साधारण सा आदमी। उसकी सफेद कमीज साफ नहीं है। बांई ओर की जेब फटी है और उसे सिलने के लिये जो धागा उसने या उसकी पत्नी ने इस्तेमाल किया है, वह सफेद नहीं किसी और रंग का है। उसके बाल बेतरतीब हैं…
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मड़ैयाँ डेयरी का दूध कलेक्शन सेण्टर और लड़कियां
उनके पहनावे में भी बदलाव है। सलवार कुरता की बजाय टॉप और जींस दिखते हैं। दूध सेण्टर पर देने के बाद ये लड़कियां घर पर काम भी करती होंगी और पढ़ाई भी करती होंगी। अनपढ़ जैसी तो नहीं ही हैं।
अगुआ – लड़कों की शादी कराना मुश्किल होता जा रहा है!
“पहले लड़कियों की शादी कराने में मुश्किल होती थी। अब लड़कियां ज्यादा काबिल होने लगी हैं और लड़के निकम्मे। लड़की वाले भी यह समझने लगे हैं।”
फिर मिले शिव जग यादव
भारत आर्टीफीशियल इण्टेलिजेंस की दुनियां में छलांग लगा रहा है। आये दिन चैटजीपीटी के कारनामों की चर्चा होती है। पर अभी भी एक बड़ी आबादी इन सबसे अछूती है या इन सब को जोड़ कर ह्वाट्सएप्प के खांचे में डाल देती है।
दूध कलेक्शन सेण्टर और उमा शंकर यादव
उमाकांत जी से 2-3 मिनट की बातचीत मुझे भीषण डिस्टोपियन भाव से ग्रस्त कर देती है। आम आदमी का कोई धरणी-धोरी नहीं है। सरकारें आती-जाती हैं। शिलिर शिलिर परिवर्तन होते हैं। रामराज्य कभी आयेगा? शायद नहीं…
मिश्रीलाल सोनकर से एक और मुलाकात
पचासी साल का आदमी, अपने बारे में लिखा देख और सुन कर कितना प्रसन्न होता है, वह अहसास मुझे हुआ। उनकी वाणी मुखर हो गयी। बताया कि अपनी जवानी में वे मुगदर भांजा करते थे। “सामने क लोग मसड़ (मच्छर) अस लागत रहें तब।”