कोहरा – साइकिलवाद से पैदलवाद की ओर

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नये साल का संकल्प कि रोज दस हजार से ज्यादा कदम चलना है; सिर मुड़ाते ही ओले पड़ने जैसा कुछ साबित हुआ। साल की शुरुआत ही मौसम के खराब होने और कोहरा गहराने से हुई। साइकिल चलाना तो कोहरे में सही नहीं था, घर परिसर में भी ठंड के कारण साइकिल नहीं चलाई गई। बाहर पैदल चलना भी कठिन काम था। तीन दिन घर के अंदर ही छत्तीस कदम के ट्रैक पर आगे पीछे चलते हुये कई टुकड़ों में दिन भर में दस हजार कदम पूरे किये। यह संतोष हुआ कि प्रथमे ग्रासे मक्षिका पात: जैसा कुछ नहीं हुआ। एक, दो, तीन जनवरी को क्रमश: 10400, 10500 और 10800 कदम चला। किसी तरह मार तोड़ कर दस हजार कदम का लक्ष्य पूरा किया। दिन में कभी कभार बिना बात उठ कर भी चल किया करता।

ऐसा नहीं कि इन दिनों खरामा खरामा ही चला। तीनों दिन ब्रिस्क चाल में करीब सत्तर मिनट रोज चला। गूगल फिट पर सत्तर से अधिक हार्ट प्वॉइंट का अर्जन प्रतिदिन हुआ।

चार जनवरी को सर्दी के कारण घुटनों और पंजों में दर्द हुआ। लगा कि आज तो संकल्प टूटेगा ही। सवेरे चला ही नहीं। पर दिन में कोहरा कुछ कम हुआ और दोपहर में घर के अंदर की बजाय घरपरिसर में बाहर चलना शुरू किया। कान ढंकने के लिये कुलही पहने, गले में नेकबैंड लगा कर सम्राट चौधुरी की ‘द ब्रेडेड रिवर’ सुनते हुये 11100 कदम चल लिया। संकल्प बच गया। बचा ही नहीं और दृढ़ बना।

आज पांच जनवरी है। एक बार तो आज लगा कि रविवार होने के कारण चलने से छुट्टी मार ली जाये। आखिर, हफ्ते में एक दिन तो आराम बनता है। पर फिर याद आया कि नये साल का संकल्प करते समय यह तो नहीं तय किया था कि सप्ताह में एक दिन ऑफ रहेगा। इसलिये देर से ही सही, बहुत रिलक्टेंट तरीके से बाहर निकला। पैर में मोजे, घुटनों पर नी-गार्ड, ऊपर स्वेटर और फिर हुडी पहन कर द ब्रेडेड रिवर सुनते चलना शुरू किया। पुस्तक में सराईघाट और गौहाटी के चेप्टर ऑडीबल सुने।

अब तक ब्रह्मपुत्र नदी के ट्रेवलॉग का अरुणांचल प्रदेश की तीन ट्रिब्यूटरी – सियांग, दिबांग और लोहित की यात्रा विवरण सुन चुका हूं। ऊपरी ब्रह्मपुत्र के माझुली, काजीरंगा, कामरूप तेजपुर आदि के बारे में पता चल चुका है मुझे। अब सराईघाट की लड़ाई, लचित बरफूकन का शौर्य और रामसिंह की पराजय सुनने लगा। पिछ्ली बार जब प्रेमसागर सराईघाट पुल पर से इसपार से उसपार गये थे, तब मुझे यह इतिहास नहीं पता था, वर्ना प्रेमसागर के शक्तिपीठ वाले ट्रेवल प्रकरण में इसे भी जोड़ता मैं। … अब उस ट्रेवलॉग को एक बार फिर सम्पादित करने का मन करता है।

द ब्रेडेड रिवर के दो चेप्टर सुनते हुये पूरे किये हैं। कोहरा है, पर कम है। विजिबिलिटी करीब पचास मीटर की होगी। घरपरिसर में सब ठीक से दिख रहा है। करीब पौने तीन हजार कदम चलने के बाद पोर्टिको में झूले पर बैठ मैने चलने के आंकड़े मोबाइल पर देखे। खराब मौसम में भी बाहर चलने का संतोष हुआ। आराम से एक लम्बी सांस भर कर कोहरे की नम हवा फेफड़ों मे भरी। कोहरे की नम हवा की गंध भी क्या गज़ब की चीज है! उसकी अनिभूति के लिये बाहर निकलना होता है।

सवेरे आठ बजे तक तीन हजार कदम हो गये तो मार तोड़ कर दिन भर में दस हजार तो हो ही जायेंगे। रविवार को ऑफ नहीं होगा; संकल्पभंग नहीं होगा।

एक कोने में साइकिल उपेक्षित सी रखी है। पिछले साल औसत साढ़े चार हजार कदम रोज चला था मैं पर औसत आठ-नौ किलोमीटर साइकिल भी चलाई थी। दिसम्बर महीने में यह अहसास हो गया था कि मैं पैदल चल सकता हूं। दिसम्बर में दस हजार कदम का औसत छू लिया था। अब, इस साल साइकिलवाद से पैदलवाद की ओर बढ़ गया हूं। या यूं कहूं कि साइकिल-पैदलवादी हो गया हूं। इस साल सत्तर का हो जाऊंगा। रोज छ – सात किमी पैदल और लगभग उतना या उससे कुछ अधिक ही साइकिल पर चलना हो जायेगा। साल भर में पांच हजार किमी गतिमान रहते हुये गुजरेंगे। यह तो कश्मीर के कन्याकुमारी और कच्छ से कामरूप तक का वर्चुअल दोलन होगा सन 2025 में!

लोग बढ़िया ट्रेक-सूट, गैजेट्स आदि से लैस हो चलते हैं। उनके जूते भी एडीडास के मंहगे वाले होते हैं। मैं तो गांव की दुकान के सस्ते वाले मोज़े, फदर फदर करते बड़ी मोहरी के पायजामे और बाथरूम स्लीपर पहने पैदल चलता सियांग-दिबांग-लोहित और माझुली, उमानंद, काजीरंगा की वर्चुअल सैर कर रहा हूं। मेरे ख्याल से वर्चुअल यात्रा का ही सही, मेरा आनंद कम नहीं है!

सन 2025 के पैदलवाद की जय हो!

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Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

4 thoughts on “कोहरा – साइकिलवाद से पैदलवाद की ओर

  1. जय हो आपकी।

    नए साल का संकल्प पूरा होता रहे, बल्कि बेहतर होता रहे।

    नए साल की बधाई आपको।

    अपना दफ्तर में यही नियम है कि इंटरकॉम उपयोग न किया जाए बल्कि खुद ही हर डिपार्टमेंट में जाकर बात की जाए। नतीजतन दफ्तर समय 9 घंटे दफ्तर के अंदर ही करीब 4500 कदम चलना हो जाता है। इसकी जगह इंटरकॉम उपयोग करूं तो बमुश्किल 2000 कदम ही हो पाए।

    संजीत त्रिपाठी

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    1. यह तो बहुत शानदार व्यक्तिगत नियम है! आशा है बाकी संगी भी इस इण्टरकॉम-रहित सम्प्रदाय को ज्वाइन करेंगे!

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    1. जी। मैं भी सोचता हूं। पर मेरी समस्या अनिद्रा की है और मेरे ख्याल से ज्यादा चलना उसके उन्मूलन में सहायक हो रहा है। अन्यथा मैं भी 5000 के नियम पर चलता।

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