बोधवाड़ा-बाकानेर-मांडू

नर्मदा पदयात्रा और मनयात्रा: बोधवाड़ा से माहेश्वर तक, मांडू के मोड़ से

प्रेमसागर, नर्मदा पदयात्री की तीन दिन की यात्रा इस प्रकार हुई –

  • 28 मई – मालवाड़ा-बोधवाड़ा से 30 किलोमीटर चल बाकानेर के हनुमान मंदिर में।
  • 29 मई – बाकानेर से 25 किलोमीटर चल कर बाड़ा छतरी के नर्मदा माता आश्रम तक।
  • 30 मई – बाड़ा छतरी से मांडू और वहां का भ्रमण। रात में हीरापुर के शबरी आश्रम में विश्राम। यात्रा करीब 30 किलोमीटर।
हीरापुर के शबरी आश्रम में

नक्शे के अनुसार तीरे तीरे चलें तो जगहें पड़ेंगी गोगवा, धर्मपुरी, खलघात, जल्कोती और माहेश्वर। मैने प्रेमसागर से कहा कि वे सीधे नर्मदा किनारे क्यों नहीं चले? समय भी कम लगता और नर्मदा का सानिध्य भी रहता।

पर सवाल शायद प्रेमसागर के मन में उठी यायावरी की हुड़क का नहीं था। परिक्रमावासी वाया माण्डव ही चलते हैं। मुझे याद आया ढ़ाई दशक पहले की मेरी मांडू यात्रा। तब मैने वहां नीलकंठ मंदिर पर परिक्रमा वासियों को देखा था। उस समय तक वेगड़ जी की ‘सौंदर्य की नदी नर्मदा’ से मेरा परिचय हो चुका था और मैं समझने लगा था कि परिकम्मावासी क्या होते हैं।

तब मैने सोचा था कि नर्मदा मांडू के समीप से बहती होंगी। पर आज गूगल मैप पर देखता हूं तो पता चलता है नीलकंठ महादेव मंदिर से नर्मदा क्रो-फ्लाइइट पर भी 20 किमी दूर हैं। उस समय भी 20-30 किलोमीटर घूम कर पदयात्री वाया माण्डू चला करते थे। उनका मार्ग ही यही है।

प्रेमसागर ने सुनी सुनाई बात बताई – “मेन बात है भईया कि लोग धरमपुरी हो कर नहीं चलते। वहां भीम को ले कर कोई कथा है। कहते हैं कि भीम नर्मदा का जल पीने के लिये वहां आये थे। दूसरी बात यह है कि पास में खुज नदी बहती है। वह नर्मदा में जा कर मिलती है। परिक्रमावासी वह नदी पार नहीं करते। लोगों की मान्यता है कि वह कर्मनासा की तरह कोई नदी है जिसे पार करने पर सारे पुण्य ‘नास’ हो जाते हैं।”

इंटरनेट पर खंगालने पर मुझे वैसा कुछ नहीं मिला। नर्मदा जी को ले कर कई किंवदंतियां हैं जो लगता है उनपर लिखी पुस्तकों या ट्रेवलॉग्स में जगह नहीं पा सकी हैं। और गूगल सर्च, चैट जीपीटी या और कोई एआई मॉडल आखिर जानकारी तो इंटरनेट पर उपलब्ध सामग्री से ही लेगा।

एक स्थान पर प्रेमसागर दोपहर विश्राम कर रहे थे तो वहां के प्रवचन कर्ता अश्विनी यदुवंशी जी ने एक नया प्रकटन किया। जनश्रुति हि कि रानी रूपमती मांडू से नित्य नर्मदा स्नान को धर्मपुरी आया करती थीं। धर्मपुरी में बेट (टापू) पर बिल्व-अमृतेश्वर महादेव का मंदिर है। वहां रूपमती स्नान के बाद दर्शन किया करती थीं। जब उनका बुढ़ापा आया तो मैय्या से उन्होने निवेदन किया कि उम्र के कारण रोज आना कठिन हो रहा है। नर्मदा माई ने उन्हें एक कुंड मांडू में बनवाने का आदेश दिया और कहा कि मेरा एक लोटा जल उसमें डाल देने से मैं वहां स्वयम चली आऊंगी। वह कुण्ड रेवा कुंड कहलाया।

