<<< वीआईपी कल्चर >>>
वे देश जहां सत्ता के विशेषाधिकार ज्यादा हैं, वहां वीआईपी कल्चर फलती फूलती है। ये तानाशाही वाले देश हैं। ये योरोपीय देशों की कॉलोनी हैं या रह चुके देश हैं। ये अशिक्षित और अंडर डेवलप्ड अफ्रीकी, लातीनी अमेरिकी या दक्षिण एशियाई देश हैं। इनमें भारत थोड़ा अलग सा उदाहरण है। भारत तथाकथित रूप से प्रजातांत्रिक है, अपने को एक आध दशक में विकसित देश बनाने या घोषित किये जाने के सपने पालता है पर गज़ब की वीआईपी कल्चर पालता है। मेरे बचपन से अब तक वह वीआईपी कल्चर की पकड़ कम नहीं हुई है।
मैं तो अभी गांव में रहता हूं – जहां एक दो पर्सेंट लोग माई-बाप हैं और अट्ठानबे परसेंट आबादी ‘परजा’ है। हम जैसे जो पैदाइशी सामंत वर्ग के नहीं हैं, उनमें भी वीआईपी बनने की ललक बचपन से ही साईके में भरी जाती है। राजपत्रित अधिकारी का जलवा तो दूर, दारोगा, तहसीलदार, लेखपाल, जेई – ये सब उस कल्चर की पहली पायदान हैं जो वीआईपी कल्चर को उठाये हुये हैं। शहरों में भी मध्यवर्ग भले ही इस कल्चर को ले कर कुड़बुड़ाता हो, पर वह भी किसी लाइन में नहीं लगना चाहता। मैने जब रेलवे ज्वाइन की थी तब मुझमें यह भाव भरा गया था कि मेरा दर्जा रेलवे हाईरार्की में डेमी-गॉड का है। उस छद्म अभिजात्यता से बाहर निकलने में मुझे बहुत प्रयास करने पड़े और एक दशक बाद ही वह डेमी-गॉडत्व छूट पाया। या वाकई छूट पाया?
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संगम में भगदड़ और 30 लोगों की मौत एक दर्दनाक घटना है। भीड़भाड़ वाले आयोजनों में वीआईपी कल्चर अक्सर आम श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए खतरा बन जाता है। आम लोग कतारों में इंतजार करते हैं और वीआईपी के लिए अलग से विशेष व्यवस्थाएँ होती हैं, तो इससे अव्यवस्था बढ़ना लाज़मी है। भीड़ को संभालने में मुश्किल होती है, और जब दबाव बढ़ता है, तो भगदड़ जैसी घटनाएँ हो जाती हैं। हर व्यक्ति की सुरक्षा और सुविधा पर वीआईपी की सुरक्षा और सुविधा भारी है भारतवर्ष में और वह मूल में है इस तरह की भगदड़ के।
कहा जाता है कि भारत की जनता अनुशासित नहीं है। वह शॉर्टकट, ब्राइबरी, करप्शन आदि को अपना कर अपना काम निकालना चाहती है। पर वह शायद सचाई नहीं है। समाज में असमानता, वीआईपी कल्चर, सम्पन्न लोगों का भोंडा प्रदर्शन इन सब बुराइयों की जड़ में है।
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नॉर्डिक देश (स्वीडन, नॉर्वे, डेनमार्क, फिनलैंड, आइसलैंड) इस वीआईपी कल्चर से मुक्त हैं। प्रधानमंत्री और उच्च अधिकारी पब्लिक ट्रांसपोर्ट का उसी तरह प्रयोग करते हैं जैसे आम जनता। पोलीस प्रोटेक्शन बहुत ही कम मौकों पर दिया जाता है। न्यूजीलैंड की पूर्व प्रधानमंत्री जेकिंडा ऑर्डेन के केफे में लाइन लगा कर कॉफी खरीदते चित्र तो बहुत लोगों ने देखे होंगे। कनाडा में भी राजनेता और उच्च अधिकारी सादगी से रहते हैं। नीदरलैंड के पूर्व प्रधानमंत्री मार्क रुट्टे को अपनी साइकिल पार्क करते और कॉफी गिर जाने पर खुद साफ करते देखा गया है। कमोबेश वही दशा स्विटजरलैंड में है।
