अमलेश सोनकर का मचान

*** अमलेश सोनकर का मचान ***

मेरे घर से आधा किमी की दूरी पर है अमलेश का खेत। दूर से मैने देखा तो सफेद चांदी सा कुछ जमा था खेत में। थोड़ा पास गया तो एक बच्चे ने बताया – “रेक्सहवा कोंहड़ा है। इसकी मिठाई बनती है।” ज्यादा पास जाने पर अमलेश मिले। वे खेत से खाये हुये कूष्माण्ड अलग कर रहे थे। जो सड़ गये थे, वे एक कोने पर फैंक दिये थे। जो थोड़ा खाये गये थे, उन्हें खड़ंजे वाली सड़क किनारे जमा कर रहे थे वे। बाकी बचे रेक्सहवा कोंहड़ा खेत में जमा कर दिये थे। थोड़ा खाये गये कोंंहड़े आज बाजार ले जाये जायेंगे। बाकी जो जमा हैं वे दो महीने में जरूरत अनुसार बिकेंगे।

अमलेश ने बताया कि सारे रेक्सहवा कोंहड़े उनके अपने खेत के नहीं हैं। आसपास के खेती करने वालों से उन्होने खरीदे भी हैं। मंडी में भेजने का काम वे करेंगे। खेती के लिये आसपास किसानों से उन्होने जमीन पट्टे पर ली है। वे खेती करते हैं और बाजार से सम्पर्क में भी रहते हैं। अब वे गेंहू और मटर की खेती करने जा रहे हैं।

नीलगाय (घणरोज) से फसल बचाने के लिये उन्होने झटका देने वाली बाड़ भी लगाई है। इस समय वे खेत में काम कर रहे हैं इसलिये झटका मशीन बंद की है। अन्यथा मशीन के झटके से जंगली और आवारा पशु उनके खेत की ओर नहीं आते।

निगरानी और खेती की सुविधा के लिये उन्होने अपने मचान पर सभी सुविधायें रखी हैं। मैं उनके मचान पर चढ़ गया। ऊपर उनके साथ और उनके द्वारा कुछ फोटो भी खींचे-खिंचवाये। मचान पर एक दस लीटर की साफ पानी की बोतल, गैस स्टोव और बरतन भी थे। बिस्तर पर पुआल के ऊपर चादर बिछी थी। रोशनी का भी इंतजाम था। अमलेश ने बताया कि इस समय तो नहीं, कभी और आऊं तो वे चाय भी पिला सकते हैं। यहीं वे अपना खाना भी बनाते हैं।

मैने पूछा – क्या बनाते हैं? खिचड़ी?

“नहीं खिचड़ी नहीं, सब कुछ बना लेते हैं।

अमलेश का मचान मुझे अपने वाले से ज्यादा कम्फर्टेबल लगा। ज्यादा सुविधा युक्त। ज्यादा कोजी! मेरा वाला तो मेरे घर में ही है, अन्यथा मैं भी चाय बनाने की और बिजली के कनेक्शन की सुविधा जुटाता। मैं काम से कम चावल-मटर-गोभी वाली तहरी/पुलाव तो बना ही लेता!

नये दौर के किसान हैं अमलेश। अपनी जमीन नहीं है तो पट्टे पर ले कर खेती कर रहे हैं। बाजार की भी जानकारी रखते हैं। निश्चय ही खेती उनके लिये सबसिस्टेंस का जरीया नहीं, एक कमर्शियल वेंचर है। वे, अमलेश सोनकर बाजारोन्मुख किसान हैं और जमीन की मिल्कियत वाले निठल्ले बाभन ठाकुर जमीन का किराया ले कर ही खुश हैं। मैं सोच रहा था कि आगे जमीन भी अमलेश जैसे की होगी। सरकार ने तो कृषि सुधार आधे अधूरे मन से किये होंगे, सुधार को लॉजिकल सीमा पर तो अमलेश जैसे लोग ही ले जायेंगे।

अमलेश का मैने फोन नम्बर ले लिया है। भविष्य में उनसे सम्पर्क रहेगा। उनकी आगे की खेती, आगे के वेंचर समझता रहूंगा उनसे। कभी हो सका तो उनके मचान पर रात भी गुजारूंगा। अमलेश ने कहा – “आप गर्मी में आये होते! रात मचान पर गुजारने का असली मजा तो गर्मियों में ही है।”

अगली गर्मी की एक रात अमलेश के मचान पर गुजरेगी। :lol:


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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