<<< आसपास में सब चेतन है >>>
हाल ही में मेरी बिटिया आई मेरे पड़ोसी टुन्नू पंडित की बिटिया की शादी के अवसर पर। शादी के बाद वह वापस जाते हुये मेरे घर में काम करने वालों को बक्शीस दे कर जाने लगी। यह बक्शीस एक परम्परा है। काम करने वाले भी इसकी अपेक्षा रखते हैं।
वह बक्शीस दे चुकी तो मैने कहा – हमारी चिड़ियों को भी दो। वे भी तो सुबह शाम मनोरंजन करती हैं तुम्हारा। उन्हें भी वाणी ने 50 रुपये दिये। चिड़ियों के लिये दाना आयेगा उससे।
चिड़ियाँ तो चेतना के स्तर पर काफी ऊंचे पायदान पर हैंं, पर हमारे यहां तो हर जड़ में भी चेतन का वास माना जाता है। वे सभी जो हमारा प्रवास कम्फर्टेबल बनाते हैं क्या बक्शीस का पात्र नहीं हैं? मसलन, मेरी छोटी कार भी जरूरत पड़ने पर बिटिया को मार्केट ले कर गई। वह सेवा को हमेशा तत्पर रही। बड़े प्यार से उसने उसे पीछे वाली सीट पर बिठाया। रेलवे फाटक पर वह रुकी पर फाटक खुलते ही बिना किसी चूं चपड़ के आसानी से आगे बढ़ी। किसी नौकर की तुलना में उसने कोई ‘घटिया’ सेवा तो नहीं की? क्या उसे बक्शीस नहीं मिलनी चाहिये?
ऐसा नहीं कि यह ऊटपटांग केवल मैं सोच रहा हूं। मेरा धर्म तो सब को चेतन मानता ही है। विज्ञान-दर्शन में भी ‘पैनसाइकोइज़्म’ (Panpsychism) के अंतर्गत कहा जाता है कि ब्रह्मांड में हर चीज़ के भीतर किसी न किसी स्तर की चेतना मौजूद है।
अपने आसपास हर चीज में चेतना का अनुभव करना मजेदार और सुकूनदायक हो सकता है। सूर्योदय, सूर्यास्त, पोर्टिको का झूला और कुर्सियां, फूल-पत्ती, छतरी, मचान सब जीवन ही हैं। चेतन। उनके साथ बातचीत हो सकती है। हंसी मजाक हो सकता है। अंधड़ में कुर्सी अगर उलट जाये तो उसे सीधा कर रखते समय उसे सहलाया भी जा सकता है – “तुम्हें गिर कर चोट तो नहीं लगी?”
शायद मैं ज्यादा ही कह दे रहा हूं। हमेशा इस भाव में नहीं रहा जा सकता। पर अपने परिवेश से संवाद का एक दिन तो सप्ताह में नियत हो ही सकता है।
आसपास को चेतन मानने की शुरुआत के लिये तो अपनी कार, अपनी साइकिल, मोबाइल, लैपटॉप आदि के जेनरिक नाम की बजाय उनके नाम तो रखे ही जा सकते हैं। नाम से उनके साथ आत्मीयता बढ़ती है। मसलन मेरी साइकिल ‘बटोही’ है!
कार का भी नाम सोचा जा रहा है। ‘रानी’ कैसा रहेगा?


ऐसा शायद सब के साथ होता है, जिन वस्तुओं से हमारा लगाव होता है उन्हें हम चेतन मानने लगते हैं, बच्चे अपने खिलौनों को, इंजीनियर अपनी मशीनों को, बढ़ई अपने औजारों को, लाला जी अपने धन को :) किसी भी वस्तु के साथ बहुत समय व्यतीत करने पर उसके साथ लगाव होना नैसर्गिक है। हमारी संस्कृति तो पथ्थर में भगवान तलाश लेती है।
R
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आशा है आपका स्वास्थ्य अच्छा है। बहुत दिनों से आपने कुछ लिखा नहीं।
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आपने याद किया, धन्यवाद। स्वास्थ्य ठीक है। लिखने का अनुशासन गड़बड़ा गया है। उसे दुरुस्त करना है।
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basanti
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Carl Jung had named even furniture in his house.
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