*** और मचान बन गया ***
मैने खेत में एक मचान बनवाने की सोची थी, पर फिर इरादा बदल कर घर की चारदीवारी से सटा मचान बनवाने का निर्णय लिया। उस मचान से खेत, उसके आगे रेलवे स्टेशन का लेवल क्रॉसिंग का इलाका और गांव नजर आते।
इस बारे में कल एक पोस्ट एक्स और फेसबुक पर लिखी थी। दिन में मचान बन गया था। शाम के समय रामसेवक (हमारे माली जी) आये तो उनका कहना था कि चौघड़िया की बजाय एक बांस की सीढ़ी होनी चाहिये। राजा, जिसने मचान बनाया था का भी यही विचार था। दोनो एक सीढ़ी बनाने में जुट गये। रात ढलने पर भी वे काम करते रहे। जब आठ बजे रात में मैने जा कर देखा तो सीढ़ी लग गई थी मचान के साथ। उसपर से मचान पर चढ़ कर मैने मचान की खटिया पर बैठ और लेट कर बनावट का लोड टेस्ट लिया। वहां बैठ कर रेलवे यार्ड का चित्र भी खींचा। स्टेशन की सभी लाइटें जल रही थींं। ऐसा दृष्य मैने पहली बार देखा, जबकि यहां रहते हुये मुझे 9 साल हो रहे हैंं।
मचान ने मेरा परिदृष्य बदल दिया!
***** पांड़े जी की ये पहचान। घर के पीछे बना मचान। *****
आज सवेरे पत्नीजी के साथ जल्दी ही गया। सूर्योदय हुआ ही था। मैं मचान पर चढ़ा। पत्नीजी ने मेरा फोटो खींचा। मचान पर बैठा ही था कि सवेरे प्रयाग की ओर जाती मेमू ट्रेन सामने से गुजरी। मैने उसका दस सेकेंड का वीडियो रिकार्ड किया। इस तरह का दृष्य पहले नहीं ले पाया था!
करीब अस्सी फुट लम्बाई का मोटा बांस, मूंज की रस्सी और कुछ तार तथा एक खटिया ले कर राजा, अशोक और रामसेवक ने मेरे लिये मचान की कल्पना सार्थक कर दी! बचपन की साध उनहत्तर साल की उम्र में पूरी हुई!
सवेरे सुभाष दुबे जी मिलने आये। उन्होने पढ़ा था मचान के बारे में तो सीधे मचान देखने गये। फिर जब बात करने बैठे तो चाय पीते हुये उन्होने एक नारा गढ़ा – पांड़े जी की ये पहचान। घर के पीछे बना मचान। … उनके अनुसार अगर मैं परधानी का चुनाव लड़ूं तो यह नारा काम आयेगा। मेरी पत्नीजी ने कहा – तब तो चुनाव चिन्ह भी मचान मिलना चाहिये!
एक अदना का मचान कितनी खुशी, कितना आनंद देता है! जिंदगी की सार्थकता इस ‘मचानियत’ को जीवंत रखने में निहित है।
पांड़े जी की ये पहचान। घर के पीछे बना मचान। :lol:



बहुत सुंदर.. एक ही जगह को देखने के कितने तरीके होते हैं, कैसे कई बार एक जगह रहते हुए भी हम उसे वैसे नहीं देख पाते हैं और फिर हमारी परिस्थिति में आया बदलाव कैसे नये नये दृश्य दिखा देता है ये सब इस मचान का अनुभव से पता चलता है। कई नई चीजें यहाँ से देखने को मिलेंगी। उम्मीद है सब इधर दर्ज होगा।
बचपन में कई बार ऐसे लगता था कि यदि पेड़ पर एक घर सा होता तो कितना बढ़िया होता। उम्मीद है ट्री हाउस का यह सपना कभी मैं भी पूरा करूंगा।
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संजीत त्रिपाठी*। ;)
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टाइपो हो गया था। ;)
संजीत त्रिपाठी
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ye to super luxury Hai Sir,
Had your decision been to stay in Urban place, this thought couldn’t have even crossed your mind.
Yehan to apne realize kar liya
Manish Kumar
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हां, यह तो कुछ ऐसा था कि मन में एक पेंटिंग का विचार आया। कागज ईजल पर लगाया और दो घंटे में पेंटिंग बनाबना डाली। फिर उसपर मुग्ध होने का दौर चला!
नौकरी के दौरान यह भाव कम ही आता था!
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मस्त है।
संजीत त्रिपाठी
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जय हो, संजीत!
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