कल प्रेमसागर की नर्मदा परिक्रमा का पहला दिन था। जेठ का महीना है और धरती गर्म है। मानसून अभी महीना डेढ़ महीना दूर है। चलना कठिन होगा ही और आगे जब मानसून आ जायेगा तब दूसरे तरह की तकलीफ बढ़ेगी। पर जिद्दी हैं प्रेमसागर। कॉन्ट्रेरियन सोच वाले। अभी निकल लिये हैं परिक्रमा को।
भरूच में दिन में ताप पैंतीस डिग्री था। पर उमस ज्यादा थी। मौसम वाला बता रहा था – फीलिंग लाइक 44डिग्रीज। चौवालीस डिग्री के ताप में कौन निकलता है?
मैं इंटरनेट खंगालता हूं। लोग अक्तूबर या फरवरी-मार्च में भी निकलते हैं तो पूरी तैयारी से। उनके पास ओढ़ने बिछाने को होता है। पानी का इंतजाम होता है। पूजा की सामग्री होती है। टॉर्च होती है, थाली-कटोरी-लोटा होता है। मच्छरकी क्रीम होती है और दवायें भी होती हैं। प्रेमसागर के पास यह सब नहीं है। मेरे घर से दहिमन का एक लाठी कटवाये थे वे पर मेरे यहां से निकलते समय वह यहीं भूल गये। अब उनके पास कोई लाठी भी नहीं है। परिक्रमा के पथ पर कई स्थानों पर बंदरों का आतंक है। एक लाठी तो होनी ही चाहिये थी।
फिर, सामान न भी हो तो खरीदा जा सकता है। पर उसके लिये पैसे चाहियें। प्रेमसागर के पास तो वह भी कुछ खास नहीं होगा। खेत की सरसों की फसल बेच कर निकले हैं। पर एक दो बोरा सरसों से 2600किमी की पदयात्रा कैसे हो सकती है? प्रेमसागर वह सब कैल्क्यूलेशन नहीं करते! … अजीब आदमी है यह!
ऐसा नहीं है कि परिक्रमा केवल प्रेमसागर ही कर रहे हैं। वे तो केवल पैरों से यात्रा कर रहे हैं। मैं शब्दों-विचारों से यात्रा कर रहा हूं। मुझे भी यात्रा सामग्री तलाशने, तराशने और उनको शब्द देने में उतना ही समय देना होता है जितना प्रेमसागर को चलने में। मैं लैपटॉप/की-बोर्ड पर बैठे थक जाता हूं तो ब्रिस्क चाल से चल भी लेता हूं। कल मैने तय किया कि प्रेमसागर नर्मदा परिक्रमा में 2600किमी चलेंगे तो मैं भी पूरी यात्रा के दौरान 260किमी तो चल ही लूंगा। वह भी एक तरह का पदयात्रानुशासन होगा। उसके अलावा नर्मदा तीरे तीरे मैं भी वर्चुअल यात्रा कर लूंगा। मुझे जितना अनुभव होगा, वह प्रेमसागर के अनुभव जैसा भले ही न हो, पर होगा उतना ही महत्वपूर्ण!