अमेरिका में भी सीनेटर, गवर्नर और अन्य राजनेता जनता में आम घूमते हैं बिना किसी लालबत्ती या पोलीस प्रोटेक्शन के। अमेरिकी सांसद मेट्रो, बस और हवाईअड्डों पर आम नागरिकों की तरह सफर करते हैं। ओबामा राष्ट्रपति बनने से पहले खुद अपनी कॉफी खरीदते और कतार में लगते थे। सिर्फ राष्ट्रपति के काफिले के लिए ही ट्रैफिक रोका जाता है, लेकिन अन्य नेताओं के लिए आम जनता की असुविधा नहीं बढ़ाई जाती।
ब्रिटेन में प्रधानमंत्री और शाही परिवार के सदस्यों को सुरक्षा मिलती है, लेकिन उनके लिए आम जनता को बहुत परेशान नहीं किया जाता। वैसा ही हाल फ्रांस और जर्मनी में है।
मजे की बात है कि भारत इन देशों की तरह प्रगति चाहता है पर अपनी वीआईपी कल्चर को त्यागना नहीं चाहता। मेरे ख्याल से अगर भारत वीआईपी कल्चर का त्याग नहीं करता तो विकसित नहीं बन सकता। भारत प्रजातंत्र है, तानाशाही नहीं। इसलिये यहां का विकास बिना वीआईपी कल्चर त्यागे नहीं हो सकता। इंफ्रास्ट्रक्चर और आईटी के उत्तरोत्तर प्रयोग से लाइन की लम्बाई कम की जा सकती है पर जब तक लाइन को बाईपास कर वीआईपी कोटा में सहूलियत पाने की ललक खत्म नहीं होगी, सही मायने में विकास नहीं हो सकेगा।
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टुच्चा सा नेता यहां गनर और लालबत्ती लिये घूमता है। संगम में सारे नेता वीआईपी स्नान करते हैं। एसडीएम का भी वाहन सर्र सर्र निकलता परिवार और रिश्तेदारों को मेला घुमाता दीखता है। वे सब यह करते या करने की इच्छा रखते हैं और चाहते हैं कि दस कोस पैदल चल कर आई जनता बैरीकेड न तोड़े? मैं तो गांव में बैठा हूं। वहां जाने की इच्छा नहीं है। गंगाजी मेरे घर से दो किमी दूर हैं जहां मेरी साइकिल निर्बाध जाती है। मेरी वीआईपीयत्व की राजसिक वृत्ति होम हो चुकी है। पर कितने सम्पन्न लोग अपनी यह राजसिक वृत्ति होम कर आम आदमी की तरह रह सकते हैं भारत में?
नहीं कर सकते तो उन्हें लेक्चर पिलाने का क्या अधिकार है?


सुप्रभात ज्ञान दत्त पाण्डेय जी।
आपने हमें विकसित देश बनने में एक बड़ी बाधा की सटीक पहचान की है। भौतिक संपन्नता विकसित होने का सिर्फ एक आयाम है अन्यथा कतर और साउदी कब के विकसित देश घोषित कर दिए गए होते।civic sense और मानवीय मूल्यों और अधिकार को संरक्षित और पोषित किये बिना विकसित भारत का सपना अधूरा ही रहेगा।
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सिविक सेंस और मानवीय मूल्य – यह आपने बहुत सटीक कहा श्रीमान जी! धन्यवाद।
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VIP संस्कृति हमारे जीवन में इतना रच-बस गई है कि अधिकांश लोगों को उसमें कुछ भी असामान्य नहीं लगता है। मंदिरों में VIPs के लिए ख़ास इंतज़ाम देख कर तो यही लगता है कि भगवान भी उन पर विशेष कृपा रखते हैं। मेरा यह ब्लॉग VIP Darshan (https://middlebranch.wordpress.com/2024/05/21/vip-darshan/) भी इसके औचित्य पर एक प्रश्न है।
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रवींद्रनाथ टैगोर जी की कविता है न, जिसमें है कि देवता देवालय में नहीं खेत में हैं। वही सही है। इतनी वीआईपी भीड़ से रामलला भी भाग खड़े होते होंगे! :-)
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