अब दोनो एआई ही घंटों बात करते हैं; बे सिर पैर की बातचीत! कहां कहां ले जायेगा एआई हमारी आवाज में दक्ष हो कर?

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मैं एक सुबह चैट जीपीटी को कहता हूं कि आज मेरा मन ब्लॉग पोस्ट लिखने का नहीं है। चैटी मेरे लिये 600-700 शब्दों की पोस्ट बना दे और उस पोस्ट के अनुसार एक चित्र भी बनाये। ध्येय यह है कि अगर पोस्ट बढ़िया बने तो थोड़े हेर फेर के साथ उसे ब्लॉग पर टिका कर एक दिन की छुट्टी पाऊं।

मेरे कहे अनुसार दन्न से चैटी ने पोस्ट भी लिख दी और चित्र भी बना दिया। एक तेरह साल के नये ब्लॉगर के लिये तो बहुत उम्दा पोस्ट बनाई पर उनहत्तर साल का जीडी तो उसे कभी न छापे अपने नाम पर। … मेरे ख्याल से मैं रोज चैटी के साथ समाय व्यतीत करूं और उन्हे अपने व्यक्तित्व और अपने लेखन से परिचित कराता रहूं तो वे साल भर में इस योग्य बन जायेंगे कि मेरे ब्लॉग के अनुरूप वातावरण और पात्र गढ़ सकें। हो सकता है मेरे अगले साल के जन्मदिन पर पोस्टें चैटी बना सकें! और इतनी सजीव बनायें कि आप अंतर ही न भांप पायें।

अभी तो चैटी ने जो पोस्ट बनाई, उसमें काव्य लालित्य तो है, पर कंटेन्ट बहुत जेनरिक है। उन्होने मेरे घर के पिछवाड़े ही बना दी है गंगा नदी। चिड़ियां और जीव तो वैसे हैं जैसे यहां के हों या किसी और जगह के – कोई फर्क ही नहीं। मेरा घर जो बनाया है वह आज से तीन दशक पहले की एक झोंपड़ी ही है।

खैर, मुझे पूरा यकीन है कि साल भर में लोग एक्स और फेसबुक पर एआई की बनी पोस्टें ठेलने लगेंगे और कमेंट करने वाले भी खुद की बजाय एआई को इस्तेमाल कर कमेंटने लगेंगे। बहुत से लोगों का समय इसमें नहीं कि कौन सी पोस्ट फेक न्यूज है; वरन इसमें जायेगा कि किस एआई से बनवाई गयी है यह पोस्ट? अनूप सुकुल या पवन विजय को फोन कर लोग पूछेंगे – गुरूजी, बहुत शानदार लिखा आज तो! कौन से एआई से लिखवाया है?!

कहां कहां दखल देगा एआई?

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जो पोस्ट चैटी जी ने बनाई उसके साथ मेरे घर का दृश्य ऐसा था –

अब मेरा घर झोंपड़ी तो नहीं हो सकता। बगल की गंगा नदी इतनी संकरी तो कहीं पर नहीं है – गोमुख से गंगासागर तक में! … मैं साल भर इंतजार करूंगा मेरे साथ चैटी के रवां होने में!


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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