वर्चुअल यात्रा, यात्रा की एक अलग सी विधा है जो शायद मेरे द्वारा ही परिमार्जित की जा रही है।
कल दोपहर दो बजे के बाद प्रेमसागर से नीलकंठेश्वर महादेव से नर्मदा परिक्रमा प्रारम्भ की। लोग परिक्रमा प्रारम्भ करते समय नीलकंठ मंदिर में संकल्प पूजा करते हैं। या किसी और मंदिर में भी कर लेते हों। प्रेमसागर ने की या नहीं मैने पूछा नहीं। यूं इतना बड़ा ऑफ-सीजन यात्रा का साहस बिना संकल्प आता ही नहीं। बहरहाल वे निकल पड़े और मेरा अनुमान था कि वे दस – इग्यारह किमी चल पायेंगे आधी शिफ्ट में। वही हुआ। रात साढ़े आठ बजे वे शुक्लतीर्थ पंहुचे। रास्ते में एक मोबाइल वाले सज्जन से अपना मोबाइल रिपेयर कराया। मोबाइल वाले बंधु ने मुफ्त में ही काम कर दिया और बाबाजी को एक नेकबैंड भी दे दिया – फ्री में! सोलो यात्रा करते समय भगवन्नाम श्रवण का इंतजाम भी कर दिया उन सज्जन ने। उनका नाम है अशोक सिंह। अशोक राजस्थान के रहने वाले हैं और भरूच में दुकान खोले हैं।
प्रेमसागर बे मौसम के परक्कमावासी हैं। उन्हें शायद रात विश्राम का ठिकाना खोजने में दिक्कत हो रही होगी। नर्मदामाई ने उनकी सहायता को शैलेश भाई और उनके बेटे को भेज दिया। वे प्रेमसागर को रास्ते में मिले। उन्हें प्रसाद खिलाया और नर्मदा मंदिर में ला कर उनके सोने का इंतजाम भी किया।
मैं एक चित्र अशोक सिंह और दूसरा शैलेश जी और उनके बेटे का साथ लगा रहा हूं।
शुक्लतीर्थ, जहां नर्मदा मंदिर में प्रेमसागर ने विश्राम किया, नर्मदा किनारे ही है। वहां से कुछ ही दूर नर्मदा तट पर सनसेट प्वॉइंट है। उस जगह के गूगल मैप पर अनेक चित्र नत्थी हैं। बहुत ही आकर्षक हैं वे सूर्यास्त के चित्र! प्रेमसागर खुद तो वह सूर्यास्त नहीं देखेंगे। सवेरे तो वे निकल लेंगे यात्रा पर। पर एक एक सन-सेट चित्र को मैने ध्यान से देखा। वही वर्चुअल यात्रा है!
शुक्लतीर्थ एक ग्रामपंचायत है। यहां कार्तिक पूर्णिमा पर एक पांच दिवसीय मेला लगता है। लाखों लोग आते हैं मेले में। सन 2013 की टाइम्स ऑफ इण्डिया की खबर के अनुसार उस साल डेढ़-दो लाख लोग आये थे। अब तो संख्या और भी होती होगी।
शुक्लतीर्थ की एक मॉइथॉलॉजिकल कथा भी है। नर्मदा के किनारे तपस्वी परेशान थे नर्मदा जी के बार बार उनके आश्रम को जलमग्न कर देने से। उन्होने विष्णु भगवान का आवाहन किया तो भगवान आये और नदी का मार्ग बदल दिया। नक्शे में नर्मदा का मार्ग बदला भी दिखता है। जो हुआ रहा हो; हर छोटे बड़े काम के लिये भगवान आया करते थे। अब वैसा कहां होता है?! अब शायद वैसे तपस्वी भी न रहे।
शुक्लतीर्थ में मैने विष्णु मंदिर तलाशने की कोशिश की। वह दिखा नहीं। शुक्लेश्वर महादेव का मंदिर जरूर दिखा।

आगे प्रेमसागर जी की पदयात्रा और अपनी वर्चुअल यात्रा – दोनो की उपयुक्त जुगलबंदी करने का तरीका निकालूंगा। अभी तो जो बन पड़ा, लिख दिया। लेखन धीरे धीरे मांजा जायेगा। नर्मदे हर!
#नर्मदाप्रेम #NarmadaPrem
(एक चित्र अशोक सिंह और दूसरा शैलेश जी और उनके बेटे का संलग्न है। तीसरे चित्र में सफेद कपड़े में प्रेमसागर हैं और नीलकंठेश्वर मंदिर उनके पीछे है।)




नर्मदे हर । संभवतः आपने भी अमृत लाल वेगड़ जी की पुस्तक “सौंदर्य की नदी नर्मदा” पढ़ी होगी । बहुत दिनों बाद फिर आपके लेख दिख गए है ।
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जी 🙏 वेगड़ जी के तीनो trevalogue पढ़ लिए हैं। सौंदर्य की नदी नर्मदा, अमृतस्य नर्मदा और तीरे तीरे नर्मदा। तीनों अद्वितीय हैं!
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एक और अद्भुत यात्रा की प्रतीक्षा है. इस बार ये पिछली यात्रा से भी सुन्दर हो, ये कामना है. प्रेमशंकर जी का यूपीआई बार कोड भी लगा दीजियेगा.
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जी, धन्यवाद!
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