एक दूसरी लोककथा के अनुसार – रानी रूपमती नर्मदा नदी की भक्त थीं और प्रतिदिन भोजन से पहले नदी के दर्शन करती थीं। जब सुल्तान बाज बहादुर ने उनसे विवाह का प्रस्ताव रखा, तो उन्होंने शर्त रखी कि जब तक नर्मदा नदी मांडू में नहीं बहती, वह विवाह नहीं करेंगी। बाज बहादुर ने नर्मदा नदी से प्रार्थना की, और एक चमत्कारिक रूप से एक जल स्रोत प्रकट हुआ, जिसे रेवाकुंड कहा गया।

बहरहाल; प्रार्थना बाजबहादुर की रही हो या रूपमती की, रेवाकुण्ड मांडू में बना और अब परिक्रमा वासी रेवाकुंड को नर्मदा ही मानते हैं। वे धर्मपुरी तथा रेवाकुण्ड के बीच की जमीन पार नहीं करते। … नर्मदा परिक्रमा एक प्रेमकथा की साक्षी है। यह पदयात्रा जाने कौन कौन से रंग, जाने कौन कौन से भाव अपने में समेटे है!


पदयात्रा प्रेमसागर कर रहे हैं पर उसके साथ सोचना, मनन करना मुझे भी लपेटे हुये है। नर्मदा की समांतर मनयात्रा मेरी भी चल रही है। ट्रेवलॉग केवल यात्रा का नक्शा नहीं, उसकी आत्मा भी होना चाहिये – जिसमें कुछ कल्पना हो, कुछ भावना, और कुछ वह जो सिर्फ़ यात्रा करते हुए नहीं, मन में घटता है। वह उड़ान जो तथ्य की रोचकता बढ़ाये और पाठक की कल्पना को गुदगुदाये।

मैं केवल प्रेमसागर की यात्रा का यथावत विवरण देने तक सीमित नहीं रह सकता। वह करते करते एक तरह की थकान या ऊब हो सकती है। होती ही है। मुझे अपनी मानसिक यात्रा को भी शब्द देने चाहियें और खूब देने चाहियें।

पर इस वृतांत में कहां प्रेमसागर की तथ्यात्मक पदयात्रा है और कहां मेरी मनयात्रा, पाठक को उसके बारे में पता रहना चाहिये। अत: मैं लेखन में अपनी सोच, अपनी कल्पना को जो व्यक्त करूंगा, उसके लिये एक संकेत चिन्ह उस पैराग्राफ के प्रारम्भ में दूंगा। उससे पाठक को यह स्पष्ट हो जायेगा कि यह पदयात्री का नहीं, मनयात्री का कथ्य है। उस पैराग्राफ या खंड के पहले “$” चिन्ह लगा मिलेगा। इस स्पष्टीकरण के साथ मैं आगे बढ़ता हूं। आगे यह यात्रा जितनी प्रेमसागर की होगी, उतनी मेरी भी होगी।

अत: जब आप ‘$‘ चिन्ह देखें, तो समझिये यह मेरी भीतरी यात्रा की झलक है – एक कल्पना, एक अनुमान, या एक विचार जो नर्मदा की बाहरी यात्रा के समांतर बह रहा है।


बोधवाड़ा से माहेश्वर की पदयात्रा (वाया मांडू) करीब सवा सौ किलोमीटर की रही है। इसके दौरान हुये पदयात्रा के और मनयात्रा के अनुभव अगली दो तीन ब्लॉग पोस्टों में प्रस्तुत करूंगा। उसके बाद ब्लॉग पर यात्रा का विवरण हर दूसरे-तीसरे दिन हुआ करेगा। यह ट्रेवलॉग की विधा में एक अलग सा प्रयोग होगा जिसमें एक व्यक्ति पदयात्रा कर रहा है, दूसरा मनयात्रा कर रहा है और दोनो के साझा अनुभव इनटरनेट/एआई (मुख्यत: चैट जीपीटी) की सहायता से बल पा रहे हैं। इस तरह यह भौतिक यात्रा, कल्पना, मानसिक अनुभूति और सामग्री पर शोध – इन सबका विलयन है। यह कितना अच्छा और कितना साधारण बनता है, वह तो समय बतायेगा। आखिर यह अपने तरह का पहला प्रयोग जो है!

नर्मदा की यात्रा कई लोगों ने कई तरीके से की है। यह एक और तरीका भी देखेंगी नर्मदा मां।

जब मांडू के रेवा-कुंड में मां प्रकट हो सकती हैं, तो मेरे मन के कुंड में क्यों नहीं?

नर्मदे हर!

नर्मदायात्रा #नर्मदापरिक्रमा #प्रेमसागर_पथिक

मांडू में दुर्गम रास्ता

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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